राधा शब्द के दो अर्थ है–
राधा शब्द के दो अर्थ है–
1–आराधिका( कृष्ण की आराधना करने वाली सा राधा )
2–आराध्या ( जिसकी सब आराधना करे सा राधा)
— जब भगवान रास के समय अंतर्धान हो गये थे तो तब गोपियो ने देखा की भगवान अकेले ही अंतर्धान नही हुए थे बल्कि साथ मे एक गोपी को भी लेकर चले गये थे —
तब गोपियो ने कहा था की– अन्यान् आराधितो नूनम् भगवान हरिर्रिश्वर:– अर्थात् जिस गोपी को कृष्ण लेकर चले गये है उस गोपी ने जरुर हमसे ज्यादा आराधना की होगी तभी तो हमे छोड गये ओर उसे ले गये– जिस गोपी को भगवान लेकर गये वही राधा थी– पहला अर्थ आराधिका स्पष्ट हुआ–
दुसरा अर्थ आराध्या यानि जिसकी कृष्ण भी भक्ति करते है वो राधा–
राधैवाराध्यते मया–ब्रह्मवैवर्त पुराण– ईसलिए राधा शब्द के दोनो अर्थ है– कृष्ण की आराधना करने वाली ओर कृष्ण की आराध्या यानि कृष्ण जिसकी आराधना करते है—
ब्रह्म वैवर्त पुराण मे भगवान किशोरी जी से क्षमा मांगते है की राधे सर्वापराधम् क्षमस्व सर्वेश्वरी—
उपनिषदो मे प्रश्न किया गया की कस्मात् राधिकाम् उपासते अर्थात् राधा रानी की उपासना क्यो की जाती है???
तब उत्तर दिया गया की– यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त— अर्थात् जिसकी चरण धुलि को कृष्ण अपने सिर पर रखते है ओर जिसकी गोद मे सिर रखकर कृष्ण अपने गोलोक को भी भुल जाते है वो राधा है–(सामवेदीय राधोपनीषद्)–
उसके बाद फिर राधा उपनिषद कहता है की वृषभानु सुता देवी मुलप्रकृतिश्वरी:– वृषभानु की राधा ही मुल प्रकृति है–
ये भी कहा गया है की राधा ओर कृष्ण दोनो एक है –ईनमे भेद करने वाला कालसुत्र नर्क मे जाता है ईसलिए भेद मत करना पर रस की दृष्टि से ओर हास परिहास मे श्री राधा ही सर्वश्रेष्ठ है लेकिन भेदभाव नही करना—
अन्य पुराणो से भी प्रमाण देखिये–
यथा राधा प्रिया विष्णो : (पद्म पुराण )
राधा वामांश संभूता महालक्ष्मीर्प्रकीर्तिता (नारद पुराण )
तत्रापि राधिका शश्वत (आदि पुराण )
रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने (मतस्य पुराण १३. ३७ )
राध्नोति सकलान कामान तेन राधा प्रकीर्तित :(देवी भागवत पुराण )
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