बुद्ध” वैशाखपूर्णिमा
महात्मा बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था. उनके जीवन में ऐसी घटनाएं घटी कि जिसके कारण उनके मन में विरक्ति का भाव उत्पन्न होने लग गया. अन्ततः उन्होंने एक दिन अपनी सुन्दर पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल तथा सेवक-सेविकाओं को त्याग कर निकल गये. वे राजगृह होते हुए उरूवेला पहुँचे तथा वहीं पर तपस्या प्रारम्भ कर दी. उन्होंने वहाँ पर घोर तप किया.
सिद्धार्थ को सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ. तभी से वो बुद्ध कहलाये. जिस पीपल के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधिवृक्ष कहलाया. जबकि समीपवर्ती स्थान बोधगया.
श्रीमद्भागवत गीता में- बुध अथवा बुद्ध की अवस्था का बहुत विस्तार उपलब्ध है. जिसमें बुध अथवा बुद्ध की अवस्था का विस्तार- युक्त, स्थिर, स्थिर-बुद्धि, योगी, विषयातीत तथा इन्द्रियातीत इन्द्रियजीत आदि संज्ञाओं के द्वारा किया गया है. संक्षिप्त में
बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते | (श्रीगीताजी-२/५०)
यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च यः |
हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो यः स च मे प्रियः || (१२/१५)
अर्थात
जो पुरुष, पुण्य और पाप दोनों (के फल) को त्याग देता है, वह सम-बुद्धि, (अर्थात-बुध/बुद्ध) कहलाने योग्य होता है.
(२/५०) जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयं भी किसी जीव से उद्वेग को प्राप्त नहीं होता; तथा जो हर्ष, अमर्ष, भय और उद्वेग आदि से रहित है, वह (बुद्ध, स्थिर-बुद्धि के गुणों से युक्त) भक्त मुझको प्रिय है (१२/१५).
कृषी निरावहिं चतुर किसाना ॥
जिमि बुध तजहिं मोह मद माना ॥
अर्थात
जिसने चतुर किसान की भांति- अपने मन-बुद्धि से मोह, मद तथा मान (अहंकार) जैसे खरपतवारों को उखाड़ फेंका है, वही महात्मा बुध, बुद्ध अथवा बौद्ध की संज्ञा से विभूषित होने योग्य मान्य है.(श्रीराम.च.मा.-४/१४/८)
बुद्ध-पूर्णिमा पर भगवानश्रीबुद्ध के प्रादुर्भाव दिवस के पावन-अवसर पर हम बुद्ध की अवस्था को प्राप्त करने का अंश-मात्र भी प्रयास करें तो कुछ न कुछ कल्याण अवश्य होगा. यह भगवान बुद्ध का 2565 वा जन्मोत्सव है.
ॐ नमोऽस्तुते नमोऽस्तुते नमोऽस्तुते मातृभूमे न
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