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क्या आप जानते हैं पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत मेंक्या अंतर है

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क्या आप जानते हैं पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर है, बहुत काम की है ये जानकारी🎛️

किसी भी आरोपी को पुलिस कस्टडी या ज्यूडिशियल कस्टडी में एक खास मकसद से रखा जाता है. हिरासत में जरूरी नहीं है कि आरोपी को गिरफ्तार किया जाए लेकिन गिरफ्तारी में हिरासत होती ही होती है.

अपराध से जुड़े मामलों में आपने पुलिस कस्टडी (पुलिस हिरासत) और ज्यूडिशियल कस्टडी (न्यायिक हिरासत) का नाम बहुत सुना होगा. देखा जाए तो पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी सुनने में तो एक जैसे ही लगते हैं लेकिन इन दोनों की कार्रवाई में काफी अंतर है. आज हम यहां आपको पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत के बीच अंतर को समझाने की कोशिश करेंगे. दरअसल, किसी भी आरोपी को पुलिस कस्टडी या ज्यूडिशियल कस्टडी में एक खास मकसद से रखा जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आरोपी मामले से जुड़े किसी अहम सबूत के साथ छेड़छाड़ या फिर किसी गवाह को धमकी न दे सके. कई लोगों को ऐसा लगता है कि हिरासत में लेना, गिरफ्तार करना होता है. लेकिन ऐसा नहीं है. इसके अलावा आपको ये चीज भी समझनी चाहिए कि हिरासत में जरूरी नहीं कि आरोपी को गिरफ्तार किया जाए लेकिन गिरफ्तारी में हिरासत होती ही होती है. आइए अब जानते हैं पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी में क्या अंतर होता है.

🏵️ज्यूडिशियल कस्टडी (न्यायिक हिरासत)👉🏻
किसी भी अपराध में जब कोई आरोपी मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जाता है तो वहां उसकी हिरासत तय की जाती है. मजिस्ट्रेट, मामले को देखकर तय करते हैं आरोपी को पुलिस कस्टडी में भेजना है या ज्यूडिशियल कस्टडी में. इसके अलावा जो आरोपी या अपराधी सीधे कोर्ट में सरेंडर करते हैं, उन्हें भी न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है. जिन मामलों में आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है. न्यायिक हिरासत के दौरान आरोपी को जेल में रखा जाता है. न्यायिक हिरासत के दौरान किसी भी मामले में पुलिस को आरोपी से पूछताछ करने के लिए भी अदालत से परमिशन लेनी होती है. अदालत की परमिशन के बिना पुलिस किसी भी आरोपी से पूछताछ नहीं कर सकती है. न्यायिक हिरासत में किसी आरोपी को तब तक रहना पड़ सकता है जब तक कि उसे जमानत न मिल जाए या जब तक उसके खिलाफ मामला खत्म नहीं हो जाता. न्यायिक हिरासत में रहने वाले आरोपी की सुरक्षा कोर्ट के अधीन होती है.

🏵️पुलिस कस्टडी (पुलिस हिरासत)👉🏻
किसी भी आपराधिक मामले में गिरफ्तारी के बाद जब पुलिस आरोपी को अपनी हिरासत में लेती है तो उसे थाने में बनाए गए लॉकअप में रखा जाता है. पुलिस कस्टडी के दौरान पुलिस आरोपी से मामले को लेकर पूछताछ कर सकती है और उन्हें इसके लिए मजिस्ट्रेट से परमिशन लेने की जरूरत नहीं पड़ती है. पुलिस हिरासत में रखे गए आरोपी को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है. जिसके बाद मजिस्ट्रेट आरोपी को पुलिस हिरासत या फिर न्यायिक हिरासत में भेजने का फैसला लेते हैं. पुलिस कस्टडी में रहने वाले आरोपी की सुरक्षा पुलिस विभाग के अधीन होती है. हत्या, लूट, चोरी जैसे मामलों में आरोपी को पुलिस कस्टडी में रखा जाता है.

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