प्रदोष व्रत, मेला खाटू श्याम एवं गोविन्द द्वादशी
प्रदोष व्रत, मेला खाटू श्याम एवं गोविन्द द्वादशी
🚩 मेला खाटू श्याम🚩
हारे का सहारा बाबा हमारा: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटूश्याम धाम देशभर में असीम आस्था का केन्द्र है. खाटू नरेश और शीश के दानी के नाम से जन-जन के हदृय में बसे श्याब बाबा का अपना एक पौराणिक इतिहास और महत्ता है.
खाटू श्याम बाबा, का मूल मन्दिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था. मारवाड़ के शासक के निर्देश पर 1720 ई. में मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया गया.
देश-विदेश में लाखों भक्तों की असीम आस्था के पुंज श्याम बाबा कई नामों से पूजे जाते हैं. वे शीश के दानी हैं और लखदातार भी. वे खाटू नरेश हैं और नीले घोड़े के सवार भी. वे मोर्विनंदन हैं और हारे का सहारा भी. वे बर्बरीक भी हैं और खाटू श्याम सरकार भी.
महाभारत में लाक्षागृह षडयंत्र के बाद पांडवों की मुलाकात वन में हिडिम्बा नामक राक्षसी से हुई थी. भीम का रूप देखकर हिडिम्बा उस पर मोहित हो गई. हिडिम्बा के भाई और माता कुन्ती की आज्ञा से भीम और हिडिम्बा का गन्धर्व विवाह हुआ. हिडिम्बा गर्भवती हुई तो उसने बलशाली पुत्र घटोत्कच को जन्म दिया.
युवा घटोत्कच का विवाह प्रागज्योतिषपुर में मुरदैत्य की बेटी कामकंटका से हुआ. कामकंटका को मोरवी भी कहा जाता है. कुछ समय बाद घटोत्कच का पुत्र हुआ. उसके शेर के समान सुन्दर केश थे. इससे उसका नाम बर्बरीक रखा गया.
महा-पराक्रमी बर्बरीक ने और बल की प्राप्ति के लिए देवियों की आराधना की. उसने तीन ऐसे दुर्लभ और दिव्य तीरों का वरदान पाया जो अपने दुर्गम से दुर्गम लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे.
देवियों की आज्ञा से बर्बरीक वहीं निवास करने लगे. तब मगध देश से विजय नामक ब्राह्मण वहां आए और सात शिवलिंगों की पूजा की. स्वप्न में ब्राह्मण को देवी ने कहा कि सिद्ध माता के सामने आंगन में साधना करो. बर्बरीक तुम्हारी सहायता करेंगे.
तब बर्बरीक ने साधना में बाधा उत्पन्न करने वाले असुरों को यमलोक भेज दिया. इससे प्रसन्न होकर नागों के राजा वासुकि ने वर मांगने को कहा तो बर्बरीक ने युद्ध में विजयी होने का वरदान मांगा.
महाभारत युद्ध में भाग लेने के इरादे से बर्बरीक नीले घोड़े पर सवार होकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर जाने लगा. तब मां ने वचन लिया जो कमजोर होगा या जो पक्ष हार रहा होगा तुम उसके पक्ष से लड़ोगे.
श्रीकृष्ण जानते थे कि कौरवों की हार निश्चित है. ऐसे में यदि बर्बरीक उनकी ओर से लड़ेगा तो महाभारत युद्ध का निर्णय कुछ और हो सकता है. तब वे गरीब ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक के सामने आए. अनजान बनकर उन्होंने पूछा कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो ? जवाब में बर्बरीक ने बताया कि वह एक दानी योद्धा है.
श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम अपने तीन तीरों से युद्ध में क्या कर सकते हो ? बर्बरीक ने कहा कि यह दिव्य बाण हैं. श्रीकृष्ण ने उनकी परीक्षा लेनी चाही तो बर्बरीक ने एक बाण चलाया जिससे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया. एक पत्ता श्रीकृष्ण के पैर के नीचे था. इसलिए बाण पैर के ऊपर ठहर गया.
बर्बरीक ने कहा कि आप पैर हटा लें वरना यह पैर भेद देगा. श्री कृष्ण बर्बरीक की क्षमता से हैरान थे और किसी भी तरह से उसे युद्ध में भाग लेने से रोकना चाहते थे.
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तो बड़े पराक्रमी हो मुझ गरीब ब्राह्मण को कुछ दान नहीं दोगे. बर्बरीक ने जब दान मांगने के लिए कहा तो उन्होंने बर्बरीक से उसका शीश ही मांग लिया.
बर्बरीक समझ गया कि यह ब्राह्मण नहीं कोई और है. उन्होंने कहा कि ब्राह्मण देव आप अपना वास्तविक परिचय दें. तब श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया तो बर्बरीक ने खुशी-खुशी शीश दान देना स्वीकर कर लिया.
शीश दान से पहले बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से महाभारत युद्ध देखने की इच्छा जताई थी. इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए एक ऊंचे पहाड़ पर पीपल के पेड़ स्थापित कर दिया. श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के उस कटे सिर को वरदान दिया कि कलियुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगे. तुम्हारे स्मरण और दर्शन मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और उन्हें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी.
महाभारत के युद्ध में विजयश्री प्राप्त होने पर पांडव जीत का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे. तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है. क्योंकि उन्होंने पूरा युद्ध देखा है. तब बर्बरीक के शीश ने बताया कि मुझे तो युद्ध में श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता नजर आया जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे.
वैसे हर माह की एकादशी को हजारों की संख्या में भक्त मंदिर में बाबा के दर्शन को आते हैं. प्रत्येक वर्ष होली के दौरान खाटू श्यामजी का मेला लगता है. एकादशी के दिन इस मेले में देश-विदेश से लाखों भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं.
खाटूश्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है. गरीब-अमीर सभी लोग यहां आम आदमी की तरह आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं. ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.
भक्तों का पूर्ण विश्वास है कि बाबा खाटू श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं. खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं. वे रंक को भी राजा बना सकते हैं.
🚩ॐ श्री श्याम देवाए नमः🚩
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