हमें श्रेष्ठ मानव बनना है
हमें श्रेष्ठ मानव बनना है
विचारों के अनुसार ही मनुष्य काम करता है। मनुष्य की तत्कालीन विचारधारा, उसकी परिस्थितियाँ और उनके साथ घट रही सजीव घटनाएँ ही मूर्त बनकर अगले क्षण से नई सृष्टि को जन्म देती हैं। अतः सत्य ही कहा गया है, यथा दृष्टि तथा सृष्टि अर्थात् : जैसी दृष्टि होगी, वैसी नई सृष्टि की निर्मिति होगी।
मानव जीवन में विचार मस्तिष्कगत बुद्धि का विषय है और भाव हृदय का दोनों का एक दूसरे से अटूट सम्बन्ध है। जैसे भाव हृदय में उठते हैं, मनुष्य के विचार भी वैसे ही बन जाते हैं। सुविचार और सुभावनाएँ मनुष्य को ऊँचा उठा देती हैं, जबकि कुत्सित विचार और बुरी भावनाएँ मनुष्य को नीचे, बुराई के गर्त में ले जाती हैं। अतः हमारे विचार सदा स्वर्ण के समान निर्मल और कल्याणकारी होने चाहिए। इसलिए हम प्रतिदिन प्रभु से प्रार्थना करते हैं :
पूजनीय प्रभो! हमारे भाव उज्जवल कीजिए।
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए।
मनुष्य के जितने सुन्दर सुन्दर भाव और विचार होंगे वह उतना ही मीठा बोलेगा जो सुनने वाले को सुख और शान्ति देगा। उसकी स्वयं की आध्यात्मिक उन्नति होगी। उच्च वैदिक विचारों से मनुष्य और समाज का चिंतन सुधरता है। समाज, राष्ट्र व विश्व में शान्ति स्थापित होती है।
विचारों की शुद्धता, भावों की निर्मलता, चरित्र की उच्चता और आचरण की पारदर्शिता मनुष्य को श्रेष्ठ मानव बना देती है।
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