बसत पंचमी को क्या दान करने से मिलेगा फायदा
बसत पंचमी को क्या दान करने से मिलेगा फायदा
अखिर क्यो मनाई जाती है बंसत पंचमी
इस बार कब है बसत पंचमी
वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।

इस दिन हम मां सरस्वती की पूजा करते हैं. मान्यता है कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मां सरस्वती ब्रह्माजी के मुख से प्रकट हुईं थी और इसीलिए इस तिथि को वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है. ज्ञान की देवी होने और इस तिथि को प्रकट होने की वजह से मां सरस्वती की पूजा की जाती है
वसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की विधि विधान से पूजा की जाती है. शिशुओं को अक्षर ज्ञान या उनकी शिक्षा का प्रारंभ भी वसंत पंचमी के दिन से ही कराया जाना चाहिए.
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट करते हुए कहा है कि मैं ऋतुओं में मैं बसंत हूं। श्रीकृष्ण का यह कथन ही स्पष्ट करता है कि माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि से प्रारंभ होने वाला बसंत ऋतु का क्या महत्व है। आज के दिन को भारत के भिन्न-भिन्न प्रांतों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता हैं जिसमें मुख्य रूप से बसंत पंचमी, सरस्वती पूजा, वागीश्वरी जयंती, रति काम महोत्सव, बसंत उत्सव आदि है।
सरस्वती पूजा के साथ होता है बसंत का आगमन
बसंत माह भारत के छह ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ इसलिए माना जाता है कि आज के ही दिन सृष्टि के सबसे बड़े वैज्ञानिक के रूप में जाने जाने वाले ब्रह्मदेव ने मनुष्य के कल्याण हेतु बुद्धि, ज्ञान विवेक की जननी माता सरस्वती का प्राकट्य किया था। मनुष्य रूप में स्वयं की पूर्णता के परम उद्देश्य का साधन मात्र और एक मात्र भगवती सरस्वती के पूजन का ही है। इसलिए, आज के ही दिन माताएं अपने बच्चों को अक्षर आरंभ भी कराना शुभप्रद समझती हैं। माता सरस्वती के पूजन के लिए उपयोगी कुछ मंत्र एवं पूजन मुहूर्त को जानने से पहले इस ऋतु के वैदिक एवं वैज्ञानिक कारण को भी समझ लेना अत्यंत आवश्यक है।
बसंत पंचमी का वैदिक कारण

आज ही के दिन पृथ्वी की अग्नि, सृजन की तरफ अपनी दिशा करती है। जिसके कारण पृथ्वी पर समस्त पेड़ पौधे फूल मनुष्य आदि गत शरद ऋतु में मंद पड़े अपने आंतरिक अग्नि को प्रज्जवलित कर नये सृजन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि स्वयं के स्वभाव प्रकृति एवं उद्देश्य के अनुरूप प्रत्येक चराचर अपने सृजन क्षमता का पूर्ण उपयोग करते हुए, जहां संपूर्ण पृथ्वी को हरी चादर में लपेटने का प्रयास करता है, वहीं पौधे रंगकृबिरंगे सृजन के मार्ग को अपनाकर संपूर्णता में प्रकृति को वास्तविक स्वरूप प्रदान करते हैं। इस रमणीय, कमनीय एवं रति आदर्श ऋतु में पूर्ण वर्ष शांत रहने वाली कोयल भी अपने मधुर कंठ से प्रकृति का गुणगान करने लगती है। एवं महान संगीतज्ञ बसंत रस के स्वर को प्रकट कर सृजन को प्रोत्साहित करते हैं।
बसंत पंचमी का वैज्ञानिक कारण
भारतीय ज्योतिष में प्रकृति में घटने वाली हर घटना को पूर्ण वैज्ञानिक रूप से निरूपित करने की अद्भुत कला है। प्रकृति में प्रत्येक सौंदर्य एवं भोग तथा सृजन के मूल माने जाने वाले भगवान शुक्र देव अपने मित्र के घर की यात्रा के लिए बेचौन होकर इस उद्देश्य से चलना प्रारंभ करते हैं कि उत्तरायण के इस देव काल में वह अपनी उच्च की कक्षा में पहुंच कर संपूर्ण जगत को जीवन जीने की आस व साहस दे सकें।
मूल रूप से शरद ऋतु के ठंड से शीतल हुई पृथ्वी की अग्नि ज्वाला, मनुष्य के अंतरूकरण की अग्नि एवं सूर्य देव के अग्नि के संतुलन का यह काल होता है। यह मात्र वह समय है (बसंत ऋतु) जहां प्रकृति पूर्ण दो मास तक वातावरण को प्राकृतिक रूप से वातानुकूलित बनाकर संपूर्ण जीवों को जीने का मार्ग प्रदान करती है।
बसंत पंचमी का इतिहास
शास्त्रों एवं पुराणों कथाओं के अनुसार बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा है, कथा कुछ इस प्रकार है।
बसंत पंचमी के ऐतिहासिक महत्व को लेकर यह मान्यता है कि सृष्टि रचियता भगवान ब्रह्मा ने जीवो और मनुष्यों की रचना की थी तथा ब्रह्मा जी जब सृष्टि की रचना करके उस संसार में देखते हैं तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई देता है एवम् वातावरण बिलकुल शांत लगता है जैसे किसी की वाणी ना हो यह सब करने के बाद भी ब्रह्मा जी मायूस , उदास और संतुष्ट नहीं थे तब ब्रह्मा जी भगवान् विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल पृथ्वी पर छिडकते है कमंडल से धरती पर गिरने वाले जल से पृथ्वी पर कंपन होने लगता है और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी(चार भुजाओं वाली) सुंदर स्त्री प्रकट होती है। उस देवी के एक हाथ में वीणा और दुसरे हाथ में वर मुद्रा होती है बाकी अन्य हाथ में पुस्तक और माला थी। ब्रह्मा जी उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध करते है। देवी के वीणा बजाने से संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त को जाती है। उस पल के बाद से देवी को “सरस्वती” कहा गया। उस देवी ने वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी इसलिए बसंत पंचमी के दिन घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है। अर्थात दुसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम “सरस्वती पूजा” भी है। देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है
भारतीय पंचांग में छह ऋतूऐ होती है। बसंत ऋतू को ऋतुओ का राजा कहा जाता है। बसंत पंचमी फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है। ऋतुराज बसंत का बहुत अत्यधिक महत्व है ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ , आम के पेड़ पर आए फूल , चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठण्ड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है। यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है। इंसानों के साथ-साथ पशु पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है इस ऋतू को कामबाण के लिए भी अनुकूल माना जाता है । यदि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। यही कारण है कि यह त्यौहार हिंदुओं के लिए बहुत खास है । इस त्यौहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं , इसके साथ ही हाथी बसंत मेला आदि का भी आयोजन किया जाता है
बसंत पंचमी के दिन को बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के आरंभ के लिए शुभ मानते हैं। इस दिन बच्चे की जीभ पर शहद से ॐ बनाना चाहिए। माना जाता है कि इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है। 6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है। अन्नप्राशन के लिए यह दिन अत्यंत शुभ है। बसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है इसके साथ-साथ गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है ।
बसंत पंचमी को धार्मिक ग्रंथों में वागेश्वरी जयंती और सरस्वती जयंती भी कहा जाता है. रंग गुलाल त्योहार बसंत पंचमी के दिन शुरू होता है क्योंकि इस दिन देवी सरस्वती को गुलाल चढ़ाकर पहले बसंत का स्वागत किया जाता है.
सरस्वती पूजा के दिन सिद्ध और रवि योग का शुभ संयोग
इस वर्ष सरस्वती पूजा के दिन बहुत से शुभ योग बन रहे हैं और विद्यार्थियों, साधकों, भक्तों और ज्ञान चाहने वालों के लिए यह दिन बहुत ही शुभ है. बसंत पंचमी के दिन सिद्ध नाम शुभ योग है जो देवी सरस्वती के उपासकों को सिद्धि और मनोवांछित फल देता है. इसके साथ ही सरस्वती पूजा के दिन रवि नामक योग भी बन रहा है, जो सभी अशुभ योगों के प्रभाव को दूर करने वाला माना जाता है. इन सबके साथ ही सरस्वती पूजा के दिन एक और अच्छी बात यह होगी कि बसंत पंचमी के एक दिन पहले बुद्धि कारक बुध ग्रह अपने मार्ग में होगा. इसके साथ ही शुभ बुद्धादित्य योग भी प्रभाव में रहेगा.
शुभ योग में करें इन कामों की शुरुआत
बसंत पंचमी के दिन सिद्ध या रवि शुभ योगों में विद्यार्थी यदि पूरे मन से मां सरस्वती की पूजा करें तो उन्हें मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है. उनकी बुद्धि और ज्ञान का विकास होगा. इस शुभ योग में संतान की शिक्षा शुरू करना, गुरुमंत्र, बरसे प्राप्त करना, नए रिश्ते की शुरुआत करना भी शुभ रहेगा. सरस्वती पूजा के दिन दान करें स्टेशनरी की ये चीजें, मिलेगा विद्या, बुद्धि का वरदान
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