गुरु अमरदास वैशाख शुक्ल एकादशी प्रकटोत्सव
गुरु अमरदास वैशाख शुक्ल एकादशी प्रकटोत्सव
गुरु अमरदास जी का जन्म वैशाख शुक्ल एकादशी संवत 1,536 (23 मई1,479 ईस्वी) को अमृतसर के बासर के गाँव में पिता श्री तेजभान एवं माता लखमी जी के घर हुआ. उनका विवाह मंसा देवी से हुआ और उनके चार बच्चे थे जिनके नाम मोहरी, मोहन, दानी और भानी था. उन्होंने 21 बार हरिद्वार की पैदल फेरी लगाई थी.
गुरु अमरदास जी सिख पंथ के तीसरे गुरु थे. गुरु अमरदास जी ने एक बार बीबी अमरो जी (गुरु अंगददेव साहिब की पुत्री) से गुरु नानक साहिब के शबद् सुने. उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधु से गुरु अंगददेव जी का पता पूछकर तुरंत उनके गुरु चरणों में आ गये. उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगददेव जी को अपना गुरु बना लिया और लगातार 11 वर्षों तक एकनिष्ट भाव से गुरु सेवा की. वे एक पहर रात रहते ही उठकर वे तीन कोस दूर व्यास नदी से गुरु जी के स्नान के लिए पानी लाया करते थे. वे लंगर की सेवा करते, संगत की सहायता करते और परमात्मा के सिमरन में लीन रहते. सेवा का ऐसा उदाहरण कोई और नहीं मिलता है. उनकी सेवा भावना का सम्मान करते हुए गुरु अंगद देव ने उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी.
गुरु अमरदास जी का विश्वास था कि मनुष्य जैसे कर्म करता है, वैसी ही अंतर अवस्था बनती है और उसी के अनुरूप फल मिलता है. गुरु अमरदास जी ने कहा कि ईश्वर एक है और घट-घट में निवास कर रहा है. इसलिए किसी की निंदा करने के स्थान पर ईश्वर में ध्यान लगाना चाहिए. गुरु अमरदास जी ने प्रेम भाव से सेवा करने को प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि इससे सुख और सहज की अवस्था बनती है और मन निर्मल होता है. गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब नगर बसाया और एक बाऊली का निर्माण कराया. वैशाखी के अवसर पर मेले की परंपरा भी गुरु साहिब ने ही आरंभ की थी.
उन्होंने धर्म प्रचार के लिए एक निश्चित व्यवस्था तैयार कर बाईस केंद्र भी बनाए. गुरु अमरदास जी एक महान समाज सुधारक थे. वे समाज को केवल आध्यात्मिक ज्ञान ही नहीं देते थे बल्कि समाज की बुराईयों को दूर करने में विश्वास रखते थे. वे हमेशा स्त्री शिक्षा, उनकी समानता के पक्षधर थे. गुरु जी ने विभिन्न सामाजिक कुरीतियों जैसे सती प्रथा, पर्दा प्रथा के विरुद्ध चेतना पैदा की और कई विधवाओं के विवाह कराए. उन्होंने नियम बना दिया था कि जो भी उनके दर्शन के लिए आएगा, पहले उसे सभी के साथ एक पंक्ति में बैठ कर लंगर छकना होगा. इससे ऊंच-नीच, छुआछूत और वर्ग भेद की मानसिकता पर बड़ा प्रहार हुआ.
अमृतसर शहर बसाने के लिए स्थान उन्होंने ही चिह्नित किया था. गुरु अमरदास जी ने रामकली राग के अंतर्गत आनंद शीर्षक से श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित वाणी में संदेश दिया कि जीवन परमात्मा की भक्ति कर मुक्ति पाने हेतु मिला है. इसके अतिरिक्त कोई और उद्देश्य नहीं है. मन सदैव परमात्मा में रमा रहे और तन धर्म के मार्ग पर चलता रहे.
Comments are closed.