विश्वासराव
विश्वासराव
जन्म- 22 जुलाई 1742
मृत्यु- 14 जनवरी 1761
उम्र – 18 साल, 5 महीने, 23 दिन
मृत्यु का स्थान- पानीपत, हरियाणा
पद-पेशवा के उत्तराधिकारी
ये नाम आपने स्कूल के इतिहास की किसी किताब में नहीं पढ़ा होगा । सिर्फ 18 साल 5 महीने और 23 दिन की उम्र में पेशवा विश्वासराव ने पानीपत का युद्ध लड़ा था और वीरगति को प्राप्त हो गए थे । पेशवा विश्वासराव का जीवन बहुत छोटा सा था लेकिन जब उनके मन की गहराई में उतरकर देखेंगे तो पता चलता है कि देशभक्ति बहुत बड़ी थी । जब पानीपत की रणभूमि सज गई थी । मराठा सेना की रसद हर तरफ से कटी हुई थी । पूरे इलाके में भयंकर अकाल फैला हुआ था । घोड़े गश खाकर भूखे होने की वजह से गिर रहे थे । सिपाही पेड़ों की छाल खाकर जिंदा रहने की कोशिश कर रहे थे । भाऊ पर करीब 2 लाख लोगों का बोझ था… सेना के अलावा तीर्थ यात्री भी अनाज के एक एक दाने के लिए भाऊ का चेहरा निहार रहे थे और भाऊ खुद भूखे रहने को मजबूर थे । भाऊ सेनापति थे सबका जिम्मा भाऊ के कंधों पर ही था । लेकिन भाऊ के कंधों पर सबसे बड़ा जिम्मा था पेशवा विश्वास राव की सुरक्षा का । पेशवा विश्वास राव जो उस वक्त पूरे भारत में फैले मराठा साम्राज्य में पेशवा के अगले वारिस थे । उनकी जान बहुत कीमती थी । लेकिन उनके पिता और माता ने उनको युद्ध के मैदान में भेजा क्योंकि पेशवा विश्वासराव की जिद थी कि वो मातृभूमि के लिए लड़ना चाहते हैं ।
पेशवा परिवार में बहुत ज्यादा कलह थी । रघुनाथ राव (स्वर्गीय पेशवा बाजीराव के छोटे बेटे) पानीपत युद्ध लड़ने वाले सदाशिव राव भाऊ (पेशवा बाजीराव के छोटे भाई चिमना जी अप्पा के बेटे) को पसंद नहीं करते थे । उस वक्त के पेशवा रहे बाला जी की पत्नी गोपिका बाई सदाशिव राव भाऊ से ईर्ष्या करती थीं । और इस कलह के बीच सबसे निश्छल प्रेम करने वाले युवा और पेशवा के उत्तराधिकारी थे विश्वास राव ।
सदाशिव राव भाऊ… विश्वास राव के चाचा थे । जब भाऊ ने दिल्ली के लालकिला पर विजय प्राप्त की तो भाऊ ने लाल किला में विजय उत्सव मनाया और 18 साल के विश्वास राव को सबसे ऊंचा स्थान दिया क्योंकि वो पेशवा के सबसे बड़े पुत्र थे और जीत की शुभकामनाएं भी सबने विश्वास राव को दी । लेकिन जब 1761 में पानीपत में जबरदस्त संकट आया तब भाऊ ने योजना बनाई की विश्वास राव को पहले ही युद्ध से किसी तरह बाहर कर दिया जाए ताकी उनकी जान पर कोई संकट ना आने पाए । भाऊ ने विश्वास राव को बहुत समझाने की कोशिश की थी कि हम आपको इस भीषण युद्ध से पहले सुरक्षित जगह पर भेजना चाहते हैं । लेकिन विश्वास राव टस से मस नहीं हुए उन्होंने कहा कि वो युद्ध का मैदान नहीं छोड़ेंगे चाहे जो भी हो जाए वो सुबह पानीपत के मैदान में अवश्य उतरेंगे ।
अगले दिन 14 जनवरी 1761 को मकर संक्रांति के दिन पानीपत का भीषण युद्ध शुरू हुआ । मराठा सेना युद्ध जीत रही थी । अब्दाली चीख रहा था क्योंकि उसकी सेना 2 महीने से चटकर खाना खा रही थी । भारत में ही पैदा होकर भारत की पीठ में छुरा घोंपने वाले अवध के नवाब शुजाउद्दौला और रोहिलखंड के नजीब खान के इलाके से अब्दाली के कैंप को भर भर कर राशन मिल रहा था । लेकिन दूसरी तरफ मराठे लंबे समय से भूखे प्यासे रह रहे थे । उनकी रसद कट चुकी थी । लेकिन इन भूखे प्यासे मराठों ने भूखे प्यासे घोड़ों पर बैठकर हजारों पठान कत्ल कर दिए थे । अब्दाली अल्लाह ताला को याद कर रहा था । दुआएं पढ रहा था कि कोई खुदा का फरिश्ता आए और उसकी जान बचे ।
खैर… पानीपत का युद्ध तो खत्म हो गया लेकिन वो चिट्ठियां आज भी मौजूद हैं जो विश्वास राव ने अपने पिता को जंग के मैदान से लिखी
ऐसी ही एक चिट्ठी में विश्वास राव लिखते हैं…
आदरणीय पेशवा
चाचा सदाशिव राव भाऊ बहुत बडे़ संकट में फंस चुके हैं । उनके पास धन भी पूरी तरह से खत्म हो गया है । लेकिन वो इसलिए आपसे धन की मांग नहीं कर रहे हैं क्योंकि वो पेशवाई पर बोझ नहीं डालना चाहते हैं । आपसे अनुरोध है कि आप जल्द से जल्द हर तरह की मदद भेजें ।
आपका पुत्र
विश्वास राव
ये चिट्ठी विश्वास राव ने भाऊ से छुपाकर लिखी थी क्योंकि वो जानते थे भाऊ पुणे से मदद लेने का विरोध कर रहे थे । लेकिन ये चिट्ठी दिखाती है कि विश्वास राव अपने चाचा को कितना प्रेम करते थे ।
पानीत फिल्म में एक गाना है…
मैंने ली आज शपथ है वीरों का पथ है मेरा रे
लक्ष्य अपना जो बना लूं वहीं पे डालूं डेरा रे
ये दो लाइनें विश्वास राव को ही समर्पित है
बस एक ही कमी थी विश्वास राव में… वो शायद बहुत युवा थे और शायद पेशवा के उत्तराधिकारी से ज्यादा एक योद्धा थे और युद्ध ही लड़ना चाहते थे और इस मिट्टी के लिए लड़कर ही उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान किया ।
जब पेशवा विश्वास राव का शव अब्दाली के सामने लाया गया तो खुद अब्दाली भी ये बोल उठा कि माशाल्लाह क्या जलवा है ! मरने के बाद भी चेहरा आफताब है ।
ये लेख मैं कश्मीरी पंडितों को समर्पित करता हूं और उनसे ये अपील करता हूं कि वो लड़कर अपने घर को वापस लें शस्त्र उठाएं कोई सरकार कोई पुलिस आपको कभी नहीं बचा सकती है ! कश्मीर में लगातार कश्मीरी पंडितों की हत्याओं का सिलसिला जारी है और इस हत्या का बदला लेने के लिए जब तक खुद कश्मीर पंडित अपने आपको सशक्त नहीं करेंगे तब ते ये कत्लेआम चलता रहेगा । कश्मीरी पंडित हमेशा बहुत गर्व से ये कहते हैं कि हमारे इतने लोग मारे गए इतना जुल्म हुआ फिर भी किसी ने हथियार नहीं उठाया । मेरा मानना है कि ये गर्व की बात नहीं है । आपको अब हथियार चलाने की प्रैक्टिस करने चाहिए । आपको हथियार के लाइसेंस के लिए अप्लाई करना चाहिए । आपको अस्त्र शस्त्र से लैस रहना चाहिए तभी आपकी रक्षा हो पाएगी अन्यथा आप कश्मीर घाटी में कभी नहीं बस पाएंगे ।
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