केले का फल टेढ़ा क्यों होता हैं?
आसान शब्दो मे पेड़ों के सूरज की तरफ बढ़ने की प्रवृति कहते है। शुरुआत में तो यह फल जमीन की तरफ बढ़ता है लेकिन बाद में नेगेटिव जियोटोपाइज्म की प्रवति के कारण जमीन की बजाय सूरज की तरफ बढ़ने की कोशिश करता है इसमे गुरुत्वाकर्षण इसके विपरीत काम करता है जिसके कारण केला टेढ़ा हो जाता है।शुरुआत में जब किसी पेड़ पर केले का फल लगता है तो वह गुच्छे में होता है. एक कली जैसी होती है, जिसमें से हर पत्ते के नीचे केले का एक गुच्छा होता है. आमतौर पर देसी भाषा में उसे गैल कहा जाता है.
इस तरह शुरुआत में केला जमीन की तरफ बढ़ता है, यानी सीधा होता है. लेकिन साइंस में एक प्रवृत्ति होती है, जिसे कहते हैं Negative Geotropism. इसका अर्थ है, वो पेड़ जो सूरज की तरफ बढ़ते हैं.
अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण केला बाद में ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है, जिसकी वजह से केले का आकार टेढ़ा हो जाता है. सूरजमुखी भी इसी तरह का पौधा है, जिसमें निगेटिव जियोट्रोपिज्म (Negative Geotropism) की प्रवृत्ति होती है.
आप में से कई लोगों को केला खाना काफी पसंद होगा ये फल जितना स्वादिष्ट होता है, उतना ही पौष्टिक भी होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये फल टेढ़ा क्यों होता है। शुरूआती दौर में केला जमीन की तरफ ही बड़ा होता है। लेकिन फिर negative geotropism ( पेड़ों के सूरज की तरफ बढ़ने की प्रवृति ) के कारण वो ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है, जिसकी वजह से उसका आकार टेढ़ा हो जाता है। अगर केले के बॉटनिकल हिस्ट्री पर नजर डालें, तो केले के पेड़ सबसे पहले रेनफॉरेस्ट के मध्य में पैदा हुए थे। वहां सूरज की काफी कम रोशनी पहुंचती है। फल के विकसित होने के लिए पेड़ों ने खुद को माहौल के हिसाब से ढाल लिया और सारे फल सूरज की रोशनी की तरफ बढ़ने लगे। इस तरह पहले जमीन की तरफ, फिर आसमान की तरफ बड़े होने के कारण केले का आकार टेढ़ा हो गया। आप में से कई लोगों को केला खाना काफी पसंद होगा ये फल जितना स्वादिष्ट होता है, उतना ही पौष्टिक भी होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये फल टेढ़ा क्यों होता है। शुरूआती दौर में केला जमीन की तरफ ही बड़ा होता है। लेकिन फिर negative geotropism ( पेड़ों के सूरज की तरफ बढ़ने की प्रवृति ) के कारण वो ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है, जिसकी वजह से उसका आकार टेढ़ा हो जाता है। अगर केले के बॉटनिकल हिस्ट्री पर नजर डालें, तो केले के पेड़ सबसे पहले रेनफॉरेस्ट के मध्य में पैदा हुए थे। वहां सूरज की काफी कम रोशनी पहुंचती है। फल के विकसित होने के लिए पेड़ों ने खुद को माहौल के हिसाब से ढाल लिया और सारे फल सूरज की रोशनी की तरफ बढ़ने लगे। इस तरह पहले जमीन की तरफ, फिर आसमान की तरफ बड़े होने के कारण केले का आकार टेढ़ा हो गया।
केला एनर्जी से भरपूर होता है। खासतौर से बच्चों को इसे विशेष रूप से खाने की सलाह दी जाती है। आपने भी कभी इसके आकार पर ध्यान दिया होगा। लेकिन शायद कभी सोचा की इसका आकार ऐसा ही क्यों होता है। तो इसके टेढ़ा होने का क्या कारण है चलिए आज में आपको केले से जुड़ी इस जानकारी के बारे मे बताता हूँ।
केला एक अलग ही प्रक्रिया से होकर गुजरता है। इस प्रक्रिया को नेगेटिव जियोटोपाइज्म कहा जाता है। इसे आसान शब्दो मे पेड़ों के सूरज की तरफ बढ़ने की प्रवृति कहते है।
शुरुआत में तो यह फल जमीन की तरफ बढ़ता है लेकिन बाद में नेगेटिव जियोटोपाइज्म की प्रवति के कारण जमीन की बजाय सूरज की तरफ बढ़ने की कोशिश करता है इसमे गुरुत्वाकर्षण इसके विपरीत काम करता है जिसके कारण केला टेढ़ा हो जाता है।
केले के घुमावदार होने के पीछे एक साइंटिफिक रीजन है. केले के फल जब निकलते हैं तो वह गुच्छे में निकलते हैं. यह कली के जैसे होते हैं, जिसमें हर पत्ते के नीचे केले का एक गुच्छा होता है. इसे देसी भाषा में हम गैल कहते हैं. इस समय केला नीचे की ओर बढ़ना शुरू करता है(यानि सीधा बढ़ता है).
एक साइंटिफिक कांसेप्ट है निगेटिव जियोट्रोपिज्म. यह थ्योरी ही बताती है कि कुछ पेड़ ऐसे होते हैं, जो सूरज की तरफ बढ़ते हैं. इसका अच्छा उदहारण सूरजमुखी है. केले के पेड़ की प्रवृत्ति भी यही है. ऐसे में केला बाद में ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है. यही कारण है कि इसका आकार टेढ़ा हो जाता है.
केले के इतिहास की बात करें तो ये सबसे पहले रेनफारेस्ट के सेंटर में पाए गए थे. रेनफारेस्ट में सूरज की रौशनी बेहद कम पहुंचती है. ऐसे में केले के पेड़ों ने उस तरह से ग्रो करना सीख लिया था. इसलिए जब भी उन्हें सूरज की रोशनी मिलती, तो केले सूरज की तरफ बढ़ने लगते हैं. ऐसे में पहले जमीन की तरफ फिर आसमान की तरफ बढ़ने से केले का आकर टेढ़ा हो गया.
केला एनर्जी से भरपूर एक ऐसा फल है, जो लगभग हर सीजन में बिकता है. केला सस्ता भी इतना होता है कि हर कोई इसे खरीद सकता है. लेकिन कभी आपने गौर से इसकी बनावट देखी है? और क्या कभी आपके मन में ये सवाल आया है कि ये टेढ़ा क्यों होता है? क्या केला सीधा नहीं हो सकता था? दरअसल, इसके पीछे साइंटिफिक कारण है और हम यही जानकारी आपको दे रहे हैं.
इसलिए होता है टेढ़ा?
शुरुआत में जब किसी पेड़ पर केले का फल लगता है तो वह गुच्छे में होता है. एक कली जैसी होती है, जिसमें से हर पत्ते के नीचे केले का एक गुच्छा होता है. आमतौर पर देसी भाषा में उसे गैल कहा जाता है.
इस तरह शुरुआत में केला जमीन की तरफ बढ़ता है, यानी सीधा होता है. लेकिन साइंस में एक प्रवृत्ति होती है, जिसे कहते हैं Negative Geotropism. इसका अर्थ है, वो पेड़ जो सूरज की तरफ बढ़ते हैं.
अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण केला बाद में ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है, जिसकी वजह से केले का आकार टेढ़ा हो जाता है. सूरजमुखी भी इसी तरह का पौधा है, जिसमें निगेटिव जियोट्रोपिज्म (Negative Geotropism) की प्रवृत्ति होती है.
आप में से बहुत से लोग शायद ही ये जानते हों कि सूरजमुखी का फूल हमेशा सूरज उगने की दिशा में होता है और शाम ढलते-ढलते जैसे सूरज अपनी दिशा बदलता है, सूरजमुखी का फूल भी दिशा बदलता है. इसी वजह से इस फूल का नाम सूरजमुखी है, यानी सूरज की तरफ मुख.
केले की बॉटनिकल हिस्ट्री
केले के बॉटनिकल हिस्ट्री के मुताबिक केले के पेड़ सबसे पहले रेनफॉरेस्ट के मध्य में पैदा हुए थे. वहां सूरज की रोशनी काफी कम पहुंचती है. इसलिए केले को विकसित होने के लिए पेड़ों ने खुद को उसी माहौल के हिसाब से ढाल लिया. इसलिए जब-जब सूरज की रोशनी आती, केले सूरज की तरफ बढ़ने लगे. इसलिए पहले जमीन की तरफ, फिर आसमान की तरफ बड़े होने के कारण केले का आकार टेढ़ा हो गया.
पुराना है इतिहास
केले का पेड़ और केले को धार्मिक दृष्टि से बेहद पवित्र फल माना गया है. चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी केले के पेड़ का जिक्र है. अजंता-एलोरा की कलाकृतियों में भी केले की तस्वीरें मिलती हैं. इसलिए केले का इतिहास काफी पुराना है. माना जाता है कि केला सबसे पहले करीब 4000 साल पहले मलेशिया में उगा था और फिर यहीं सारी दुनिया में फैल गया. आज हालत ये है कि दुनिया के करीब 51% केले नाश्ते में ही खा लिए जाते है.
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