Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.

महाराणा प्रताप 9 मई 1540 जन्मोत्सव।

22

महाराणा प्रताप 9 मई 1540 जन्मोत्सव।

महान् योद्धा बलिदानी,राष्ट्र भक्तों के प्ररेणा श्रोत एवं परम् वीर महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई.को राजस्थान के मेवाड़ में सूर्य वंशी सिसोदिया राजवंश के राजपूताना कुंभलगढ़ दुर्ग में महारानी जीवत (जयवंता) कँवर के गर्भ से हुआ. इनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह था. महाराणा प्रताप पूरे जीवन मुग़लों से लड़ते रहे पर कभी हार नहीं मानी.

महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:-

महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे.

जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा – कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए. तब माँ का उत्तर मिला- उस महान देश की वीरभूमि हल्दी-घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ” लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था! “बुक ऑफ़
प्रेसिडेंट यु एस ए ‘किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं.

महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो ग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था. कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था.

आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं.

अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी.
लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया.

हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20,000 सैनिक थे और
अकबर की ओर से 85,000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए.

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है.

महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं. इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है. मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को.

हल्दी घाटी के युद्ध के 300 वरु बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई. आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था.

महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा “श्री जैमल मेड़तिया जी” ने दी थी जो 8,000 राजपूत वीरों को लेकर 60,000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48,000 मारे गए थे जिनमे 8,000 राजपूत और 40,000 मुग़ल थे.

महाराणा से अकबर थर-थर काँपता था.

मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे. आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील.

महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ. उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया. जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है.

राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी. यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे.

मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था. सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे.

महाराणा प्रताप की लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में.

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading