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08 दिसम्बर बालाजी बाजीराव जयंती

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08 दिसम्बर बालाजी बाजीराव // जयंती

🌹 जन्म : 08 दिसंबर 1721 मृत्यु : 23 जून 1761 बालाजी बाजीराव उर्फ नाना साहब, बाजीराव प्रथम एवं पेशविन काशीबाई के ज्येष्ठ पुत्र थे। वह पिता की मृत्यु के बाद पेशवा बने। बालाजी बाजीराव के समय में ही पेशवा पद पैतृक बन गया था। 1750 ई. हुई ‘संगोली संधि’ के बाद पेशवा के हाथ में सारे अधिकार सुरक्षित हो गये। अब ‘छत्रपति’ (राजा का पद) दिखावे भर का रह गया था। बालाजी बाजीराव ने मराठा शक्ति का उत्तर तथा दक्षिण भारत, दोनों ओर विस्तार किया। इस प्रकार उसके समय कटक से अटक तक हिन्दू स्वराज की दुदुम्भी बजने लगी। बालाजी ने मालवा तथा बुन्देलखण्ड में मराठों के अधिकार को क़ायम रखते हुए तंजौर प्रदेश को भी जीता। बालाजी बाजीराव ने हैदराबाद के निज़ाम को एक युद्ध में पराजित कर 1752 ई. में ‘भलकी की संधि’ की, जिसके तहत निज़ाम ने बरार का आधा भाग मराठों को दे दिया। बंगाल पर किये गये आक्रमण के परिणामस्वरूप अलीवर्दी ख़ाँ को बाध्य होकर उड़ीसा त्यागना पड़ा और बंगाल तथा बिहार से चौथ के रूप में 12 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार करना पड़ा। 1760 ई. में उदगिरि के युद्ध में निज़ाम ने करारी हार खाई। मराठों ने 60 लाख रुपये वार्षिक कर का प्रदेश, जिसमें अहमदनगर, दौलताबाद, बुरहानपुर तथा बीजापुर नगर सम्मिलित थे, प्राप्त कर लिया।

>> व्यक्तित्व

<< बालाजी बाजीराव ने 1740 ई. में पेशवा का पद प्राप्त किया था। पद प्राप्ति के समय वह 18 वर्ष का नव-युवक थे। उसमें अपने पिता बाजीराव प्रथम के समान उच्चतर तो नहीं थे, परन्तु वह योग्यता में किसी भी प्रकार से शून्य नहीं थे। वह अपने पिता की तरह युद्ध संचालन, विशाल सेना के संगठन तथा सामग्री-संग्रह और युद्ध की सभी सामग्री की तैयारी में उत्साहपूर्वक लगे रहते थे। अपने पिता के कुछ योग्य एवं अनुभवी सरदारो होल्कर, सिंधिया, बुंदेले आदि की निष्ठा प्राप्त की थीं।

>> साहू का दस्तावेज़

< राजा साहू ने 1749 ई. में अपनी मृत्यु से पूर्व एक दस्तावेज़ रख छोड़ा था, जिसमें पेशवा को कुछ बंधनों के साथ राज्य का सर्वोच्च अधिकार सौंप दिया गया था। उसमें यह कहा गया था कि पेशवा राजा के नाम को सदा बनाये रखे तथा ताराबाई के पौत्र एवं उसके वंशजों के द्वारा शिवाजी के वंश की प्रतिष्ठा क़ायम रखे। उसमें यह आदेश भी था कि कोल्हापुर राज्य को स्वतंत्र समझना चाहिए तथा जागीरदारों के मौजूदा अधिकारों को मानना चाहिए। पेशवा को जागीरदारों के साथ ऐसे प्रबन्ध करने का अधिकार रहेगा, जो हिन्दू शक्ति के बढ़ाने तथा देवमन्दिरों, किसानों और प्रत्येक पवित्र अथवा लाभदायक वस्तु की रक्षा करने में लाभकारी हों। >> ताराबाई की आपत्ति << साहू द्वारा जारी किये गए दस्तावेज़ पर ताराबाई ने गहरी आपत्ति प्रकट की। उसने दामाजी गायकवाड़ से मिलकर पेशवा बालाजी बाजीराव के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा युवक राजा को बन्दी बना लिया। परन्तु बालाजी बाजीराव ने अपने समस्त विपक्षियों को परास्त कर दिया। राजा, पेशवा बालाजी बाजीराव के हाथों में वस्तुत: क़ैदी होकर ही रहा और पेशवा अब से मराठा संघ का वास्तविक प्रधान बन गए। छत्रपति शिवाजी महाराज ने पूरे महाराष्ट्र में मराठा साम्राज्य स्थापित किया था जिसे श्रीमंत बाजीराव प्रथम ने मालबा बुंदेलखंड तक विस्तार दिया और उसकी धमक दिल्ली तक पहुँचाई और फिर तृतीय पेशवा बालाजी बाजीराव के समय पेशवा सेना ने उत्तर में अफगान सीमा सिंधु नदी तक युध्द जीत कर हिन्दू साम्राज्य स्थापित किया।

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