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हिन्दू कालगणना के वैज्ञानिक तथ्य

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11.हिन्दू कालगणना के वैज्ञानिक तथ्य-1

स्वतंत्र भारत की सरकार ने राष्ट्रीय पंचांग निश्चित करने के लिए 1952 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ मेघनाथ साहा की अध्यक्षता में “कलेंडर रिफार्म कमेटी” का गठन किया था। 1952 में “साइंस एंड कल्चर” पत्रिका तथा द हिन्दू अखबार (22 फरवरी, 1953) में प्रकाशित रिपोर्ट:–

इस्वी सन् का ईसाई पंथ कोई मौलिक सम्बंध नहीं है।
यह तो यूरोप के अर्ध सभ्य कबीलों में ईसा मसीह के बहुत पहले से ही चल रहा था।
इसके एक वर्ष में 10 महीने और 304 दिन होते थे।

पुरानी रोमन सभ्यता को भी तब तक ज्ञात नहीं था कि सौर वर्ष और चंद्रमास की अवधि क्या थी। यही दस महीने का साल वे तब तक चलाते रहे, जब तक उनके नेता सेनापति जूलियस सीजर ने इसमें संशोधन नहीं किया। जुलाई माह इसके नाम पर ही है। आगस्टस के नाम पर एक माह अगस्त रखा।

ईसा के 530 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद, ईसाई बिशप डायोनिसियस एक्सीजुअस ने पर्याप्त कल्पनाएँ कर 25 दिसम्बर को ईसा का जन्म दिवस घोषित किया। पूर्व में यह दिवस सूर्य पूजा का दिन था।

1572 में तेरहवें पोप ग्रेगोरी महाशय ने कलेंडर को दस दिन आगे बढ़ाकर 5 अक्टूबर (शुक्रवार) को 15 अक्टूबर माना। इसे ग्रेगोरियन कैलेण्डर कहा गया।

ब्रिटेन ने इसे दो सौ वर्ष बाद 1775 में स्वीकार किया। ब्रिटेन ने इसमें 11 दिन की कमी की और 3 सितम्बर को 14 सितम्बर बना दिया।

यूरोप के केलेंडर में 28,29,30,31 दिनों के महीने होते हैं, जो विचित्र हैं। ये न तो खगोलीय गणना पर आधारित हैं, और न ही किसी प्रकृति चक्र पर। यह कैलेंडर न किसी ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है, न ही इससे सांस्कृतिक बोध होता है।

कलेंडर रिफार्म कमेटी ने विक्रम संवत को ही राष्ट्रीय संवत बनाने की अनुशंषा की थी। वास्तव में विक्रम संवत्, ईस्वी सन् से 57 साल पुराना था।

लेकिन दुर्भाग्यवश…जैसा हमेशा होता आया है …
शोध उपेक्षित रहा, स्वार्थ अपेक्षित हो गया।

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