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यज्ञ कलियुग का कल्पबृक्ष है : शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

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यज्ञ कलियुग का कल्पबृक्ष है : शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वतरू हो जाती

यज्ञ मण्डप की परिक्रमा से समस्त रोग व बीमारी दूर होतें

हवन का धुआँ बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं का नाशक

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। 
महारुद्र पाठ के एकादशा वृत्तियों से रुद्राध्याय के 11 ग़ूणा 11=121 एक सौ इक्कीस संख्या में जप करने से, समाहत-पाठ विधि को “अतिरुद्र” कहते हैं। जिससे ब्रह्मह्त्यादि निष्कृति रहित पापों का भी प्रक्षालन हो जाता है। इस पाठ की कोई तुलना ही नहीं है । रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है । भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है, और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

यह बात काशी सुमेरु पीठाधीश्वर यति सम्राट् अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कही। भारतीय सनातन संस्कृति के जनजागरण अभियान के तहत भारत भ्रमण के दौरान देवघर जनपदान्तर्गत चितरा में आयोजित अतिरूद्र महायज्ञ में विशेष रूप से पहुंचे। यहां उन्होंने अतिरूद्र महायज्ञ का पूर्ण वैदिक विधि-विधान से पूजन किया । यह जानकारी शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द के निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा मीडिया से साझा की गई ।

पूज्य शंकराचार्य  नरेन्द्रानन्द सरस्वती  नेे इस अवसर पर उपस्थित सनातन धर्मावलम्बी श्रद्धालुओं को अपना आशीर्वचन एवम् मार्गदर्शन प्रदान करते हुए  ने कहा कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वतरू हो जाती है। उन्होंने बताया की यज्ञ मण्डप की परिक्रमा से समस्त रोग व बीमारी दूर हो जाती है । जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जाते है। यज्ञ कुण्ड से हवन का धुआँ श्वास प्रणाली से होकर शरीर के अन्दर प्रवेश कर बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं का नाश करते हैं। यज्ञ कलियुग का कल्पबृक्ष है । यज्ञ वह विधा है, जिससे मनुष्य अपने सभी मनोरथों की सिद्धि प्राप्त कर सकता है । भगवान शिव आयोजकों को भरपूर शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करें, यज्ञ सभी के लिए मंगलकारी हो । इस अवसर पर स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती  महाराज, स्वामी नरेशानन्द ,पंडित आकर्षित मिश्र, पंडित अमर शर्मा, पंडित अभिषेक पाण्डेय सहित अनेक श्रद्धालू मौजूद रहे।

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