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तुलसीदास रामभक्ति  के प्रतिनिधि कवि: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

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तुलसीदास रामभक्ति  के प्रतिनिधि कवि: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

तुलसीदास जी महाराज साधारण मानव नहीं, अपितु विलक्षण व्यक्तित्व

गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के आकाश के परम नक्षत्र माने गए

तुलसीदास एक साथ कवि, भक्त व समाज सुधारक तीनों रूपों में मान्य

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। 
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज साधारण मानव नहीं, अपितु विलक्षण व्यक्तित्व औैर प्रतिभा के धनी थे। वह अपने जन्म के समय रोए नहीं थे। वह सभी बत्तीस दांतों के साथ पैदा हुए थे। जन्म लेते ही उनके मुँख से राम उच्चारित हुआ था, इसीलिए बचपन में उनका नाम रामबोला था । एक पौराणिक कथा के अनुसार तुलसीदास को इस दुनिया में आने में 12 महीने लगे, तब तक वे अपनी मां के गर्भ में ही रहे, और जन्म के पश्चात ही वह पाँच साल के लड़के जैसा दिखते थे। यह ज्ञानोपदेश काशी सुमेरु पीठाधीश्वर यति सम्राट् अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने तुलसी जयन्ती के पावन अवसर पर आदि शंकराचार्य महासंस्थानम् न्यास द्वारा संचालित वेद विद्यालय (गुरुकुल) में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया । इस अवसर पर विद्वत् संगोष्ठी में श्रद्धालूओं के बीच दिया।

शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने कहा, ऐसा माना जाता है कि तुलसी दास वाल्मीकि के अवतार थे। हिन्दू शास्त्र “भविष्योत्तर पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को बताया था कि वाल्मीकि कलयुग में कैसे अवतार लेंगे । गोस्वामी जी हिन्दी साहित्य के आकाश के परम नक्षत्र, भक्तिकाल की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि थे। तुलसीदास एक साथ कवि, भक्त तथा समाज सुधारक तीनों रूपों में मान्य है। श्रीराम को समर्पित ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का प्रकारान्तर से ऐसा अवधी भाषान्तर है, जिसमें अन्य भी कई कृतियों से महत्वपूर्ण सामग्री समाहित की गयी है ।

उन्होंने बताया कि कहा कि पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर में 13 अगस्त 1532 में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। श्रीरामचरितमानस को समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका तथा अन्य अनेकों ग्रन्थ  तुलसीदासकृत अन्य महत्वपूर्ण काव्य है। इस अवसर पर स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती  महाराज, स्वामी प्रदीप आनन्द महाराज ने भी अपने विचार ब्यक्त किये, तथा गुरुकुल के समस्त बटुकों के साथ ही अन्य विद्वान उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती जी महाराज ने किया।

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