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Rajni

दो गज की दूरी, और मास्क है बहुत जरूरी”

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दो गज की दूरी, और मास्क है बहुत जरूरी”
”दवाई भी कड़ाई भी”
वैक्सीनेशन के साथ साथ हमें ये भी ध्यान रखना है कि वैक्सीन लगवाने के बाद की लापरवाही न बढ़े।
प्रधान संपादक योगेश
एक उद्धरण आज का:
“यह सोचने के बजाय कि आप क्या खो रहे हैं, ये सोचने की कोशिश करें कि आपके पास ऐसा क्या है जो बाकी सभी लोग खो रहे रहे हैं।”
एक दास्तां जीवन की:
एक राजा हाथी पर अपने राज्य का भ्रमण कर रहा था।
बाज़ार से गुज़रते समय अचानक वह एक दुकान के सामने रूका और अपने मंत्री से बोला, “पता नहीं क्यों लेकिन इस दुकान के मालिक को मैं फांसी देना चाहता हूँ।” मंत्री चकित था। परन्तु इसके पहले कि वह राजा से कारण पूछ पाता, राजा आगे बढ़ गया। अगले दिन स्थानीय निवासियों की तरह वस्त्र पहनकर मंत्री उस दुकान पर दुकानदार से मिलने गया। बातों-बातों में मंत्री ने उससे पूछा कि उसका व्यापार कैसा चल रहा था। दुकानदार, एक चन्दन व्यापारी, ने उदास मन से मंत्री को बताया कि उसके पास मुश्किल से ही कोई ग्राहक था। लोग उसकी दुकान पर आकर चन्दन को सूंघते थे पर फिर चले जाते थे। वह चन्दन की उत्कृष्टता की प्रशंसा भी करते थे परन्तु शायद ही कभी कुछ खरीदते थे। उसकी एकमात्र उम्मीद थी कि राजा जल्द ही मर जाए। तब राजा का अंतिम संस्कार करने के लिए चन्दन की भारी माँग होगी। चूँकि उस इलाके का वह एकमात्र चन्दन व्यापारी था, उसे यकीन था कि राजा की मृत्यु से उसे अप्रत्याशित लाभ होगा।
मंत्री को अब समझ में आया
कि राजा ने उस दुकान के सामने रूक कर उस दुकानदार को मारने की इच्छा क्यों व्यक्त की थी। यह बताये बिना कि वह कौन था या एक दिन पहले क्या हुआ था, उसने कुछ चन्दन खरीदने की इच्छा व्यक्त की। दुकानदार प्रसन्न हुआ और उसने चन्दन लपेटकर मंत्री को सौंप दिया। राजमहल लौटने पर मंत्री सीधे दरबार में गया जहाँ राजा विराजमान था और उसे बतलाया कि चन्दन व्यापारी ने उसके लिए उपहार भेजा था। उपहार खोलने पर चन्दन के श्रेष्ठ सुनहरे रंग व मनभावन सुगंध से राजा को ताज्जुब हुआ। खुश होकर उसने चन्दन व्यापारी के लिए सोने के कुछ सिक्के भेजे। राजा को मन में अफ़सोस भी हुआ कि उसके मन में दुकानदार को मारने जैसे अनुचित विचार आए थे।
दुकानदार को जब राजा द्वारा भेजे सोने के सिक्के मिले तो वह हक्का-बक्का रह गया।
वह राजा के सद्गुणों को बखान करने लगा कि राजा ने सोने के सिक्कों के माध्यम से उसे दरिद्रता के कगार से बचाया था। कुछ समय बाद उसे ध्यान आया कि राजा के प्रति उसके मन में घिनौने विचार आए थे। अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए राजा के प्रति इस प्रकार के नकारात्मक विचारों के बारे में सोचकर व्यापारी को बहुत पश्चाताप हुआ।“
इस प्रेरणादायक प्रसंग का संक्षिप्त निष्कर्ष:
यदि हम दूसरे व्यक्ति के लिए अच्छे व हितकर विचार रखते हैं तो वह सकारात्मक विचार उपकारक रूप में हमारे पास वापस अवश्य आते हैं। परन्तु यदि हम बुरे विचारों को आश्रय देते हैं तो वह विचार दंड के रूप में पलटकर हमारे ही पास आते हैं। हमें वही मिलता है जो हम देते हैं। सब कुछ प्रतिक्रिया व प्रतिफल के बारे में है। अच्छे विचार, कर्म व कृति को सदा अच्छा ही मिलता है। इस पैगाम कहना है कि जिस प्रकार हमें अपने बोए बीजों के फल-फूल अवश्य मिलते हैं, उसी प्रकार हमारे कर्म रूपी बीजों के फल की सीमा पर निर्भर है कि हमारे विचार कब कर्म फल के रूप में हमारे सामने उपस्थित होते हैं। मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह वह कर्म करे और फल की चिंता न करे। लेकिन हमारे मन में परिणाम की आशंका पहले से ही घर कर जाती है। जिससे न तो कर्म का मूल अर्थात विचार ही सहज रह पाता है और न ही सहज रूप से कर्म का निष्पादन होता है।

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