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विश्व हिन्दू परिषद् 29 अगस्त स्थापना दिवस.

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विश्व हिन्दू परिषद् 29 अगस्त स्थापना दिवस.

विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना 29 अगस्त 1964 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ पर्व पर भारत की संत शक्ति के आशीर्वाद के साथ हुई थी. इसके संस्थापकों में स्वामी चिन्मयानंद, एस एस आप्टे, मास्टर तारासिंह सतगुरु जगजीत सिंह जी थे.

मुम्बई के संदीपनी साधनाशाला में एक सम्मेलन हुआ. सम्मेलन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर जी ने बुलाई थी. इस सम्मेलन में हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध के कई प्रतिनिधि उपस्थित थे. सम्मेलन में पूजनीय गोलवलकर जी ने कहा कि भारत के सभी मतावलंबियों को एकजुट होने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि हिन्दू, हिन्दुस्तानियों के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द है और यह धर्मों से ऊपर है. विश्व हिन्दू परिषद्, वीएचपी और विहिप के नाम से भी जाना जाता है.

इसका ध्येय वाक्य, धर्मों रक्षति रक्षितः यानी जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है. विहिप का उद्देश्य हिन्दू समाज को सशक्त करना, हिन्दू जीवन दर्शन और आध्यात्म की रक्षा, संवर्द्धन, हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए उन्हें संगठित करना और समाज की सेवा करना है.

भारत के लाखों गांवों और कस्बों में विहिप को एक सशक्त, प्रभावी, स्थायी, और लगातार बढ़ते हुये सङ्गठन के रूप में देखा जा रहा है. दुनिया भर में हिन्दू गतिविधियों में वृद्धि के साथ, एक सशक्त और आत्मविश्वासी हिन्दू संगठन धीरे-धीरे आकार ले रहा है.

स्वास्थ्य, शिक्षा, आत्म-सशक्तिकरण, ग्राम शिक्षा मन्दिर आदि के क्षेत्रो में 1,00,000 से अधिक सेवा परियोजनाओं के माध्यम से विहिप हिन्दू समाज की जड़ो को मजबूत कर रहा है.

विश्व हिन्दू परिषद् अपने मूल मूल्यों, विश्वासों और पवित्र परम्पराओं की रक्षा के लिए श्री राम जन्मभूमि, श्री अमरनाथ यात्रा, श्री रामसेतू, श्री गंगा रक्षा, गौरक्षा, हिन्दू मठ-मन्दिर विषय, ईहाई चर्च द्वारा हिन्दुओं का धर्मांतरण, इस्लामी आतंकवाद, बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे विषयों को उठाकर हिन्दू समाज की अदम्य शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित कर रही है.

हिन्दू धर्म के सभी सम्प्रदायों (धर्मों) के सभी धर्माचार्यों का एक मन्च पर एकत्रीकरण. समाज में हिन्दू गौरव और एकता की बढ़ी हुई अभिव्यक्ति. हिन्दू समाज में अस्पृश्यता जैसी सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के निरन्तर प्रयासों के माध्यम से, समाज को विमुक्त और अंतर्निहित हिन्दू एकता को पुनर्जाग्रत करने के लिए समाज का कायाकल्प कर रही है.

विश्व हिन्दू परिषद की मूल प्रकृति सेवा है. सन् 1964 में इसकी स्थापना के पश्चात् शनैः शनैः अपने समाज के प्रति स्वाभाविक प्रेम तथा आत्मीयता के आधार पर विविध प्रकार के सेवा कार्यों का क्रमिक विकास किया गया.

संसार का सम्बन्ध ऋणानुबन्ध है. इस ऋणानुबन्ध से मुक्त होने का उपाय है सबकी सेवा करना और किसी से कुछ न चाहना.

मनुष्य शरीर अपने सुख-भोग के लिये नहीं मिला, प्रत्युत सेवा करने के लिये, दूसरों को सुख देने के लिये मिला है.

सेवा परमो धर्मः इत्यादि अवधारणाओं के आधार पर परिषद् द्वारा यह सम्पूर्ण सेवा कार्य समर्पित कार्यकर्ताओं के द्वारा अत्यल्प संसाधनों के बल पर संचालित है. समूचे भारतवर्ष में सेवा कार्यों का विस्तार है. देश के सभी भू-भागों, विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों में धर्मांतरण रोकना तथा परावर्तन को प्रोत्साहन देना. सामाजिक समरसता के भाव को परिपुष्ट करना.

अशिक्षित, पिछड़े अथवा साधनहीन समाज बांधवों का स्वाभिमान जगाते हुए उन्हें स्वावलम्बी एवं जागरूक बनाना तथा जिनकी सेवा की जाती है, धीरे-धीरे वे स्वयं सेवाकार्य करने वाले बनें, यह वातावरण बनाना.

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