चीतों की वापसी से जैव-विविधता की सदियों पुरानी कड़ियों को जोड़ रहा भारत
चीतों की वापसी से जैव-विविधता की सदियों पुरानी कड़ियों को जोड़ रहा भारत
भारत की पहचान जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध देश की है। यहां लगभग 300 मिलियन लोग पोषण और आजीविका के लिए जैव विविधता पर आश्रित हैं। यदि इसकी कोई भी कड़ी टूटती है या खतरे में पड़ती है तो स्वाभाविक है कि सरकार और समाज दोनों के लिए बड़ी चिंता की बात है। ऐसे में हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि उस कड़ी को फिर से जोड़ने या कायम रखने का प्रयास करें। इसी क्रम में पीएम मोदी ने कहा था, ”जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी हमें उसे फिर से जोड़ने का मौका मिला है।” बता दें पीएम मोदी ने यह बात भारत की धरती पर चीता लौटने के संबंध में कही थी।
भारत एक बार फिर रफ्तार के शहंशाह, चीतों का बनने जा रहा घर
आज भारत जैव-विविधता की सदियों पुरानी उस कड़ी को जोड़ने का महा प्रयास कर रहा है जो यां तो विलुप्त हो चुकी हैं या खतरे में पड़ी है। चीता प्रजाति भी इन्हीं में से एक रही है। भारत ने देश से विलुप्त हो चुके चीते को फिर से संजोकर रखने के लिए ”प्रोजेक्ट चीता” शुरू किया। बीते वर्ष ही ये प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। इसी के तहत पीएम मोदी के जन्मदिन के अवसर पर 17 सितंबर 2022 को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को छोड़ा गया और अब अफ्रीका से 12 चीते और लाए गए हैं। महज इतना ही नहीं अगले 5 वर्षों में कुल 50 चीतों को भारत लाने की योजना है। यानि अब बाघ की दहाड़ के साथ-साथ चीतों की गुर्राहट से भारत गूंजेगा।
ये बना चीता स्टेट
भारत से विलुप्त हो चुके चीतों को कड़ी को फिर से जोड़ने के लिए आज मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों का आगमन हुआ। इनमें 7 नर और पांच मादा चीते शामिल हैं। गौरतलब हो, इस संबंध में दक्षिण अफ्रीका और भारत ने एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए हैं। समझौते के अनुसार, फरवरी 2023 के दौरान 12 चीतों का एक प्रारंभिक जत्था दक्षिण अफ्रीका से भारत लाया गया है। इन्हें 1 महीना क्वारंटाइन में रखा जाएगा। उसके बाद उन्हें नामीबिया से लाए गए 8 चीतों के झुंड में शामिल कर दिया जाएगा। अब दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते आने के बाद कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की संख्या 20 हो गई है। यानी चीतों का कुनबा बढ़ गया है। सही मायने में अब मध्य प्रदेश चीता स्टेट बन गया है।
चीतों की खासियत
चीता दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर है। चीता दुनिया की सबसे अधिक पहचानी जाने वाली बिल्लियों की प्रजाति में से एक है जो अपनी गति के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। चीते की स्प्रिंट को अधिकतम 114 किलोमीटर प्रति घंटे पर मापा गया है। और वे नियमित रूप से 80-100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ते हैं। चीता भारत से विलुप्त हो गया था। अधिकांश विशेषज्ञों ने इसके पीछे का मूल कारण शिकार और उनके निवास स्थान यानि जंगलों के नुकसान को दिया। भारत में अंतिम तीन चीतें 1947 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में शिकार किए गए थे।
चीते की शारीरिक संरचना में आए कई परिवर्तन
बदलते परिस्थितिक परिवेश के कारण चीते की शारीरिक संरचना में कई परिवर्तन आए हैं, जो उसकी दौड़ने की क्षमता को और उन्नत बनाते हैं। दरअसल, उनके पैर अन्य विशाल जंतुओं की तुलना में अपेक्षाकृत लंबे होते हैं। उसके अलावा एक लंबी रीढ़ उनकी तेज गति से कदम की लंबाई बढ़ाते हैं। चीते के पास तीव्र गति पर मोड़ लेने के लिए योग्य हुक होते हैं। एक अद्वितीय पंजा कुशन, जो भूमि की पकड़ को मजबूत बनाता है। इन सबके अलावा एक लंबी पूंछ जो तेज रफ्तार पर चीते को संतुलन प्रदान करती है। आखिरी बार अधिकांश चीतें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा ओडिशा के अलावा गुजरात में रिकॉर्ड किए गए थे। दक्षिणी महाराष्ट्र से कर्नाटक, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में चीतों की मौजूदगी दर्ज की गई। चीता मुख्य रूप से गजेल्स, चीतल, वाइल्डबोअर, चिंकारा, ब्लैकबक, सांभर हिरण और अन्य शाकाहारी जीवों का खाता है।
बाघ, शेर और तेंदुए के संरक्षण पर भी कार्य जारी
कुछ इस प्रकार चीतों की वापसी से भारत जैव-विविधता की सदियों पुरानी कड़ियों को जोड़ने का काम तो कर ही रहा है साथ ही यह बाघ, शेर और तेंदुए के संरक्षण पर भी कार्य कर रहा है। उल्लेखनीय है कि बाघ, शेर और तेंदुए की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि भारत वन्य जीवों के लिए एक बेहतरीन जगह साबित हो रहा है। सरकार लगातार इनके संरक्षण के लिए प्रयासरत्त है।
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