माँ बगलामुखी वैशाख शुक्ल अष्टमी प्रकटोत्सव।
माँ बगलामुखी वैशाख शुक्ल अष्टमी प्रकटोत्सव।
एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। यह तूफान सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए।
इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव ने कहा: शक्ति रूप के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएं। तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंच कर कठोर तप किया। भगवान विष्णु के तप से देवी शक्ति प्रकट हुईं। उनकी साधना से महात्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुईं। सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करती महापीतांबरा स्वरूप देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तेज से ब्रह्मांडीय तूफान थम गया।
मंगलयुक्त वैशाख शुक्ल अष्टमी की अर्धरात्रि में देवी शक्ति का देवी बगलामुखी के रूप में प्रादुर्भाव हुआ था, इसलिए बगलामुखी अष्टमी, बगलामुखी माता के अवतार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका। देवी बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं। इनके शिव को महारुद्र कहा जाता है। इसीलिए देवी सिद्ध विद्या हैं। माँ बगलामुखी मन्त्र स्वाधिष्ठान चक्र की कुण्डलिनी जागृति के लिए उपयोग करते हैं! भक्त इस दिन अन्न का दान करते हैं, तथा माँ मंगल से सम्बन्धित समस्याओं की समाधान देवी है। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।
दस महाविधाओ मे से आठवी महाविधा है देवी बगलामुखी। बगला एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ दुल्हन है,
अर्थात् दुल्हन की तरह आलौकिक सौन्दर्य और अपार शक्ति की स्वामिनी होने के कारण देवी का नाम बगलामुखी पड़ा! इनकी उपासना से भक्त के जीवन की हर बाधा दूर होती है और शत्रुओ का नाश के साथ साथ बुरी शक्तियों का भी नाश करती है।
देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। मान्यता है कि देवी की प्रतिमा पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है!
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