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भगवान दत्तात्रेय प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

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भगवान दत्तात्रेय प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

दत्तात्रेय ने पारद से व्योमयान उड्डयन की शक्ति का पता लगाया

भगवान दत्तात्रेय ने चिकित्सा शास्त्र में क्रांतिकारी अन्वेषण किया

मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका भक्तों के लिए पूजनीय स्थान

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। 
भगवान दत्तात्रेय के जयन्ती के उपलक्ष्य पर श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि त्रिदेव स्वरूप, अत्रि अनुसुईया पुत्र, संन्यास परम्परा के प्रेरणास्रोत श्री गुरू दत्तात्रेय भगवान भगवान में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं, इसीलिए उन्हें परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु और श्रीगुरुदेवदत्त भी कहा जाता है। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय ने पारद से व्योमयान उड्डयन की शक्ति का पता लगाया था, और चिकित्सा शास्त्र में क्रांतिकारी अन्वेषण किया था। इससे पहले शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द महाराज ने भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा के समक्ष श्रद्धापूर्वक नमन कर सर्वजन कल्याण की कामना की। शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने भगवान दत्तात्रेय के दर्शनलाभ प्राप्ति सहित पूजन किया । इस अवसर पर सनातन धर्मावलम्बियों को दिए अपने सन्देश में जगद्गुरु नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि– “आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः । मूर्तीत्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते ।।

शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा कि भगवान दत्तात्रेय नित्य प्रातः काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। देश भर में भगवान दत्तात्रेय को गुरु के रूप में मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है। भगवान दत्तात्रेय जी के दर्शन-पूजन से त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव) का दर्शन-पूजन एक साथ हो जाता है। उन्होंने कहा कि त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था। इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है। शैवपंथी उन्हें शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी भगवान दत्तात्रेय हैं।

भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली। दत्तात्रेय ने अन्य पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की। भगवान दत्तात्रेय जी के कहे मुताबिक जिससे जितना-जितना गुण मिला है, उनको उन गुणों का प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है। इस प्रकार उनके 24 गुरु हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी। भगवान दत्तात्रेय ने परशुराम जी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान की थी, और उन्होंने ही शिवपुत्र कार्तिकेय को अनेक विद्याएँ दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुआ 

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