चिकित्सीय सेवाएं उपभोक्ता कानून के अंतर्गत, सेवा दोष, लापरवाही या उपेक्षा पर चिकित्सक भी दंडयोग्य :सुप्रीमकोर्ट
चिकित्सीय सेवाएं उपभोक्ता कानून के अंतर्गत, सेवा दोष, लापरवाही या उपेक्षा पर चिकित्सक भी दंडयोग्य :सुप्रीमकोर्ट
जागरूक रहिए नुकसान से बचिए
✍️ हरिओम विश्वकर्मा एडवोकेट जालौन
आज के इक महत्वपूर्ण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सही करार देते हुए मेडिको लीगल एक्शन ग्रुप की याचिका खारिज कर दी।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने शुक्रवार को कहा, महज 2019 के अधिनियम द्वारा 1986 के अधिनियम को निरस्त करने से डॉक्टरों द्वारा मरीजों को प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को ‘सेवा’ शब्द की परिभाषा से बाहर नहीं किया जाएगा। याचिकाकर्ता की दलील थी कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत डॉक्टरों के खिलाफ उपभोक्ता शिकायतें दर्ज नहीं की जा सकती है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2021 में याचिका खारिज कर दिया था।
सेवा की परिभाषा व्यापक
याचिकाकर्ता ने दलील दी, 1986 के कानून में ‘सेवाओं’ की परिभाषा में स्वास्थ्य सेवा का उल्लेख नहीं था। इसे नए अधिनियम के तहत शामिल करने का प्रस्ताव था। अंतत: हटा दिया गया। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, अधिनियम में ‘सेवा’ की परिभाषा व्यापक है। यदि संसद इसे बाहर करना चाहती तो वह इसे स्पष्ट रूप से कहती।
लापरवाही से नुकसान
अगर डॉक्टर की लापरवाही से मरीज को किसी तरह का नुकसान होता है जिसमें उसकी मौत नहीं होती है लेकिन शरीर को बहुत नुकसान होता है, तब ऐसे नुकसान के लिए डॉक्टर को जिम्मेदार माना जाता है। इस पर आपराधिक कानून भी है। आपराधिक कानून का अर्थ होता है ऐसा कानून जिसमें किसी व्यक्ति को दंडित किया जाता है। डॉक्टर की लापरवाही अपराध की श्रेणी में आती है, ऐसी लापरवाही को भारतीय दंड संहिता 1860 में उल्लेखित किया गया है।
धारा 337
भारतीय दंड संहिता की धारा 337 लापरवाही से होने वाली साधारण क्षति के संबंध में उल्लेख करती है। हालांकि इस धारा में डॉक्टर जैसे कोई शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है। लेकिन यह सभी तरह की लापरवाही के मामले में लागू होती है। किसी भी व्यक्ति की लापरवाही से अगर सामने वाले के शरीर को किसी भी तरह की साधारण नुकसानी होती है तभी यह धारा प्रयुक्त होती है।
इस धारा के अनुसार अगर डॉक्टर की लापरवाही से कोई छोटी मोटी नुकसानी होती है। जैसे ऑपरेशन में किसी तरह का कोई कॉम्प्लिकेशन आ जाना और ऐसा काम कॉम्प्लिकेशन डॉक्टर की लापरवाही के कारण आया है, गलत दवाइयों के कारण आया है। इस लापरवाही से अगर सामान्य नुकसान होता है तब यह धारा लागू होती है। इस धारा में 6 महीने तक के दंड का प्रावधान है।
धारा 338
भारतीय दंड संहिता की धारा 338 किसी आदमी के लापरवाही से किए गए काम की वजह से सामने वाले को गंभीर नुकसान होने पर लागू होती है।
कभी-कभी लापरवाही इतनी बड़ी होती है कि इससे सामने वाले व्यक्ति को बहुत ज्यादा नुकसान हो जाता है। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि नुकसान का मतलब शारीरिक नुकसान से है, जिसे कानून की भाषा में क्षति कहा जा सकता है। किसी भी लापरवाही से अगर किसी को गंभीर प्रकार की चोट पहुंचती है और स्थाई अपंगता जैसी स्थिति बन जाती है, तब यह धारा लागू होगी।
डॉक्टर के मामले में भी धारा लागू हो सकती है। अगर डॉक्टर अपने इलाज में किसी भी तरह की कोई लापरवाही बरतता है और उसकी ऐसी लापरवाही की वजह से मरीज को स्थाई रूप से कोई चोट पहुंच जाती है, वे स्थाई रूप से अपंग हो जाता है जिससे उसका जीवन जीना दूभर हो जाए तब डॉक्टर को इस धारा के अंतर्गत आरोपी बनाया जाता है। भारतीय दंड संहिता की इस धारा के अनुसार 2 वर्ष तक का कारावास दोषसिद्ध होने पर दिया जा सकता है।
इस धारा का मूल अर्थ यह है कि किसी भी लापरवाही से गंभीर चोट पहुंचना। वाहन दुर्घटना के मामले में भी धारा लागू होती है। डॉक्टर की लापरवाही इतनी होगी कि केवल मरीज मृत्यु से बच गया और बाकी सब कुछ उसके साथ घट गया तब यह धारा लागू होती है।
सिविल उपचार
किसी भी व्यक्ति की लापरवाही से अगर सामने वाले को किसी प्रकार का कोई नुकसान होता है, तब शारीरिक नुकसान होने पर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसी के साथ जिस व्यक्ति को नुकसान हुआ है उसे इसकी क्षतिपूर्ति दिलाने का भी उल्लेख है। सिविल उपचार का अर्थ यह होता है कि किसी भी व्यक्ति को उस स्थिति में भेजना जिस स्थिति में वह पहले से था। अगर किसी की लापरवाही के कारण किसी व्यक्ति को शारीरिक रूप से नुकसान हुआ है और इसी के साथ उसको आर्थिक रूप से भी नुकसान हुआ है।
एक डॉक्टर की लापरवाही किसी भी मरीज की जिंदगी बर्बाद कर सकती है। उसकी लापरवाही के कारण कोई व्यक्ति स्थाई रूप से अपंग भी हो सकता है। ऐसी अपंगता की वजह से वह सारी उम्र किसी तरह का कोई काम नहीं कर पाता है जिससे उसके जीवन में आर्थिक संकट आ जाता है। अनेक मामले देखने को मिलते हैं जहां डॉक्टर की लापरवाही के कारण लोग स्थाई रूप से अपंग हो जाते हैं, वह कोई काम काज करने लायक भी नहीं रहते हैं तब उनका जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। कानून यहां पर ऐसे लोगों को राहत देता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019
डॉक्टर की सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में रखा गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का अर्थ होता है उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना। अगर किसी सेवा देने वाले या उत्पाद बेचने वाले व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा काम किया गया है जिससे उपभोक्ता को किसी तरह का कोई नुकसान होता है तब मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत चलाया जाता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत बनाई गई कोर्ट जिसे कंजूमर फोरम कहा जाता है। यहां किसी तरह की कोई भी कोर्ट फीस नहीं लगती है और लोगों को बिल्कुल निशुल्क न्याय दिया जाता है। हालांकि यहां पर न्याय होने में थोड़ा समय लग जाता है क्योंकि मामलों की अधिकता है और न्यायालय कम है। किसी डॉक्टर की लापरवाही से होने वाले नुकसान की भरपाई कंजूमर फोरम द्वारा करवाई जाती है। मरीज कंज्यूमर फोरम में अपना केस रजिस्टर्ड कर सकते हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत लगने वाले ऐसे मुकदमों में डॉक्टर को प्रतिवादी बनाया जाता है और मरीज को वादी बनाया जाता है। इस फोरम में मरीज फोरम से क्षतिपूर्ति की मांग करता है। कंज्यूमर फोरम मामला साबित हो जाने पर पीड़ित पक्ष को डॉक्टर से क्षतिपूर्ति दिलवा देता है। लेकिन यह ध्यान देने योग्य बात है कि यहां पर मामला साबित होना चाहिए। अगर डॉक्टर की लापरवाही साबित हो जाती है तब मरीज को क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है।
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