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गुरु हरकिशन जी चैत्र शुक्ल चतुर्दशी ज्योति-जोत दिवस

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गुरु हरकिशन जी चैत्र शुक्ल चतुर्दशी ज्योति-जोत दिवस

सिखों के आठवें गुरु हर किशन जी का जन्म श्रावण मास, कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को सन् 1656 ई. में कीरतपुर साहिब में हुआ था. उनके पिता सिख पंथ के सातवें गुरु, गुरु हरि राय जी थे और उनकी माता का नाम किशन कौर था.

बचपन से ही गुरु हर किशन जी बहुत ही गंभीर और सहनशील प्रवृत्ति के थे. वे 5 वर्ष की आयु में भी आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे. उनके पिता अकसर हर किशन जी के बड़े भाई राम राय और उनकी कठिन से कठिन परीक्षा लेते रहते थे. जब हर किशन जी गुरुबाणी पाठ कर रहे होते तो वे उन्हें सुई चुभाते, किंतु बाल हर किशन जी गुरुबाणी में ही रमे रहते.

उनके पिता गुरु हरि राय जी ने गुरु हर किशन को हर प्रकार से योग्य मानते हुए सन् 1661 में गुरुगद्दी सौंपी. उस समय उनकी आयु केवल 5 वर्ष की थी. इसीलिए उन्हें बाल गुरु कहा गया है. गुरु हर किशन जी ने अपने जीवन काल में केवल तीन वर्ष तक ही सिख पंथ का नेतृत्व किया.

गुरु हर किशन जी ने बहुत ही कम समय में जनता के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करके लोकप्रियता प्राप्त की थी. ऊंच-नीच और जाति का भेदभाव मिटाकर उन्होंने सेवा का अभियान चलाया, लोग उनकी मानवता की इस सेवा से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें बाला पीर कहकर पुकारने लगे.

गुरु जी के दिल्ली प्रवास के दौरान ही दिल्ली में चेचक की महामारी फैल गई. चेचक ग्रस्त लोगों की दयनीय दशा देखकर बाल-गुरु का कोमल एवं स्नेहशील हृदय विदीर्ण हो उठा. वे चेचक के रोगियों की देखभाल और सेवा करने में जुट गये. इतनी छोटी आयु में लोक के कष्ट एवं पीड़ा के प्रति उनके अन्दर इतनी सहानुभूति थी.

गुरु जी द्वारा दी गई औषधि और सेवा से अनेक रोगी ठीक हो गये. किन्तु स्वयं गुरु जी भी चेचक की गिरफ्त में आ गये. जीवन काल की पूर्णता निकट अनुभव कर गुरु जी ने बाबा बकाले कहकर अगले गुरु श्री तेगबहादुर जी की ओर संकेत किया और सन् 1664 ई. में केवल आठ वर्ष की आयु में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष चौदस (चौदहवीं तिथि) को वाहेगुरु शबद् का उच्चारण करते हुए ज्योति-जोत में समा गए. गुरु हर किशन जी का जीवन काल केवल आठ वर्ष का ही था.

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