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क्या है अल नीनो और ला नीनो, जिसकी वजह से भारत में पड़ रही है भयंकर गर्मी

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क्या है अल नीनो और ला नीनो, जिसकी वजह से भारत में पड़ रही है भयंकर गर्मी

अल नीनो का असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है. जिसके कारण बारिश, ठंड, गर्मी सब में अंतर दिखाई देता है. अब मौसम के बदल जाने के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आती है.

आने वाले 2-3 महीने में लोगों को गर्मी से राहत नहीं मिलेगी

मौसम विभाग की मानें तो इस साल 2023 का फरवरी महीना, 122 सालों में सबसे गर्म महीना रहा है. वहीं अप्रैल- मई के महीने में भीषण गर्मी पड़ने वाली है. इस रिकॉर्ड तोड़ गर्मी का न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा बल्कि देश के कई हिस्सों में सूखे की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है. हाल ही में इंस्टीट्यूट ऑफ क्लाइमेट चेंज स्टडीज के डायरेक्टर डीएस पई ने आने वाले गर्मी को लेकर दिए चेतावनी में कहा, ‘अल नीनो मौसमी घटना के कारण इस साल मानसून की बारिश काफी कम रहने की संभावना है.’

हम अक्सर मौसम के जुड़ी खबरों में अल नीनो और ला नीना का जिक्र जरूर सुनते हैं. ऐसे में सवाल उठता कि आखिर ये अल नीनो और ला नीनो है क्या? और इन दोनों का हमारे देश के मौसम पर किस तरह असर पड़ता है?

अमेरिकन जियोसाइंस इंस्टीट्यूट के अनुसार इन दोनों टर्म का संदर्भ प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से है, इस तापमान का असर पूरी दुनिया के मौसम पर पड़ता है. एक तरफ अल नीनो है जिसके कारण तापमान गर्म होता है तो वहीं ला नीना के कारण तापमान ठंडा.

क्या है अल नीनो

प्रशांत महासागर में पेरू के निकट समुद्री तट के गर्म होने की घटना को अल-नीनो कहा जाता है. आसान भाषा में समझे तो समुद्र का तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में जो बदलाव आते हैं उस समुद्री घटना को अल नीनो का नाम दिया गया है. इस बदलाव की वजह से समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से 4-5 डिग्री ज्यादा हो जाता है.

अल नीनो का मौसम पर क्या पड़ता है असर

अल नीनो के कारण प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह तापमान सामान्य से ज्यादा हो जाता है यानी गर्म हो जाता है. इस गर्मी की वजह से समुद्र में चल रही हवाओं के रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाते हैं. इस परिवर्तन के कारण मौसम चक्र बुरी तरह से प्रभावित होता है.

अल नीनो का असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है. जिसके कारण बारिश, ठंड, गर्मी सब में अंतर दिखाई देता है. अब मौसम के बदल जाने के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है तो कई जगहों पर बाढ़ आती है.

जिस साल अल नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून पर इसका असर पड़ता है. जिससे धरती के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ हिस्सों में सूखे की गंभीर स्थिति सामने आती है.

हालांकि कभी-कभी इसके सकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं, उदाहरण के तौर पर अल नीनो के कारण अटलांटिक महासागर में तूफान की घटनाओं में कमी आती है.

ला नीना क्या है?

ला नीना का स्पेनिश मतलब है ‘छोटी लड़की’. इसे कभी-कभी अल विएखो, एंटी-अल नीनो या “एक शीत घटना” भी कहा जाता है. यह स्थिति भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर निम्न हवा का दबाव होने से पैदा होती है. ला नीनो बनने के कई अलग-अलग कारण माने जाते हैं लेकिन सबसे मशहूर कारण है, जब ट्रेड विंड, पूर्व से बहने वाली हवा काफी तेज गति से बहती हैं तो समुद्री की सतह का टेम्प्रेचर गिरने लगता है. इस कम होते तापमान को ही ला नीनो कहते हैं. इस स्थिति का पैदा होना पूरी दुनिया के तापमान पर असर डालता है और इसके कारण उस वर्ष तापमान औसत से ज्यादा ठंडा हो जाता है.

ला नीना का मौसम पर असर

इसके असर दुनियाभर में आने वाले साइक्लोन पर असर होता है. ये अपनी गति के साथ उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा को बदल सकती है. जिसके कारण दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में बहुत ज्यादा नमी वाली स्थिति पैदा होती है. ला नीनो के कारण इंडोनेशिया और उसके आसपास के क्षेत्र में भारी वर्षा हो सकती है. जबकि इक्वाडोर और पेरू में सूखा पड़ सकता है. ला नीनो ही ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ लाने की वजह होती है. और इसके कारण उत्तर-पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण-पूर्व में मौसम गर्म होता है.

ला नीना के कारण उत्तरी यूरोप खासतौर पर ब्रिटेन में कम सर्दी और दक्षिणी/पश्चिमी यूरोप में ज्यादा सर्दी पड़ती है जिसके कारण भूमध्यसागरीय क्षेत्र में बर्फबारी होती है.

अल नीनो और ला नीना का भारत पर क्या होगा असर?

मौसम वैज्ञानिक इस साल यानी 2023 अल नीनो के प्रभाव की चेतावनी दे रहे हैं, यह भारत के लिए बिल्कुल ही अच्छी खबर नहीं है. क्योंकि एक तरफ जहां भारत की ज्यादातर आबादी अपनी जिंदगी जीने के लिए कृषि पर निर्भर है. वहीं अगर अल नीनो का प्रभाव पड़ता है तो इस साल लोगों को रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की मार झेलनी पड़ सकती है.

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