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छत्रपति शिवाजी महाराज 3 अप्रैल,1680 पुण्य-तिथि

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छत्रपति शिवाजी महाराज 3 अप्रैल,1680 पुण्य-तिथि

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को मराठा परिवार में शिवनेरी (महाराष्ट्र) में हुआ था. शिवाजी के पिता शाहजी और माता जीजा बाई थी.

वे एक भारतीय शासक थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था. वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे बहादुर, बुद्धिमानी, शौर्यवीर और दयालु शासक थे. वे एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी.

सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्यभिषेक हुआ और वह छत्रपति बने. उन्होंने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया.

उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना तन, मन और धन न्यौछावर कर दिया.

बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे. युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे.

जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई, यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची. अत्याचारी किस्म के यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के बगलें झांकने लगे.

शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया. पता चलने पर शिवाजी आग बबूला हो गए. उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापा मारी कर शीघ्र ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया.

तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा. उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनख का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया. इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं.

उनकी इस वीरता के कारण ही उन्हें एक आदर्श एवं महान राष्ट्रपुरुष के रूप में स्वीकारा जाता है. इसी के चलते छत्रपति शिवाजी महाराज का 3 अप्रैल 1680 ई. में तीन सप्ताह की बीमारी के बाद रायगढ़ में स्वर्गवास हो गया.

छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में कभी भी किसी औरत का नाच गाना नहीं हुआ. वह स्त्री का बड़ा सम्मान करते थे चाहे वह स्त्री किसी भी जाति, धर्म या दुश्मन ही की क्यों न हो.

24 अक्टूबर 1657 को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश पर सोनदेव ने जब कल्याण के क़िले पर घेराबंदी की और उसको जीत लिया. उस समय औरंगजेब की बहन और शाहजहाँ की बेटी रोशनआरा जो एक अभूतपूर्व सुन्दरी थी जिसे क़िले में कैद कर लिया गया.

उसके पश्चात् सैनिकों ने रोशनआरा को छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने पेश किया. तब छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को कहा कि ये तुम्हारी पहली और अन्तिम गलती है

इसके पश्चात् यदि किसी भी जाति या धर्म की स्त्री के साथ ऐसा अपमानित करने का कार्य किया तो उसकी सज़ा केवल और केवल मृत्यु दण्ड होगा. उसके पश्चात् रोशनआरा को एक पालकी में बैठाकर सम्मान पूर्वक उसे उसके महल में पहुँचा दिया गया.

छत्रपति शिवाजी महाराज कहते थे कि महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाई रखनी चाहिए चाहे वह किसी जाति या धर्म से क्यों न हो और उनकी इस बात का शत् प्रतिशत् पालन होता था.

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