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जब संसद में संवाद नहीं होगा, तो सड़कों पर विवाद ही होगा – पर्ल चौधरी

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जब संसद में संवाद नहीं होगा, तो सड़कों पर विवाद ही होगा – पर्ल चौधरी

काले कृषि कानून की तरह ही हिट एंड रन कानून को भी स्थगित करना पड़ा

पहले किसान, फिर पहलवान और अब चालक सहित विभिन्न वाहन सड़कों पर

राज्यों के परिवहन विभाग के चालक भी हिट एंड रन कानून को लेकर नाराज

केंद्र सरकार और प्रतिनिधि बताएं विपक्ष के सवालों का जवाब क्यों नहीं

ज्वलंत समस्याओं से ध्यान भटकने को भाजपा ने बनाया धार्मिक उन्माद का माहौल

सही मायने में सरकार ने संसद हाल ही हिट एंड रन  कानून जैसा बनाया

फतह सिंह उजाला 

पटौदी 3 जनवरी । भाजपा और भाजपा नेताओं के मुंह में केवल और केवल उनके मन की ही बात होती है । भाजपा सरकार की कथनी और करनी में जमीन – आसमान का फर्क है। भारत सहित दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देश जानते हैं की संसद चर्चा और संवाद सहित सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सवाल- जवाब के आदान-प्रदान का स्थल है। जब संसद में संवाद नहीं होगा तो सड़कों पर विवाद होगा।  यही कारण है कि आज देश में हर तरफ अराजकता का माहौल है । यह बात पूर्व एमएलए स्वर्गीय भूपेंद्र चौधरी की पुत्री कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी ने समर्थकों और कांग्रेस का कार्यकर्ताओं को गुरुग्राम में आहूत कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मेलन का निमंत्रण देते हुए कही है । उन्होंने आरोपित शब्दों में कहा भाजपा और केंद्र सरकार अपना काम खुद करती नहीं है और विकसित भारत का नारा लेकर सरकारी पैसे पर अपना चुनाव और एजेंडे का प्रचार करने में लगी है। 10 से 20000 कमाने वाला एक ड्राइवर 10 लाख रुपए का जुर्माना कहां से भरेगा ? कोई भी ड्राइवर जानबूझकर के कभी एक्सीडेंट नहीं करना चाहता और ना ही करता है । 

उन्होंने कहा एक्सीडेंट होने के कई कारण हो सकते हैं । सबसे महत्वपूर्ण कारण तो टूटी-फूटी सड़के हैं, अचानक गड्ढे या फिर नेशनल हाईवे सुपर एक्सप्रेसवे इत्यादि पर जंगली जानवर आने पर अक्सर गाड़ियां या चालक का नियंत्रण नहीं रह पाता है जो है । उसके कारण से दुर्घटना घट जाती है। दुर्घटना होना एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है लेकिन उसके लिए हमेशा ड्राइवर को ही जिम्मेदार मानना, यह कहीं ना कहीं बिना छानबीन किए दोषी ठहराने जैसा है। बड़ा सवाल यही है कि विभिन्न राज्यों के परिवहन विभाग के चालक भी हिट एंड रन कानून को लेकर नाराज हैं । इसलिए यह हिट एंड  रन का जो केस है, सही मायने में अगर देखें तो यह सरकार संसद में सांसदों को किसी न किसी कारण से हिट करके बाहर निकाल देती है । सही मायने में सरकार ने संसद का जो हाल बना रखा है , वही अपने आप में ही हिट एंड रन  कानून जैसा है है । सवाल है कि क्या इसके लिए जनता केंद्र सरकार को सजा देगी !

कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी ने कहा पहले बिना संवाद किए कृषि कानून थोपने से अनगिनत किसान विभिन्न राज्यों से सड़क पर आने को मजबूर हुए। इसके बाद दोनों सदन में सवाल पूछने पर विपक्ष के सांसदों को देश की सबसे बड़ी पंचायत से हिट अथवा निलंबन किया गया । अब हिट एंड रन कानून थोपने का परिणाम सामने है कि अनेक कमर्शियल वाहनो के पहिए सड़क पर कड़ाके की सर्दी में थम गए। उन्होंने कहा इस बात से इनकार नहीं कि हिट एंड रन कानून को विपक्ष को बदनाम करने के की नीयत से ही इंट्रोड्यूस किया गया । क्योंकि कुछ ही दिन के बाद में अयोध्या में भगवान श्री राम के विग्रह रूप की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम है और इन दिनों मे भारतीय जनता पार्टी और भाजपा नेताओं ने एक प्रकार से धार्मिक अनुवाद का माहौल बनाया हुआ है। चाहे कृषि कानून हो या फिर हिट एंड रन जैसे कानून हो, जब संसद में विपक्ष के साथ संवाद नहीं होगा तो फिर सड़कों पर अराजकता ही देखने के लिए मिलेगी। उन्होंने कहा भाजपा ने सत्ता में आने से पहले संकल्प पत्र में विभिन्न कार्यों के लिए संकल्प लिया था। भाजपा अब एक बार फिर से विकसित भारत यात्राएं आयोजित कर अपने लिए गए संकल्प से ध्यान बांटने का प्रयास कर रही है ।

कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी ने कहा की भाजपा और भाजपा नेताओं को गुमान हो गया है कि सत्ता उनके लिए स्थाई हो चुकी है । लेकिन हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है । उन्होंने कहा इंडिया एलायंस के घटक दल तथा कांग्रेस पार्टी के प्रति बढ़ते आम जन के विश्वास को देखते हुए ही भाजपा बौखलाती जा रही है। हिट एंड रन कानून को लेकर कमर्शियल सहित अन्य वाहन चालकों में सरकार के प्रति नाराजगी पूरी तरह से जायज लगती है। उन्होंने कहा सही मायने में 75 प्रतिशत भारत गांव में बसता है। लेकिन इस बात को भी देखना चाहिए कि गांव से आसपास के शेहरों को जोड़ने वाले संपर्क सड़क मार्ग की हालत क्या बनी हुई है ? भाजपा और सत्ता पक्ष में भी जिज्ञासा यही है की अच्छे दिन तो आएंगे ! लेकिन सवाल यही है कि कथित रूप से मनमाने फैसले थोपने वाली सरकार या फिर ऐसी सरकार को सत्ता से बाहर करने वाले जनता जनार्दन के अच्छे दिन आएंगे ?

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