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साष्टांग प्रणाम क्यों और चरण स्पर्श से क्या लाभ ?

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साष्टांग प्रणाम क्यों और चरण स्पर्श से क्या लाभ ?

जब हम साष्टांग प्रणाम करेंगे, तो हमारा पिंड एक बारगी नीचे से ऊपर तक पृथ्वी पिंड से सपृष्ट होने के कारण पार्थिव विधुत से भरपूर हो जाता है. विज्ञानिक पूजा विधान के द्वारा प्रतिमा में व्याप्त हुए देवीगन हमारे पिंड में भी विकसित हो जाएंगे. इतना ही नहीं, साष्टांग प्रणाम करने से शरीर का प्रत्येक अंग, दृष्टि, मन सभी प्रभु के सामने झुक जाता है. फलत: व्यक्ति का अहंकार पूर्ण रूप से समाप्त हो कर प्रभु के चरणों में समर्पित हो जाता है.

चरण स्पर्श से क्या लाभ ?
प्रत्येक मानव पिंड में व्यक्ति वैचित्र्यवाद के अनुसार विभिन्न प्रकार की शक्तियों का समावेश रहता है. यह विधुत शक्ति परिणात्मक और धनात्मक अर्थात नेगेटिव और पॉजिटिव नाम के नाम से दो प्रकार की है. इसी प्रकार मानव शरीर में आधो-आध दो धाराएं विद्यमान है. जब हम किसी गुरुजन को प्रणाम करते हैं तो, स्वभावतः सामने वाला व्यक्ति के दाएं और बाएं अंग हमारे दाएं और बाएं अंगो से ठीक विपरीत होंगे. ऐसी स्थिति में हमारे ऋषियो ने हाथ घूमाकर दाएं हाथ से दाए पांव का और बाएं हाथ से बाएं पांव का स्पर्श करने का विधान किया है. जिससे प्रणामकर्ता और प्रणम्य दोनों पिंडों की नेगेटिव और पॉजिटिव दोनों धाराएं सामान रूप से सम्मिलित हो सकें.

इसी प्रकार प्रणम्य गुरुजन में जो भी विशिष्ट गुण होंगे, वे चरण स्पर्श के कारण प्रणाम करने वाले में संक्रमण कर जाएंगे. उधर गुरूजन शास्त्र विधि के अनुसार प्रणाम करने वाले के मस्तक पर अपना दायां हाथ में रखकर आशीर्वाद देंगे, जिससे प्रणाम और प्रणामकर्ता दोनों में अमुक गुणों से परिपूर्ण वैधृत प्रवाह एक आवर्त (सर्कल) के रूप में संचालित हो उठेगा. दाएं हाथ के संस्पर्श से सपृष्ठ मनुष्य के अनेक दोषों का मार्जन किया जा सकता है और स्पर्श करने वाला व्यक्ति अपनी ओज का उसमें आधान कर सकता है. यह एक वैदिक सिद्धांत है. वर्तमान युग के शारीरिक विज्ञान इसका समर्थन करते हैं. हमारी इस प्रमाण पद्धति की वैज्ञानिकता में यही एक प्रबल प्रमाण पर्याप्त है कि ऋषयो ने दाएं हाथ से दांया पांव और बाए हाथ से बाया पांव को छूने की व्यवस्था दी है, वह अहैतुकी नहीं हो सकती. गुरूजन के चरण स्पर्श से जो आशीर्वाद मिलता है उससे आयु वृद्धि, विद्या, यश और बल प्राप्त होता है

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