विनोबाभावे 11 सितम्बर जन्म दिवस
विनोबाभावे 11 सितम्बर जन्म दिवस.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद निर्धन भूमिहीनों को भूमि दिलाने के लिए भू – दान यज्ञ के प्रणेता विनायक नरहरि विनोबाभावे का जन्म 11 सितम्बर, 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोदा ग्राम में हुआ. इनके पिता श्री नरहरि पन्त तथा माता श्री रघुमाई थीं. वह एक बार जो पढ़ लेता, उसे सदा के लिए कण्ठस्थ हो जाता. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा बड़ौदा में हुई.
वहाँ के पुस्तकालय में उन्होंने धर्म, दर्शन और साहित्य की हज़ारों पुस्तकें पढ़ीं.
विनोबा पर उनकी माँ तथा गाँधी जी की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव पड़ा. अपनी माँ के आग्रह पर उन्होंने श्री मद्भभागवतगीता का गीताई’ नामक मराठी का व्यानुवाद किया. काशी विश्वविद्यालय में संस्कृत का अध्ययन करते समय समाचार पत्रों में उन्होंने गाँधी जी के विचार पढ़े.
उनसे प्रभावित होकर उन्होंने अपना जीवन उन्हें समर्पित कर दिया और गाँधी जी के निर्देश पर साबरमती आश्रम के वृद्धाश्रम की देखरेख करने लगे. उनके मन में प्रारंभ से ही नौकरी करने की इच्छा नहीं थी. इसलिए काशी जाने से पूर्व ही उन्होंने अपने सब शैक्षिक प्रमाण पत्र जला दिये. 1923 में वे झण्डा सत्याग्रह के दौरान नागपुर में गिरफ्तार हुए. उन्हें एक वर्ष की सज़ा दी गई.
1940 में भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारंभ होने पर गाँधी जी ने उन्हें प्रथम सत्याग्रही के रूप में चुना. इसके बाद वे तीन साल तक वर्धा जेल में रहे. वहाँ गीता पर दिये गये उनके प्रवचन बहुत विख्यात हैं. बाद में वे पुस्तक के रूप में प्रकाशित भी हुए. गीता की इतनी सरल एवं सुबोध व्याख्या अन्यत्र दुर्लभ है.
1932 में उन्होंने वर्धा से लौटकर वे वहीं पर रहने लगे. विभाजन के बाद हुए दंगों की आग को शांत करने के लिए वे देश के अनेक स्थानों पर गये.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1948 में विनोबा ने ‘सर्वोदय समाज’ की स्थापना की. इसके अन्तर्गत 1951 में उन्होंने भू-दान यज्ञ का बीड़ा उठाया. इसके अन्तर्गत वे देश-भर में घूमें. दान में मिली भूमि को वे उसी गाँव के भूमि-हीनों को बाँट देते थे. इस प्रकार उन्होंने 70 लाख हैक्टेयर भूमि निर्धनों में बाँटकर उन्हें किसान का दर्जा दिलाया.
19 मई 1960 को विनोबा ने चम्बल के बीहड़ों में आतंक का पर्याय बने अनेक डाकुओं का आत्मसमर्पण कराया. जयप्रकाश नारायण ने इन कार्यों में उनका पूरा साथ दिया.
जब उनका शरीर कुछ शिथिल हो गया, तो वे वर्धा में ही रहने लगे. वहीं रहकर वे गाँधी जी के आचार, विचार और व्यवहार के अनुसार काम करते रहे.
गौहत्या बन्दी के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किये पर शासन द्वारा कोई ध्यान न देने पर उनके मन को भारी चोट लगी. 1975 में इन्दिरा गाँधी द्वारा लगाये गये आपातकाल का समर्थन करते हुए उसे उन्होंने अनुशासन पर्व कहा इस कारण उन्हें पूरे देश में आलोचना सहनी पडी़.
विनोबा जी ने जेल यात्रा के दौरान अनेक भाषाएँ सीखीं. उनके जीवन में सादगी तथा परोपकार की भावना कूट-कूट कर भरी थी अल्पाहारी विनोबा वसुधैव कुटुम्बकम के प्रबल समर्थक थे सन्तुलित आहार एवं नियमित दिनचर्या के कारण वे आजीवन सक्रिय रहे.
जब उन्हें लगा कि अब यह शरीर कार्य योग्य नहीं रहा, तो उन्होंने सन्थारा व्रत लेकर अन्न, जल तथा दवा त्याग दी.
15 नवम्बर 1982 को संत विनोबाभावे का देहान्त हुआ. अपने जीवन काल में वे भारत रत्न का सम्मान ठुकरा चुके थे. अत: 1983 में शासन ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से विभूषित किया.
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