महात्मा फुले 28 नवम्बर पुण्य-तिथि
महात्मा फुले 28 नवम्बर पुण्य-तिथि!!!
महात्मा फुले जी का जन्म 11 अप्रैल 1827 ई. में महाराष्ट्र पुणे में एक माली के परिवार में हुआ था.
जोतिराव गोविंदराव फुले एक समाज सुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, लेखक, दार्शनिक तथा एक क्रांतिकारी थे. इन्हें महात्मा फुले एवं जोतिबा फुले के नाम से जाना जाता है.
इन्होंने जीवन भर दलितों और शोषितों के लिए कार्य किया एवं सन् 1873 ई. में महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया.
महात्मा फुले जी को इस प्रश्न का उत्तर नहीं सूझता था कि हमारा देश इतना बड़ा होते हुए भी गुलाम क्यों है. हम गुलाम क्यों है ?
गुलामी से फुले जी को बहुत नफ़रत थी.उन्होंने महसूस किया कि जातियों और पंथों में बटे इस देश का सुधार तभी संभव है जब लोगों की मानसिकता में सुधार होगा.
उस समय समाज में वर्ग भेद अपनी चरम सीमा पर था. समाज में स्त्री और वंचित वर्ग की दशा अच्छी नहीं थी. उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता था. फुले जी को इस स्थिति से बहुत दुःख होता था. उन के मन में पीड़ा होती थी. फुले जी हमेशा चिंतन करते थे कि उनका उद्धार कैसे होगा ?
फुलेजी ने वंचितों की शिक्षा के लिए सामाजिक संघर्ष का बोझा उठाया. उन का मानना था कि माताएँ जो संस्कार बच्चों पर डालती हैं उसी में उन बच्चों के भविष्य के बीज होते हैं.
शास्त्रों में कहा भी गया है कि माता निर्माता भवती इस लिए कन्याओं को शिक्षित करना आवश्यक है. नारी शिक्षित होगी तो दो कुलों का उद्धार होगा। समाज में नारियों को पढ़ना और संस्कारवान होना होगा.
उन्होंने पुणे (महाराष्ट्र) में लड़कियों के लिए भारत में पहला विद्यालय खोला.
इन प्रमुख आन्दोलनों के अतिरिक्त हर क्षेत्रमें छोटे-छोटे आन्दोलन जारी थे जिसने सामाजिक और बौद्धिकस्तर पर लोगों को परतंत्रता से मुक्त किया था. लोगों में नये विचार, नये चिन्तन की शुरुआत हुई, जो आज़ादी की लड़ाई में उनके सम्बल बने.
उन्होंने किसानों और मजदूरों के हकों के लिए भी संगठित प्रयास किया था.
ज्योतिराव गोविन्दराव फुले की मृत्यु 28 नवम्बर 1890 को पुणे में हुई. इस महान समाजसेवी ने अछूतोद्धार के लिए सत्य शोधक समाज स्थापित किया था.
उनका यह भाव देखकर 1888 में, उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई थी. देश से छुआछूत समाप्त करने और समाज को सशक्त बनाने में ज्योतिराव फुले की भूमिका विशेष रही है.
ऐसे ज्ञानवान, महान क्रांतिकारी, भारतीय विचारक, लेखक, दार्शनिक एवं समाजसेवी ज्जोतिबा फुले को उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन् .
हम सभी को व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना का परित्याग कर राष्ट्र के नव निर्माण में अपना सर्वोत्तम कर्त्तव्य कर्म करने का यत्न करना चाहिए।
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