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कुसंस्कारों का बुलडोज़र

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कुसंस्कारों का बुलडोज़र

यह एक भ्रम है कि सनातन धर्म के महापुरुषों , ऋषियों मुनियों तथा हिन्दूमहात्माओं ने एकमात्र मोक्ष की ही चिंता की थी ।
यदि ऐसा होता तो भगवान श्रीकृष्ण कौरवों – पाण्डवों के झगड़े में मध्यस्थ की भूमिका न निभाते और अन्त में न्याय की रक्षा में न कूद पड़ते ! 19 वीं शताब्दी के दुर्दशाग्रस्त भारत में अवतरित होकर भगवान स्वामिनारायण यदि ‘ मोक्ष ‘ को ही महत्त्व देते , तो फिर वे गाँव – गाँव , घर – घर और झोपड़े – झोपड़े में स्वयं जाकर भाँति भाँति के दुर्व्यसनों और अपराधों में आकंठ डूबी प्रजा को मुक्ति की राह न दिखाते ! अकाल की विभीषिका में तड़प रहे लोगों और पशु – प्राणियों के लिए कुओं – तालाबों का निर्माण कराकर उनके लिए अन्न – चारे की व्यव स्था न कराते ! 30-30 वर्षों तक गुजरात की प्रजा के कल्याण हेतु भगवान स्वामिनारायण ने गुजरात की समग्र धरती पर विचरण करके , उसे पावन किया और आज दो सौ वर्ष पुरानी उसी गुणातीत संत परंपरा का निर्वाह करते हुए प्रमुखस्वामी महाराज , सामाजिक जीवन की बदरंग हो चुकी तसवीर को बदल देने के लिए रात – दिन अपना खून – पसीना एक कर रहे हैं ।

यह संसार है तो संसारी भी हैं संसारी हैं तो स्वजन और रक्त के सम्बंध भी रहेंगे । लेकिन इन सम्बंधों में जब धार्मिकता और संस्कारिकता का रंग प्रगाढ़ होता है , तो सही अर्थों में यह संसार ‘ धन्य ‘ बनता है । -पटल पर अपनी स्मृतियों को एकबार कुरेदिए , तो धीरे – धीरे स्मृति उभरने लगेंगे – दादाजी का खपरैलवाला छोटा – सा मकान और मिट्टी से लिपा हुआ उस घर का आंगन ! … दूर – दूर तक फैली हुई गाँव की मनोरम हरियाली … ! ढलती हुई रात में मन्द मन्द बहती शीतल बयार और आकाश में टिमटिमाते हुए अनंत तारों से टपकती सौन्दर्य की अमृत – बूँदे ! और दादाजी के पलंग के इर्द – गिर्द किल्लोल करता हुआ बाल – गोपालों का समूह ! लगभग चालीस – पैंतालीस वर्ष पहले गाँव की नन्हीं सी बस्ती में फैली हुई स्नेह और वात्सल्य की उन खुशियों का एहसास ! दादा – दादी साथ मिलकर हम बच्चों के साथ कैसी – कैसी बातें और कहानियाँ सुनाया करते थे ! वे भी क्या दिन थे ! ढलती हुई संध्या में दादी – दादाओं को घेरे हुए आरुणि और नन्हे – मुन्ने बाल – गोपाल कितना तन्मय होकर सुनते थे उपमन्यु की कहानियाँ ! वीर अभिमन्यु की शौर्य – गाथा ! भीम की गदा के पराक्रम ! पंचतंत्र के हिरण की प्रामाणिकता ! अर्जुन के गाण्डीव की टंकार ! श्रवण की मातृ – पितृ भक्ति ! और राम – लक्ष्मण के त्याग की अद्भुत गाथाएँ ! … उन घरों में फैलती भीनी – भीनी मिट्टी के संस्कारों की सुगन्ध में , वर्षों से चली आती परंपरागत पारिवारिक मूल्यों तथा धर्म की नींव पर रची गई खानदानी महक थी । उन घरों में किलकारी करते बच्चों को माँ की गोद से ही संस्कृति का पयपान कराया जाता था ! – परन्तु , आज हम परिवर्तन के उस मोड़ पर आकर खड़े हैं , जहाँ धीरे – धीरे हम अपनी प्राचीन स्वर्णिम विरासत को भूलते जा रहे हैं ; क्योंकि हमारी आँखें पश्चिम से आती हुई रेतीली धूल से ढंक चुकी हैं । इस सम्बंध में गाँधीजी की यह अमूल्य भावना नित्य स्मरणीय है – ‘ मेरी यह लेशमात्र की भी इच्छा नहीं है कि मेरे घर के चारों ओर चहारदीवारी खड़ी हो और मेरे घर की तमाम खिड़कियाँ बन्द हों । देश – विदेश की सांस्कृतिक बयार , मेरे घर में उन्मुक्त होकर बहे , ऐसी मेरी भी इच्छा है ; परन्तु उस बयार से मेरे पाँव जमीन से उछल पड़ें और मैं कहीं दूर जाकर गिरूँ , इसका मैं सख्त विरोध करता हूँ । ‘

आज तो ऐसा लगता है कि हर एक घर , किसी अदृश्य शिकंजे में जकड़ उठा है । सन् 1991 में देश की आर्थिक नीतियों में तीन महत्त्वपूर्ण सुधार हुए ; जिन्हें संक्षेप में रुक्कल . कहा जा सकता है ।
L लिबरलाइजेशन ( Liberalization ) उदारीकरण।
P प्राईवेटाइजेशन ( Privalization ) निजीकरण ।
G ग्लोबलाइजेशन ( Globlization ) वैश्वीकरण ।
इस अभूतपूर्व सामाजिक परिवर्तन के नये दौर में जन्म ली हुई हमारी नई पीढ़ी , पूर्व की सभी पीढ़ियों से भिन्न है । सन् 1989 से 2009 तक 20 वर्ष की अवधि में जन्म ले चुकी युवापीढ़ी , आज प्रत्येक क्षेत्र में नई उड़ान भरने के लिए आ है । जिस पीढ़ी के लिए कभी साइकिल भी एक स्वप्न थी , उसी परिवार की संतानें आज बाईक , स्कूटर अथवा स्पोर्ट्सकार सहज रूप से प्रयोग करती हैं । जो माता – पिता कभी मोबाइल , पॉकेट एम.पी. थ्री अथवा लेपटॉप जैसी आधुनिक इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं की कल्पना तक नहीं कर सकते थे , उन्हीं की संतानें आज ऐसी चीज़ों का प्रयोग करती हैं , तो उनके माता – पिता को भी ‘ प्रगति ’ की अनुभूति होती है । जो माताएँ अपने कॉलेज के दिनों में सलवार – कमीज पहनकर जातीं और वहाँ लड़कों से बोलने तक का साहस नहीं करती थीं , उन्हीं की पुत्रियाँ आज अपने ‘ ब्वाय फ्रेण्डस ‘ के साथ ‘ लो – वेस्ट जिन्स ‘ और ‘ टाईट टीशर्ट ‘ पहनकर बाइक पर सवार हो मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखने जाती हैं । इतना ही नहीं , इन ‘ सुपुत्रियों ’ के कई ‘ पापा – डैड ‘ , उन्हें उदारतापूर्वक कहते हैं , ‘ जा बेटा ! पैसे की जरुरत पड़े तो क्रेडिटकार्ड का उपयोग कर लेना … ! ‘ आत्मविश्वास और वैचारिक स्पष्टता यदि आज की युवापीढ़ी की सबसे बड़ी खूबी है , तो उन्मुक्त जीवन – शैली और ध्येयहीनता इसी युवापीढ़ी की सबसे बड़ी कमज़ोरी भी है । समाजशास्त्रियों के कथनानुसार आज की पीढ़ी में जैसा आत्मविश्वास है , ऐसा पिछली पीढ़ी में नहीं था । आज के इन्टरनेट और मीडिया के प्रभाव में विकसित हुई वर्तमान पीढ़ी , सर्वथा भिन्न विचारोंवाले समूहों अथवा मित्रों के साथ मित्रता और विचारों का आदान – प्रदान अति सहजरूप से कर लेती है । अपनी संतानों में हुए इन परिवर्तनों को यदि हम खुली आँखों से देख सकें , तो निश्चय ही यह आनन्द की बात हो सकती है , किन्तु इन परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप उत्पन्न बुराइयों से स्वयं को सुरक्षित रखने की समझ होना भी उतना ही आवश्यक है ।
संभवत : इस बात की जानकारी आपको हो अथवा न हो कि आपकी संतानों की मित्र – मण्डली बहुत बड़ी होती है , किन्तु उनमें सातत्यपूर्ण सम्बन्ध बहुत सीमित होते हैं । उबलते दूध में आये उफान की भाँति , स्वार्थपूर्ति होते ही इन सम्बन्धों पर विराम लग जाता है । आज के युग में प्रेम – सम्बन्ध टूटने का दुःख , युवापीढ़ी को उतना नहीं होता , जितना पहले होता था । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ऐसे सम्बन्धों को क्षणिक महत्त्व देने में आज की पीढ़ी अत्यन्त सिद्धहस्त साबित हो रही है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक परिवर्तन की यह आँधी , आज की पीढ़ी को एक खतरनाक मोड़ पर लाकर खड़ी कर दी है । इसीलिए आज का यह समय , नई पीढ़ी की होशियारी , इनकी कुशलता अथवा इनकी कार्यक्षमता की चिंता के लिए नहीं , बल्कि जिस प्रकार लोग जीवन – मूल्यों के प्रति लापरवाह हो रहे हैं , उसकी चिंता के लिए अति महत्त्वपूर्ण है । अभी तो LPG की यह प्रथम पीढ़ी है , जिनके कुछ कारनामों पर एक नजर डालिए – मात्र 17 वर्ष की उम्र के युवक आशिष नंदा ने 30 लाख रुपये की फिरौती के लिए अपने भाई समान 16 वर्षीय मित्र पीयूष ठक्कर की हत्या करवा दी ।
योगेश यादव नामक 25 वर्षीय एक नवयुवक ने शराब के नशे में धुत्त होकर अहमदाबाद के शाहीबाग क्षेत्र के एक मुहल्ले में एक 90 वर्षीय मूलजी नामक वृद्ध से मज़ाक किया और वृद्ध द्वारा एतराज करने पर उन्हीं की लाठी से मारकर उनकी हत्या कर दी । ( 30 जुलाई , 2006 , रविवार ) ऐसी घटनाएँ तो दिन – प्रतिदिन की हैं ।
इससे भी भयंकर घटनाओं से आप अनजान नहीं है । जेल की हवा खाकर बाहर निकले माफिया सरदारों , स्मगलरों , खूंखार हत्यारों और घोटालेबाजों को यदि नई पीढ़ी अपना ‘ रोल मॉडल ‘ मानने लगेगी , तो स्वतंत्रता के लिए शहीद हो जानेवाले चन्द्रशेखर आजाद , भगतसिंह तथा उन जैसे सैकड़ों अमर शहीदों के बलिदान का क्या मूल्य रहेगा ?
भारत भूमि को अपने खून पसीने से सिंचित करके अनेक महापुरुषों ने उसे अध्यात्म की भूमि के साथ साथ सांस्कृतिक कुबेर भी बनाया था उनके प्रति हमारी ऋण अदायगी का क्या अर्थ रहा ?

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