भक्ति मे ही शक्ति है
विचारम्-परम्-ज्ञानम्
स्वयं-विचार-करे
चाहे गलती स्वयं की हो मगर दूसरों को दोष देना हर हर महादेव
यही आज के आदमी की फितरत बन गयी है।
आदमी गिरता है तो पत्थर को दोष देता है,
डूबता है तो पानी को दोष देता है
और प्रेम करता है पर कुछ नहीं कर पाता तो क़िस्मत को दोष देता है
दूसरों को दोष देने का अर्थ ही मात्र इतना सा है कि स्वयं की गलती को स्वीकार करने का सामर्थ्य न रख पाना
और अपने में सुधार की सारी संभावनाओं को स्वयं अपने हाथों से ही कुचल देना
खुद के जीवन में दोष होने से भी ज्यादा घातक है,
दूसरों को दोष देना क्योंकि इसमें समय का अपव्यय व आत्म प्रवंचना दोनों होते हैं।
अतः आत्म सुधार का प्रयास करो,
जहाँ आत्म सुधार की प्रवत्ति है, वहीँ आत्म संतुष्टी का मिलन भी है..!!
Comments are closed.