व्यंग्य संग्रह ~ “कतरनें” का विमोचन न्यायमूर्ति आलोक सिंह द्वारा संपन्न
गोपाल गोयल
● बाँदा के एक सभागार में एक वरिष्ठ व्यंग्य लेखक कैलाश मेहरा के व्यंग्य संग्रह “कतरनें” का विमोचन कार्यक्रम संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि थे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश माननीय आलोक सिंह जी। कैलाश मेहरा एक सशक्त, समर्थ तथा संवेदनशील व्यंग्य लेखक के रूप में उभर कर सामने आए हैं।
● इस व्यंग्य संग्रह “कतरनें” और लेखक कैलाश मेहरा की चर्चा करते हुए वरिष्ठ संपादक गोपाल गोयल ने अपनी समीक्षा मे कहा कि कैलाश मेहरा एक पेशेवर लेखक या व्यंग्यकार नहीं है, फिर भी सामाजिक विसंगतियां उनको बेचैन करती रहती हैं और इस बेचैनी का ही नतीजा है कि वह कलम उठा कर अपनी बेचैनी को व्यंग के परिधान पहनाकर समाज के सामने लाने की कोशिश करते हैं।
● कैलाश मेहरा एक ऐसे व्यंगकार है, एक ऐसे लेखक हैं, जो सामाजिक कुरीतियों, कुरूपताओं, विद्रूपताओं, बुराइयों, सामाजिक असमानताओं तथा अन्याय के विरुद्ध मुखर होते हैं। इन स्थितियों से टकराते हैं, मुठभेड़ करते हैं और एक अच्छे, स्वस्थ्य, सुंदर तथा समरसता वाले समाज की कल्पना करते हैं। ऐसा शायद इसलिए भी है कि वे स्वयं बहुत साफ सुथरे रहने वाले व्यक्ति हैं ~ वेषभूषा से, मिजाज से तथा अपने आचरण से।
● उनके व्यंग सरल भी हैं और आक्रामक भी हैं तथा हमलावर की मुद्रा में भी आते हैं। वे लगातार सशक्त विरोध और प्रतिरोध भी करते हैं। वे छोटी सी छोटी बातों को अपनी व्यंग की विषय वस्तु बनाते हैं और व्यापक रूप में सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक बुराइयों पर भी कटाक्ष करने से नहीं चूकते हैं।
● उदाहरण के लिए उनके कुछ व्यंग्य की झलक दिखाना भी जरूरी और समीचीन होगा ~शहर की गंदगी पर भी उनके कई व्यंग है। एक व्यंग्य है “सीजन” जिसमें वह लिखते हैं कि ~ “सभी जगह सभी चीजों का अलग-अलग सीजन होता है, पर हमारे शहर में गंदगी का सीजन तो बारहमासी है। •••• अपने शहर में एक विभाग है, जो शहर की सफाई कराता है, पर साल में केवल 7 दिन 26 जनवरी 15 अगस्त 2 अक्टूबर ईद बकरीद दशहरा दिवाली।” इसी व्यंग में वह एक किस्सा बताते हैं कि “उनके एक मित्र के बेटे की सगाई टूट गई। वह मित्र इनको कारण पूछने पर बताते हैं कि सगाई के एक दिन पहले ही लड़की वालों का संदेश आया कि इस बदबू और गंदगी से भरे शहर में अपनी लड़की नहीं देंगे, जिनकी होनी थी हो गई, जिनकी नहीं हुई, उनका क्या होगा कालिया ?” एक और व्यंग्य है “लावारिस लाश” ~ जिसमें वे लिखते हैं कि “मेरे घर के सामने रोडवेज की कार्यशाला की दीवार के पास एक लावारिस लाश पड़ी है, पिछले लगभग 1 महीने से वहीं पड़ी है, उसका वारिस आज तक नहीं आया। उस लाश पर जो कपड़े लत्ते, थे, वह तो अगले दिन ही तमाम वारिस बिना दावे किए ले गए, अब तो बस कंकाल बचा है, जिसे ले जाने के लिए कोई तैयार नहीं है।••• यह लाश किसी आदमी की नहीं, चिल्ला के पेड़ की है, जो सड़क के लगभग मध्य में पिछले 1 महीने से पड़ी है और पथराई नजरों से अपने वारिस की तलाश कर रही है, जो कोई भी आता जाता दिखता है, उसे आशा बनती है कि उसकी अर्थी अब उठेगी।”
● पेशे से वकील होने के बावजूद वह अपने पेशे यानी न्याय व्यवस्था के ऊपर भी उंगली उठाने से संकोच नहीं करते हैं। उनका एक व्यंग है :इंसाफ का तराजू” । संक्षेप में जिसकी कथा यह है कि ~ “राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में भंवरी देवी हैं, जो बीजिंग चीन में हुए अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में भारत की ओर से एक प्रतिनिधि के रूप में गई थी। उन्होंने गाँव के एक धनी परिवार की 1 वर्ष की लड़की का विवाह पक्का हो जाने के खिलाफ आवाज ऊँची करने की जुर्रत की, जिसका खामियाजा भंवरी देवी को भोगना पड़ा और वह 5 आदमियों के साथ बलात्कार का शिकार हो गईं। विद्वान जज साहब ने निचली अदालत से पांचों बलात्कारियों को बाइज्जत बरी कर दिया। विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय में यह तर्क देते हुए यह कहा कि यह असंभव है कि 5 व्यक्तियों में, जिनमे से तीन चाचा और दो भतीजे शामिल हों, एक ही महिला के साथ बलात्कार करेंगे और वह भी महिला के पति के सामने ? कितना घिनौना तर्क स्वीकार किया गया ? एक और तर्क था ~ यह भी है कि ऊँची जाति के ये पाँच लोग नीची जात की महिला के साथ बलात्कार करेंगे ? इस निर्णय ने बलात्कारियों के हौसले और भी बुलंद कर दिए हैं पर अभी और भी ऊपर अदालतें हैं, आवाज सुनेंगे और भंवरी देवी को न्याय मिलेगा।” न्याय व्यवस्था पर उंगली उठाता उनका एक और व्यंग है~ “झींगुरी न्याय” । “एक झींगुर एक लस्सी के गिलास में समा गया। लस्सी पहुंच गई एक न्यायिक अधिकारी के पास। आधी लस्सी पीने के बाद उनको आराम फरमाते झींगुर महाशय दिखे, उनको तो गिलास से बाहर निकाल दिया गया और लस्सी बनाने वाले को जेल के अंदर। कुर्सी पर बैठे व्यक्ति की अपनी शान होती है लस्सी में झींगुर ? और कुर्सी पर बैठने वाला चुपचाप कैसे रह सकता है ? झींगुर हत्या के अपराध में लस्सी वाला बासु आज जेल की सलाखों के पीछे है। मामला संगीन बना दिया गया। अधिकारी ने भी न्याय किया और अपना आन बान और शान से बासू का मुकद्दर लिख दिया।” इसी में एक घटना का उल्लेख है एक रेस्टोरेंट में एक महाशय को दाल की प्लेट में मक्खी मिली। ग्राहक ने मालिक से शिकायत की, तो जवाब मिला “₹ 5 की प्लेट में मक्खी ही फ्री दे सकते हैं, एक प्लेट मुर्गा मंगाइए तो मेढक फ्री मिलेगा।”
● उपरोक्त व्यंग्य संग्रह “कतरनें” का विमोचन पिछले दिनों बाँदा मे संपन्न हुआ है। विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आलोक सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि ~ व्यंग्य संग्रह के लेखक कैलाश मेहरा की धर्म पत्नी को प्रथम धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उन्होंने लेखक के पर नही कतरे, इसीलिए “कतरनें” जैसा महत्वपूर्ण व्यंग्य संग्रह आज हमारे हाथों में है।
● इस अवसर पर हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान डाॅ चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ललित ने अपने आशीर्वाद के साथ संग्रह पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की। कार्यक्रम का सफल और सम्मोहक संचालन अधिवक्ता संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं जनवादी रचनाकार आनंद सिन्हा ने किया।
● अंत मे हरिशंकर परसाई जी के एक व्यंग्य की कुछ पंक्तियों को प्रस्तुत करना उपयुक्त रहेगा ~ “मध्यवर्ग का व्यक्ति एक अजीब जीव होता है। एक ओर इसमें उच्चवर्ग की आकांक्षा और दूसरी तरफ़ निम्नवर्ग की दीनता होती है। आकांक्षा और दीनता से मिलकर बना हुआ उसका व्यक्तित्व बड़ा विचित्र होता है। बड़े साहब के सामने दुम हिलाता है और चपरासी के सामने शेर बन जाता है।”
● गोपाल गोयल
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