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शिवरात्रि का अर्थ क्या है ?

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शिवरात्रि का अर्थ क्या है ?
पुराणों में, वेदों में और शास्त्रों में भगवान शिव-महाकाल के महात्म्य को प्रतिपादित किया गया है।
भगवान शिव हिन्दू संस्कृति के प्रणेता आदिदेव महादेव हैं। हमारी सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार 33 कोटि देवताओं में ‘शिरोमणि’ देव शिव ही हैं।
सृष्टि के तीनों लोकों में भगवान शिव एक अलग, अलौकिक शक्ति वाले देव हैं।

भगवान शिव पृथ्वी पर अपने निराकार-साकार रूप में निवास कर रहे हैं। भगवान शिव सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान हैं। महाशिवरात्रि पर्व भगवान शिवशंकर के प्रदोष तांडव नृत्य का महापर्व है।
शिव प्रलय के पालनहार हैं और प्रलय के गर्भ में ही प्राणी का अंतिम कल्याण सन्निहित है। शिव शब्द का अर्थ है ‘कल्याण’ और ‘रा’ दानार्थक धातु से रात्रि शब्द बना है, तात्पर्य यह कि जो सुख प्रदान करती है, वह रात्रि है।
शिवस्य प्रिया रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्र्‌याख्याम्‌।’

इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जो आनंद प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है। शिवरात्रि, जो फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को है, उसमें शिव पूजा, उपवास और रात्रि जागरण का प्रावधान है।

इस महारात्रि को शिव की पूजा करना सचमुच एक महाव्रत है।
ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के व्रत पर भगवान शिव की भक्ति, दर्शन, पूजा, उपवास एवं व्रत नहीं रखता, वह सांसारिक माया, मोह एवं आवागमन के बंधन से हजारों वर्षों तक उलझा रहता है।
यह भी कहा गया है कि जो शिवरात्रि पर जागरण करता है, उपवास रखता है और कहीं भी किसी भी शिवजी के मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग के दर्शन करता है, वह जन्म-मरण पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति पा जाता है।
शिवरात्रि के व्रत के बारे में पुराणों में कहा गया है कि इसका फल कभी किसी हालत में भी निरर्थक नहीं जाता है।
शिवरात्रि का व्रत सबसे अधिक बलवान है। भोग और मोक्ष का फलदाता शिवरात्रि का व्रत है। इस व्रत को छोड़कर दूसरा मनुष्यों के लिए हितकारक व्रत नहीं है। यह व्रत सबके लिए धर्म का उत्तम साधन है। निष्काम अथवा सकाम भाव रखने वाले सांसारिक सभी मनुष्य, वर्णों, आश्रमों, स्त्रियों, पुरुषों, बालक-बालिकाओं तथा देवता आदि सभी देहधारियों के लिए शिवरात्रि का यह श्रेष्ठ व्रत हितकारक है।
शिवरात्रि के दिन प्रातः उठकर स्नानादि कर शिव मंदिर जाकर शिवलिंग का विधिवत पूजन कर नमन करें।

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