Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.
Rajni

शिव जी द्वारा बताया गया पार्वती माँ को प्रेम का रहस्य

79

शिव जी द्वारा बताया गया पार्वती माँ को प्रेम का रहस्य
〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️
पार्वती शिव की केवल अर्धांगिनी ही नहीं अपितु शिष्या भी बनी, वे नित्य ही अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए शिव से अनेकों प्रश्न पूछती और उनपर चर्चा करती ! एक दिन उन्होंने शिव से कहा –

पार्वती:- प्रेम क्या है बताइए महादेव, कृप्या बताइए की प्रेम का रहस्य क्या है, क्या है इसका वास्तविक स्वरुप, क्या है इसका भविष्य ! आप तो हमारे गुरुकी भी भूमिका निभा रहे हैं इस प्रेम ज्ञान से अवगत कराना भी तो आपका ही दायित्व है ! बताइए महादेव !

शिव:- प्रेम क्या है ! यह तुम पूछ रही हो पार्वती ? प्रेम का रहस्य क्या है ? प्रेम का स्वरुप क्या है ? तुमने ही प्रेम के अनेको रूप उजागर किये हैं पार्वती ! तुमसे ही प्रेम की अनेक अनुभूतियाँ हुयी ! तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारा उत्तर निहित है !

पार्वती:- क्या इन विभिन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति संभव है ?

शिव:- सती के रूप में जब तुम अपने प्राण त्याग जब तुम दूर चली गयी, मेरा जीवन, मेरा संसार, मेरा दायित्व, सब निरर्थक और निराधार हो गया ! मेरे नेत्रों से अश्रुओं की धाराएँ बहने लगी ! अपने से दूर कर तुमने मुझे मुझ से भी दूर कर दिया था पार्वती ! ये ही तो प्रेम है पार्वती ! तुम्हारे अभाव में मेरे अधूरेपन की अति से इस सृष्ठी का अपूर्ण हो जाना ये ही प्रेम है ! तुम्हारे और मेरे पुन: मिलन कराने हेतु इस समस्त ब्रह्माण्ड का हर संभव प्रयास करना हर संभव षड्यंत्र रचना, इसका कारण हमारा असीम प्रेम ही तो है ! तुम्हारा पार्वती के रूप में पुन: जनम लेकर मेरे एकांकीपन और मुझे मेरे वैराग्य से बहार नकलने पर विवश करना, और मेरा विवश हो जाना यह प्रेम ही तो है !

 जब जब अन्नपूर्णा के रूप में तुम मेरी क्षुधा को बिना प्रतिबन्धन के शांत करती हो या कामख्या के रूप में मेरी कामना करती हो तो वह प्रेम की अनुभूति ही है ! तुम्हारे सौम्य और सहज गौरी रूप में हर प्रकार के अधिकार जब मैं तुम पर व्यक्त करता हूँ और तुम उन अधिकारों को मान्यता देती हो और मुझे विशवास दिलाती रहती हो की सिवाए मेरे इस संसार में तुम्हे किसी का वर्चस्व स्वीकार नहीं तो वह प्रेम की अनुभूति ही होती है ! 

जब तुम मनोरंजन हेतु मुझे चौसर में पराजित करती हो तो भी विजय मेरी ही होती है, क्योंकि उस समय तुम्हारे मुख पर आई प्रसन्नता मुझे मेरे दायित्व की पूर्णता का आभास कराती है ! तुम्हे सुखी देख कर मुझे सुख का जो आभास होता है यही तो प्रेम है पार्वती !

 जब तुमने अपने अस्त्र वहन कर शक्तिशाली दुर्गा रूपमें अपने संरक्षण में मुझे शसस्त बनाया तो वह अनुभूति प्रेम की ही थी ! जब तुमने काली के रूप में संहार कर नृत्य करते हुए मेरे शरीर पर पाँव रखा तो तुम्हे अपनी भूल का आभास हुआ, और तुम्हारी जिह्वया बहार निकली, वही प्रेम था पार्वती !

जब तुम अपना सौंदर्यपूर्ण ललिता रूप जो कि अति भयंकर भैरवी रूप भी है, का दर्शन देती हो, और जब मैं तुम्हारे अति-भाग्यशाली मंगला रूप जो कि उग्र चंडिका रूप भी है, का अनुभव करता हूँ, जब मैं तुम्हे पूर्णतया देखता हूँ बिना किसी प्रयत्न के, तो मैं अनुभव करता हूँ की मैं सत्य देखने में सक्षम हूँ ! जब तुम मुझे अपने सम्पूर्ण रूपों के दर्शन देती हो और मुझे आभास कराती हो की मैं तुम्हारा विश्वासपात्र हूँ ! इस तरह तुम मेरे लिए एक दर्पण बन जाती हो जिसमें झांक कर में स्वयं को देख पाता हूँ की मैं कौन हूँ ! तुम अपने दर्शन से साक्षात् कराती हो और मैं आनंदविभोर हो नाच उठता हूँ और नटराज कहलाता हूँ ! यही तो प्रेम है !

जब तुम बारम्बार स्वयं को मेरे प्रति समर्पित कर मुझे आभास कराती हो की मैं तुम्हारे योग्य हूँ, तुमने मेरी वास्तविकता को प्रतिबिम्भित कर मेरे दर्पण के रूपको धारण कर लिया वही तो प्रेम था पार्वती।

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading