भारत पर मंडरा रहा अल नीनो का खतरा
भारत पर मंडरा रहा अल नीनो का खतरा
भारत में आखिरी बार साल 2018 में El Nino का असर देखने को मिला था। इस असर के चलते ही साल 2018 में मानसून सामान्य से कमजोर रहा था। तब से अगले लगातार 4 सालों तक भारत में मानसून अच्छा रहा है। ऐसे में 5वें साल भी मानसून का सामान्य रहना थोड़ा मुश्किल लग रहा है
भारत में मानसून पर अल नीनो (El Niño) के प्रभाव का पहला अनुमान अप्रैल तक आने की उम्मीद है। हालांकि बहुत कुछ इसके समय पर निर्भर करेगा। लोकिन भारत को अपने कृषि क्षेत्र पर अल नीनो से होने वाले खतरे से निपटने के लिए आकस्मिक योजना तैयार रखनी चाहिए। बता दें कि El Nino एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समुद्र के जलीय सतह असामान्य रूप से गर्म हो जाती है। समुद्र के जलीय सतह के सामान्य से ज्यादा गर्म होने चलते हवा के चलने के पैटर्न में बदलाव आ जाता है। इस बदलाव के चलते पूरी दुनिया के मौसम पर असर पड़ता है। अमेरिकी सरकार के नेशनल ओसेनिक एंड ऐटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (National Oceanic and Atmospheric Administration) ने इस बात के संकेत दिए हैं कि इस साल El Nino बनने की संभावना दिख रही है।
भारत के मौसम विज्ञान विभाग के पूर्व वैज्ञानिक डीएस पई ने बताया कि इस साल मानसून के दौरान अल नीनो बनने की अच्छी संभावना है। उन्होंने आगे कहा कि केवल अल नीनो ही नहीं बल्कि इस साल इंडियन ओसन डिपोल (Indian Ocean Dipole) और कई दूसरे सिस्टम बनेंगे जो वर्षा का निर्धारण करेंगे।
अगर अल नीनो के बाद ला नीना आता है तो वर्षा कम होने की रहती है संभावना
उन्होंने आगे कहा कि देश में आखिरी ला नीना का असर तीन साल पहले देखने को मिला था। पिछले आंकड़ों पर नजर डालें तो अगर अल नीनो के बाद ला नीना आता है तो उसके बाद कम वर्षा होने की अधिक संभावना रहती है। ऐसे में इस वर्ष सामान्य से कम वर्षा होने की अधिक संभावना है। अगस्त-सितंबर में यानी मानसून के मौसम के अंतिम हिस्से में हमें अल नीनो प्रभाव देखने को मिल सकता है। बता दें कि श्री पई वर्तमान में Institute of Climate Change Studies (जलवायु परिवर्तन अध्ययन संस्थान के निदेशक हैं)।
गौरतलब है कि ला नीना एक समुद्री और वायुमंडलीय घटना है जो एल नीनो के विपरीत ठंडा (कोल्ड) होता है। भारत में 2018 में आखिरी अल नीनो प्रभाव देखने को मिली थी। जिसके चलते 2018 में सामान्य से कम बारिश हुई थी।
डीएस पई ने आगे कहा कि अगर शुरुआत में अच्छी बारिश होती है, तो हम बाद के हिस्से में होने वाली कम बारिश से निपट सकते हैं। हम पहले दो महीनों में पानी का भंडारण कर सकते हैं। लेकिन अगर मानसून शुरुआत में गड़बड़ा जाए और मानसून सीजन के दूसरे हिस्से में गड़बड़ी बनी रहे तो चीजें मुश्किल हो सकती हैं। हालांकि, मानसून और कृषि पर अल नीनो के प्रभाव को लेकर पक्के तौर पर कुछ कहना मुश्किल है। देश में मानसून पर अल नीनो के असर पर पहली भविष्यवाणी अप्रैल के आसपास आएगी। वर्षा के तीन पक्ष हैं। ये हैं समय, कुल मात्रा और वितरण। कम वर्षा भी उस स्थिति में अधिक लाभदायक हो सकती है जब उसका वितरण बेहतर हो।
अल नीनो पर पक्के तौर पर कुछ कहना संभव नहीं
हम ये नहीं जानते हैं कि अल नीनो किस तरह से प्रभाव डालेगा। अच्छे वितरण के साथ कम वर्षा होने पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ सकता है। हम यह भी नहीं कह सकते कि अल नीनो पूरी तरह से बुरी खबर ही है। लेकिन हमारे पास किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए जिला स्तर पर कुछ आकस्मिक योजना होनी चाहिए। इन योजनाओं के साथ हमें तैयार रहना होगा। अगर देश में मानसून आने में देरी होती हो तो हमें देर से बोई जाने वाले बीजों की किस्मों की जरूर होती है। या फिर एक फसल से दूसरी फसल में जाने की जरूरत होती है। देश में ऐसी योजना पहले से ही मौजूद है।
भारत में आखिरी बार 2018 में दिखा था El Nino का असर
भारत में आखिरी बार साल 2018 में El Nino का असर देखने को मिला था। इस असर के चलते ही साल 2018 में मानसून सामान्य से कमजोर रहा था। तब से अगले लगातार 4 सालों तक भारत में मानसून अच्छा रहा है। ऐसे में 5 वें साल भी मानसून का सामान्य रहना थोड़ा मुश्किल लग रहा है।
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