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सावन सोमवार की व्रतकथा व पूजा विधि

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सावन सोमवार की व्रतकथा व पूजा विधि

सावन माह का नाम आते ही हमारे मन में भी बादल घुमड़ने लगते हैं, ठंडी हवाओं के झौंके सुकून देने लगते हैं, तपती ज्येष्ठ और आषाढ़ में गरमी से बेहाल जी सावन में झूमने लगता है। लेकिन सावन का माह का महत्व हमारे जीवन में इतना भर नहीं है सावन माह भगवान शिव की उपासना का माह भी माना जाता है और इस माह में सबसे पवित्र माना जाता है सोमवार का दिन। वैसे तो प्रत्येक सोमवार भगवान शिव की उपासना के लिये उपयुक्त माना जाता है लेकिन सावन के सोमवार की अपनी महत्ता है। आइये जानते हैं श्रावण मास के सोमवार व्रत का महत्व व पूजा विधि के बारे में।

सोमवार व्रत कथा व महत्व
भगवान शिव की पूजा के दिन यानि सोमवार का हिंदू धर्मानुयायियों विशेषकर शिव भक्तों के लिये बहुत अधिक महत्व होता है। सोमवार में भी श्रावण मास के सोमवार बहुत ही सौभाग्यशाली एवं पुण्य फलदायी माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रावण माह भगवान शिव को बहुत ही प्रिय होता है। स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार सनत कुमार भगवान शिव से पूछते हैं कि आपको सावन माह क्यों प्रिय है। तब भोलेनाथ बताते हैं कि देवी सती ने हर जन्म में भगवान शिव को पति रूप में पाने का प्रण लिया था पिता के खिलाफ होकर उन्होंने शिव से विवाह किया लेकिन अपने पिता द्वारा शिव को अपमानित करने पर उसने शरीर त्याग दिया। उसके पश्चात हिमालय व नैना पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भी शिव से विवाह हेतु इन्होंने श्रावण माह में निराहार रहते हुए कठोर व्रत से भगवान शिवशंकर को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया। इसलिये श्रावण माह से ही भगवान शिव की कृपा के लिये सोलह सोमवार के उपवास आरंभ किये जाते हैं।

पौराणिक ग्रंथों में एक कथा और मिलती है जो कुछ इस प्रकार है। बहुत समय पहले की बात है कि एक क्षिप्रा किनारे बसे एक नगर में भगवान शिव की अर्चना हेतु बहुत सारे साधु सन्यासी एकत्रित हुए। समस्त ऋषिगण क्षिप्रा में स्नान कर सामुहिक रूप से तपस्या आरंभ करने लगे। उसी नगरी में एक गणिका भी रहती थी जिसे अपनी सुंदरता पर बहुत अधिक गुमान था। वह किसी को भी अपने रूप सौंदर्य से वश में कर लेती थी। जब उसने साधुओं द्वारा पूजा कड़ा तप किये जाने की खबर सुनी तो उसने उनकी तपस्या को भंग करने की सोची। इन्हीं उम्मीदों को लेकर वह साधुओं के पास जा पंहुची। लेकिन यह क्या ऋषियों के तपोबल के आगे उसका रूप सौंदर्य फिका पड़ गया। इतना ही नहीं उसके मन में धार्मिक विचार उत्पन्न होने लगे। उसे अपनी सोच पर पश्चाताप होने लगा। वह ऋषियों के चरणों में गिर गई और अपने पापों के प्रायश्चित का उपाय पूछने लगी तब ऋषियों ने उसे काशी में रहकर सोलह सोमवार व्रत रखने का सुझाव दिया। उसने ऋषियों द्वारा बतायी विधिनुसार सोलह सोमवार तक व्रत किये और शिवलोक में अपना स्थान सुनिश्चित किया।

कुल मिलाकर श्रावण माह के सोमवार धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं और सोलह सोमवार के व्रत के पिछे मान्यता है कि इस व्रत से भगवान शिव की कृपा से अविवाहित जातकों का विवाह अपनी पसंद के साथी से होता है।

श्रावण सोमवार व्रत पूजा विधि
श्रावण सोमवार व्रत की पूजा भी अन्य सोमवार व्रत के अनुसार की जाती है। इस व्रत में केवल एक समय भोजन ग्रहण करने का संकल्प लेना चाहिये। भगवान भोलनाथ व माता पार्वती की धूप, दीप, जल, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिये। सावन के प्रत्येक सोमवार भगवान शिव को जल अवश्य अर्पित करना चाहिये। रात्रि में जमीन पर आसन बिछा कर सोना चाहिये। सावन के पहले सोमवार से आरंभ कर 9 या सोलह सोमवार तक लगातार उपवास करना चाहिये और तत्पश्चात 9वें या 16वें सोमवार पर व्रत का उद्यापन करना चाहिये। यदि लगातार 9 या 16 सोमवार तक उपवास करना संभव न हो तो आप सिर्फ सावन के चार सोमवार इस उपवास को कर सकते हैं। शिव पूजा के लिये सामग्री में उनकी प्रिय वस्तुएं भांग, धतूरा आदि भी रख सकते हैं।

                       🌻सावन 🌿

सावन माह की शुरुआत 14 जुलाई से हो रही है और 12 अगस्त तक रहेगा। सावन के पवित्र महीने का पहला सोमवार 18 जुलाई को है। सावन के महीने में चारों ओर हरियाली ही हरियाली होती है। भगवान शिव की आराधना के लिए सावन का महीना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। खासकर सावन के सोमवार का विशेष महत्व होता है। सावन के पांचों सोमवार के दिन भगवान शिव का जलाभिषेक, रुद्राभिषेक करने और सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करने से हर मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और साथ ही मनचाहा जीवन साथी मिलता है।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए करें ये काम।

  1. भगवान शिव को केसर, चीनी, इत्र, दूध, घी, शहद भांग, सफेद पुष्प, धतूरा और बेल पत्र आदि चीजे भगवान शिव को चढ़ाएं।
  2. ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
  3. भगवान शिव को बेल पत्र चढ़ाते समय ये जरूर ध्यान दें की बेल पत्र में तीन पत्ते हो खंडित बेल पत्र भगवान शिव को न चढ़ाएं।
  4. भगवान शिव के ऊपर लाल रंग के पुष्प भूल कर भी अर्पित न करें।
  5. भगवान शिव के ऊपर ताजे फूल अर्पित करें बासी फूल भगवान शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए।
  6. भगवान शंकर को सफेद रंग के साबूत चावल चढ़ाएं। शिवजी को टूटे चावल कभी नहीं चढ़ाना चाहिए।
    7.भगवान शिव को कुमकुम और रोली नहीं चढ़ाना चाहिए।

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