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आत्मविश्वास में ही सफलता के मंत्र छिपा रहता है।

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आत्मविश्वास में ही सफलता के मंत्र छिपा रहता है।

“सठ सेवक” की प्रीति रूचि रखिहहिं राम कृपालु।
उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु।।

गोस्वामी जी स्वयं को “सठ सेवक” कहते हैं । सठ अर्थात स्वयं तो डूबेगा ही और जो उसके संसर्ग में रहेगा,वह भी डूब जाएगा।(आपु गए अरू घालहिं आनही)।
और जब सेवक ही सठ होगा तो क्या होगा?
स्वयं श्रीराम जी कहते हैं कि…
“सेवक सठ” नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी।।
यदि सेवक सठ हो,
राजा कंजूस हो,
स्त्री झगड़ालू, गलत आचरण वाली यानी कुनारी हो,
और मित्र कपटी हो
तो ये चारों शूल के समान पीड़ादायक हैं, अतः इन चारों का त्याग करना आवश्यक है।
और विडंबना देखिए कि यदि सेवक सठ हो तो उसका त्याग करना आवश्यक है और गोस्वामी जी स्वयं को पहले सेवक नहीं बल्कि पहले सठ और पीछे सेवक (सठ सेवक) कहते हैं। तो राम जी को उनकी रूचि रखना तो दूर बल्कि उन्हें दूर से ही त्याग देना चाहिए न?
गोस्वामी जी कहते हैं कि यदि श्रीराम जी सामान्य सिद्धांत पर कायम रहते तो उन्हें विभीषण का भी त्याग करना चाहिए क्योंकि उसने अपना परिचय दिया…नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता।।
एक तो मैं आपके वैरी रावण का भाई हूं,
राक्षस वंश से हूं,
मैं स्वभाव से पाप के प्रेमी हूं, अतः किसी भी कोण से आपके स्वीकार योग्य नहीं हूं।
और श्रीराम जी ने विभीषण को क्या नहीं दिए ( अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी।।एवमस्तु रहि प्रभु रनधीरा…जों संपत्ति सिव रावनहि दीन्ह दिएं दस माथ। सोइ संपदा बिभीषनहिं सकुचि दीन्हि रघुनाथ।।)।
जो पत्थर स्वयं तो जल में डूब जाता है और जो उसका सहयोग लेगा, उसका डूबना अवश्यंभावी है। किन्तु श्रीराम जी ने उसे जलयान, बना दिया…
श्री रघुबीर प्रताप तें सिंधु तरे पाषान।
(सेतु बंधन समय पाषाण को जल में तैरने का एक ही कारण है श्रीराम जी के प्रताप)।
सचिव सुमति कपि भालु!!! – भला बंदर भालु किसी के मंत्री भी हो सकते हैं क्या?
कपि चंचल सबहिं बिधि हीना – जो बंदर पेड़ के आश्रय में रहते हैं, उसके फल खाते हैं,
वही बंदर उसे भी बर्बाद कर देते हैं। हनुमानजी रावण से कहते ही हैं…कपि सुभाउ ते तोरेउ रूखा।
(एक राजा ने बंदर को अपनी सेवा में लगा कर स्वयं सो गया और बंदर ने उसके उपर बैठे मक्खी को तलवार से काटने के चक्कर में अपने स्वामी को ही काट दिया।
एक माली ने बंदरों को पौधे को सिंचाई करने में लगाया कि वे बंदर उसके पौधे ही बर्बाद कर दिए।)
भालु जहां रहता है उस स्थान को भी बर्बाद कर देता है, गड्ढे खोद देता है।
और जब श्रीराम जी बंदर भालु में भी सुमति का समावेश करते हुए,
उन्हें अपना मंत्री बना लिए,
तो मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि यद्यपि मैं पहले सठ और बाद में सेवक हूं फिर भी वे मेरे प्रेम और रूचि को स्वीकार करेंगे।
जैसे पत्थर नाव बनने की योग्यता नहीं रखते हैं,
बंदर भालु मंत्री बनने की योग्यता नहीं रखते हैं,
लेकिन श्रीराम जी ने असंभव को संभव किया।
मुझ सठ ज्यादा और सेवक कम ,
के प्रेम और इच्छा को (श्रीरामचरितमानस भाषा बद्ध करने की इच्छा) अवश्य पूरी करेंगे….(मोहि रघुबीर भरोष)…..
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के श्रीराम जी के प्रति विश्वास अर्थात उनके आत्मविश्वास ने “श्रीरामचरितमानस” के सफलता की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी । उन्हें मानस के सफलता पर कोई संदेह नहीं थी….

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