ऑनलाइन कक्षा व परीक्षा को पूरा हुआ एक वर्ष : कोविड-19 के कारण शिक्षा व्यवस्था में आए 360 डिग्री बदलाव
ऑनलाइन कक्षा व परीक्षा को पूरा हुआ एक वर्ष : कोविड-19 के कारण शिक्षा व्यवस्था में आए 360 डिग्री बदलाव
विद्यार्थियों को व्हाट्सएप पर असाइनमेंट साझा करना
ऑनलाइन क्लास रूम के माध्यम से सीखना
प्रधान संपादक योगेश
पिछले एक वर्ष से ऑनलाइन क्लास रूम के माध्यम से सीखने, व्हाट्सएप पर परीक्षा देने, वर्चुअल कैंपस टूर करने और जूम प्लेसमेंट ड्राइव में शामिल होने से विद्यार्थियों का स्क्रीन टाइम जरूर बढ़ गया है। लेकिन इसी शैक्षणिक सत्र का नाम न्यू नॉर्मल की शुरुआत के रूप में इतिहास में दर्ज किया जाएगा।
पहले कक्षाओं में जिन स्मार्टफोन और लैपटॉप के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाती थी, आज वही शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ बन गए हैं। कोरोना महामारी ने ऑफलाइन शिक्षा को पूरी तरह ऑनलाइन कर शिक्षा व्यवस्था में 360 डिग्री का बदलाव ला दिया है।
स्कूल के पहले दिन के लिए न बैग पैक हुए, न खेल दिवस हुआ और न ही फेयरवेल हुई, न किसी दोस्त के साथ खाना शेयर किया, बस स्क्रीन पर ही छात्रों का अधिकतम समय बीत गया। जी हां, कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण शैक्षणिक सत्र 2020-21 का यही रूप देखने को मिला।
जिन विद्यार्थियों के पास पढ़ने के लिए लैपटॉप या स्मार्टफोन नहीं थे, उनके लिए रेडियों चैनल शुरू करने से लेकर समर्पित डीटीएच चैनलों पर पाठ पढ़ाने तक के प्रयास शामिल थे।
छात्रों से संपर्क करने के लिए पड़ोसियों के फोन पर फोन करने से लेकर सोशल मीडिया मैसेजिंग प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप पर असाइनमेंट साझा करने तक इस महामारी ने एक शिक्षक की भूमिका में भी काफी परिवर्तन किए हैं।
इन सब के अलावा महामारी ने बच्चों के स्क्रीन टाइम में भी परिवर्तन ला दिया है। जब स्मार्टफोन, लैपटॉप और इंटरनेट के इस्तेमाल का समय बढ़ने लगा, तब माता-पिता के लिए यह चिंता का विषय बन गया। शिक्षा मंत्रालय ने इस पर संज्ञान लिया और कार्रवाई करते हुए स्कूल के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए। इस दिशा-निर्देश में विभिन्न आयु के लिए उपयुक्त “स्क्रीन टाइम” बताया गया।
केवल माता-पिता की दिनचर्या में ही नहीं, महामारी ने बच्चों के रहन-सहन में भी बदलाव किए। पीटीआई को दिए इंटरव्यू में एक छात्र ने बताया, “मैं पिछले वर्ष 12वीं कक्षा में था। अपनी बोर्ड परीक्षाओं और कॉलेज प्रवेश परीक्षाओं की तैयारियों में जुटा हुआ था और फिर सब कुछ बहुत जल्दी जल्दी होने लगा। कोविड-19 को महामारी घोषित कर दिया गया। सरकार द्वारा जारी कोविड-19 के दिशा-निर्देशों के मद्देनजर हमारी फेयरवेल पार्टी रद्द कर दी गई, बीच में ही परीक्षाओं को स्थगित कर दिया गया। इसके बाद शुरू हुआ अंतहीन इंतजार, बची हुई परीक्षाओं और महाविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने का इंतजार।
पीटीआई को दिए इंटरव्यू में सीबीएसई की 12वीं की बोर्ड परीक्षा में 99 प्रतिशत लाने वाली निशा भारद्वाज ने कहा, “बोर्ड द्वारा कोई मेरिट लिस्ट जारी नहीं की गई थी। न ही कॉलेज के पहले दिन के लिए मन में कोई उत्साह था और न ही कोई फ्रेशर्स पार्टी हुई। मैं बहुत निराश थी, लेकिन कहीं-न-कहीं यह सोचकर संतुष्ट थी कि मेरा परिवार सुरक्षित है।
कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते संक्रमण की दर काे धीमी करने के लिए गत वर्ष मार्च में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। पिछले साल अक्टूबर तक सभी स्कूलों को बंद रखा गया। इसके बाद शैक्षणिक संस्थानों को खोलने का निर्णय राज्यों पर छोड़ दिया गया। विश्वविद्यालय और कॉलेज महीनों तक बंद रहे और अब चरणों में फिर से खुल रहे हैं।
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