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Rajni

ममता का भ्रमर

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ममता का भ्रमर

एक भ्रमर सायंकाल के समय एक कमल पर बैठकर उसका रस पी रहा था। इतने में सूर्यास्त होने को आ गया। सूर्यास्त होने पर कमल सकुचित हो जाता है। अत: कमल बंद होने लगा, पर रसलोभी मधुप विचार करने लगा – “अभी क्या जल्दी है, रात भर आनन्द से रसपान करते रहें – रात बीतेगी, सुन्दर प्रभात होगा,सूर्यदेव उदित होंगे, उनकी किरणों से कमल पुन: खिल उठेगा, तब मैं बाहर निकल जाऊँगा।” वह भ्रमर इस प्रकार विचार कर ही रहा था कि हाय ! एक जंगली हाथी ने आकर कमल को डंडी समेत उखाड़कर दाँतों में दबाकर पीस डाला। यों उस कमल के साथ भ्रमर भी हाथी का ग्रास बन गया।

इस प्रकार पता नहीं, कालरूपी हाथी कब हमारा ग्रास कर जाये। मृत्यु आने पर एक श्वास भी अधिक नहीं मिलेगा। मृत्युकाल आने पर एक क्षण के लिए भी कोई जीवित नहीं रह सकता। उस समय कोई कहे कि ‘मैंने वसीयतनामा बनाया है। कागज तैयार है,केवल हस्ताक्षर करने बाकी हैं। एक श्वास से अधिक मिल जाय तो मैं सही कर दूँ।’ पर काल यह सब नहीं सुनता। बाध्य होकर मरना ही पड़ता है। यही है हमारे जीवन कि स्थिति। अतएव मानव-जीवन कि सफलता के लिए हमें संसार के पदार्थों से ममता उठाकर भगवान् में ममता करनी चाहिए। हम प्राणी-पदार्थों में ममता बढ़ाते हैं, पर यह ममता स्वार्थमूलक है। स्वार्थ में जरा धक्का लगते ही यह ममता टूट जाती है।

इसीलिए भगवान् श्री रामचन्द्रजी विभीषण से कहते हैं -माता,पिता, भाई,स्त्री,शरीर,धन,सुहृद,मकान, परिवार – सब की ममता के धागों को सब जगह से बटोर लो,ममता को धागा इसलिए कहा गया है कि उसे टूटते देर नहीं लगती। फिर उन सब की एक मजबूत डोरी बट लो। उस डोरी से अपने मन को मेरे (श्री रामचन्द्र जी के) चरणों से बांध दो। अर्थात मेरे चरण ही तुम्हारे रहे और कुछ भी तुम्हारा न हो। सारी ममता मेरे चरणों में ही आकर केन्द्रित हो जाय। ऐसा करने से क्या होगा ? ऐसे सत्पुरुष मेरे ह्रदय में वैसे ही बसते हैं,जैसे लोभी के ह्रदय में धन। अर्थात लोभी के धन की तरह मैं उन्हें अपने ह्रदय में रखता हूँ”। अत: संसार के प्राणी-पदार्थों से ममता हटाकर एकमात्र भगवान् में ममता करनी चाहिए।

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