यजुर्वेद
घर , कुटुंब , परिवार ,समाज ,राष्ट्र , विश्व संसार मे घर : संस्कारों का उपवन है।
॥ पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः॥
॥ पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥
( यजुर्वेद : 19/39 )
ऋषियों ने कहा है : हे देश के नागरिकों , अपने पुत्र – पुत्रियों को ब्रह्मचर्य , सदाचार तथा विद्या प्रदान करके , उन्हें विद्वान , सुंदर तथा चरित्रवान बनाने का अपना पवित्र कर्तव्य निभाओ …
जो ऐसा करता है , वह वास्तव में सद्गृहस्थ है !
जन्म देकर माँ – बाप बननेवाले ‘ संस्कार देकर माँ – बाप बनने वालों से किसी भी रूप में महान नहीं होते ।
पुत्र – पुत्रियों के सामने ब्रह्मचर्य शब्द का उच्चारण भी न करके , उन्हें आत्म संयम से दूर रखने का क्या तात्पर्य ?
इसका अर्थ तो यह है कि किसी भी प्रकार के सदाचार तथा किसी भी प्रकार की उत्तम विद्या से दूर रखने का घोर पाप !
हमारा समय अपनी भावी पीढ़ी के ‘ जीवन – निर्माण ‘ में व्यतीत हो , इसमें वैदिक ऋषियों की रुचि है , जबकि हमारा पूरा समय ‘ जीवन निर्वाह ‘ के लिए खर्च होता रहे , इसी में हमारी रुचि है ! पहला मार्ग समृद्ध होने के लिए है और दूसरा मार्ग शिथिल होने के लिए , आपको क्या करना है ?
आपकी ही पसंद पर निर्भर है !
निष्कर्ष : घर अर्थात् सद्गुणों का बीजारोपण करनेवाले माँ – बाप का निवास तथा सुंदर गुणों से महकता हुआ संस्कारी संतानों का उपवन है
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