स्वदेशी दिवस 12 दिसम्बर बलिदान-दिवस.
बाबू गेनू का बलिदान: स्वदेशी दिवस के रूप में 12 दिसम्बर को मनाया जाता है. देशप्रेम की भावना के वशीभूत होकर कभी -कभी सामान्य सा दिखायी देने वाला व्यक्ति भी बहुत बड़ा काम कर जाता है. ऐसा ही बाबू गेनू के साथ हुआ.
गेनू का जन्म 1908 में पुणे जिले के ग्राम महालुंगे पडवल में हुआ था.इस गाँव से कुछ दूरी पर ही शिवनेरी किला था, जहाँ हिन्दू कुल गौरव छत्रपति शिवा जी महाराज का जन्म हुआ था.
गेनू बचपन में बहुत आलसी बालक था. देरतक सोना और फिर दिन भर खेलना ही उसे पसन्द था. पढ़ाई में भी उस की रुचि नहीं थी; पर दुर्भाग्य से उसके पिता शीघ्र ही चल बसे. इसके बाद उनके बड़े भाई भीम उसके संरक्षक बन गये. वे स्वभाव से बहुत कठोर थे. उनकी आज्ञानुसार वह जानवरों को चराने के लिए जाता था. इस प्रकार उसका समय कटने लगा.
एक बार उस का एक बैल पहाड़ी से गिर कर मर गया. इस पर बड़े भाई ने उसे बहुत डांटा. इस से दु:खी हो कर गेनू मुम्बई आ कर एक कपड़ा मिल में काम करने लगा. उसी मिल में उसकी माँ कोंडाबाई भी मजदूरी करती थी.
उनदिनों देश में स्वतन्त्रता का संघर्ष छिड़ा था. स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आन्दोलन जोरों पर था. 22 वर्षीय बाबू गेनू भी इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे.
मिल के अपने साथियों को एकत्र कर वह आजादी एवं स्वदेशी का महत्व बताया करते थे.
26 जनवरी,1930 को ‘सम्पूर्ण स्वराज्य माँग दिवस’ आन्दोलन में बाबू गेनू की सक्रियता देख कर उन्हें तीन महीने के लिए जेल भेज दिया; पर इससे बाबू के मन में स्वतन्त्रता प्राप्ति की चाह और तीव्र हो गयी.
12 दिसम्बर, सन् 1930 को मिल मालिक मैनचेस्टर से आये कपड़े को मुम्बई शहर में भेजने वाले थे.
जब बाबू गेनू को यह पता लगा, तो उसका मन विचलित हो उठा. उसने अपने साथियों को एकत्र कर हर कीमत पर इसका विरोध करने का निश्चय किया. 11 बजे वे कालबा देवी स्थित मिल के द्वार पर आ गये.
धीरे- धीरे पूरे शहर में यह खबर फैल गयी. इस से हजारों लोग वहाँ एकत्र हो गये. यह सुनकर पुलिस भी वहाँ आ गयी.
कुछ ही देर में विदेशी कपड़े से लदा ट्रक मिल से बाहर आया उसे सशस्त्र पुलिस ने घेर रखा था. गेनूके संकेत पर घोण्डू रेवणकर ट्रक के आगे लेट गया. इस से ट्रक रुक गया. जनता ने ‘वन्दे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाये. पुलिस ने उसे घसीट कर हटा दिया; पर उसके हटते ही दूसरा कार्य कर्ता वहाँ लेट गया. बहुत देरतक यह क्रम चलता रहा.
यह देखकर अंग्रेज पुलिस सार्जेण्ट ने चिल्ला कर आन्दोलनकारियों पर ट्रक चढ़ाने को कहा; पर ट्रक का भारतीय चालक इसके लिए तैयार नहीं हुआ. इस पर पुलिस सार्जेण्ट उसे हटाकर स्वयं उसके स्थान पर जा बैठा.
यह देख कर बाबू गेनू स्वयं ही ट्रक के आगे लेट गया. सार्जेण्ट की आँखों में खून उतर आया. उसने ट्रक चालू किया और बाबू गेनू को रौंद डाला.
सब लोग भौंचक रह गये. सड़क पर खून ही खून फैल गया. गेनू का शरीर धरती पर ऐसे पसरा था, मानो कोई छोटा बच्चा अपनी माँ की छाती से लिपटा हो. उसे तत्क्षण अस्पताल ले जाया गया; पर उसके प्राण पखेरू तो पहले ही उड़ चुके थे.
इस प्रकार स्वदेशी के लिए बलिदान देने वालों की माला में पहला नाम लिखाकर बाबू गेनू ने स्वयं को अमर कर लिया.
तभी से 12 दिसम्बर को ‘स्वदेशी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
हम सभी को व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना का परित्याग कर राष्ट्र के नव निर्माण में अपना सर्वोत्तम कर्त्तव्य कर्म करने का यत्न करना चाहिए.
मैं अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से समाज की भावी पीढ़ी को संस्कारित करके अपने मानव होने की जिम्मेदारी ईमानदारीपूर्वक निभा रहा हूँ.
जिस प्रकार हमें मृत्यु के बाद स्वर्ग प्राप्त होता हैं हमें ऐसा जीवन बनाना होगा कि हम कह सके कि हम मृत्यु से पहले स्वर्ग में थे.
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