आखिर क्यों फटते हैं बादल, Cloudburst की घटना के पीछे का कारण भी जानिए
आखिर क्यों फटते हैं बादल, Cloudburst की घटना के पीछे का कारण भी जानिए”🌧️
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक बादल फटना बारिश का एक चरम रूप है. बादल फटना एक तकनीकी शब्द है. वैज्ञानिक तौर पर ऐसा नहीं होता कि बादल गुब्बारे की तरह या किसी सिलेंडर की तरह फट जाता हो. उदाहरण के तौर पर, जिस तरह पानी से भरा गुब्बारा अगर फूट जाए तो एक साथ एक जगह बहुत तेजी से पानी गिरता है. ठीक वैसी ही स्थिति बादल फटने की घटना में देखने को मिलती है. इस प्राकृतिक घटना को ‘क्लाउड बर्स्ट’ या ‘फ्लैश फ्लड’ भी कहा जाता है.
बादल फटने की घटना मुख्यत: तब होती है, जब बहुत ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह रुक जाते हैं. पानी की बूंदों का वजन बढ़ने से बादल का घनत्व (density) काफी बढ़ जाता है और फिर अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है. बादल फटने पर 100 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से पानी बरसता है. इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं
पहाड़ों पर ही क्यों ज्यादा बादल फटते हैं: पानी से भरे बादल जब हवा के साथ आगे बढ़ते हैं तो पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई इसे आगे नहीं बढ़ने देती है. पहाड़ों के बीच फंसते ही बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर बरसने लगते हैं. बादलों की डेंसिटी बहुत ज्यादा होने से बहुत तेज बारिश होती है. कुछ ही मिनट में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है. बादल फटने की घटना अक्सर धरती से करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर देखने को मिलती है.
बादल फटने के बाद कैसा होता है मंजर? बादल फटने के बाद इलाके का मंजर भयावह होता है. नदी नालों का अचानक जलस्तर बढ़ने से आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. पहाड़ पर बारिश का पानी रुक नहीं पाता, इसीलिए पानी तेजी से नीचे की ओर आता है. नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़ों के साथ लेकर आता है. कीचड़ का यह सैलाब इतना खतरनाक होता है कि जो भी उसके रास्ते में आता है उसको अपने साथ बहा ले जाता है.
बादल फटने की बड़ी घटनाओं पर नजर: अगस्त 1998 में कुमाऊं में काली घाटी में बादल फटने की घटना से करीब 250 लोगों की मौत हो गई थी. इनमें से कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले करीब 60 लोग भी शामिल थे. इस प्राकृतिक आपदा में प्रसिद्ध उड़िया डांसर प्रोतिमा बेदी भी थी. वह भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जा रही थीं, लेकिन बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई. सितंबर 2012 में उत्तरकाशी में बादल फटने से 45 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना में लापता 40 लोगों में से केवल 22 लोगों के शव ही मिले थे.
2013 केदारनाथ आपदा को कौन भूल सकता है. 16-17 जून 2013 को घटी इस त्रासदी ने देश-दुनिया को सन्न कर दिया था. केदारनाथ धाम में भारी बारिश से मंदाकिनी नदी ने प्रचंड रूप धारण कर लिया था. इस हादसे में हजारों लोगों की मौत हुई जबकि कई हजार अबतक लापता हैं. लापता लोगों में से ज्यादातर तीर्थयात्री थे.
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