राज्यपाल बनने से विपक्ष के नेता का पद खाली
राज्यपाल बनने से विपक्ष के नेता का पद खाली:20 दिन से सरकारी मुख्य सचेतक, 22 से नेता प्रतिपक्ष नहीं
जयपुर
राजस्थान की 15वीं विधानसभा का अंतिम बजट सत्र की अगली बैठक की कार्यवाही सोमवार से शुरू होने जा रही है। पिछले कुछ दिनों से इस विधानसभा में तीन प्रमुख पद रिक्त हैं। 15वीं विधानसभा में उपाध्यक्ष का पद चार साल पूरे हो जाने के बावजूद एक बार भी भरा नहीं गया है। मंत्री डॉ. महेश जोशी के इस्तीफा देने के कारण सरकारी मुख्य सचेतक का पद रिक्त हो गया है। जबकि असम के राज्यपाल बनने के कारण गुलाबचंद कटारिया के चले जाने से नेता प्रतिपक्ष भी फिलहाल कोई नहीं है।
असल में परंपराओं के अनुसार लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में स्पीकर सत्ता पक्ष का और उपाध्यक्ष प्रमुख विपक्षी दल का चुना जाता है। वरिष्ठ भाजपा नेता व राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवारी का कहना है कि उपाध्यक्ष की सीट सदन में नेता प्रतिपक्ष की सीट के पास वाली होती है। ऐसे में सदन की कार्यवाही पर विचार-विमर्श होने से यह सतत बनी रह पाना संभव होता है। पूरे देश में राजस्थान एक ऐसा राज्य है, जहां सत्ता पक्ष का ही उपाध्यक्ष होता है। उपाध्यक्ष विपक्षी पार्टी का हो, इसकी लंबे समय से मांग चल रही है, लेकिन कभी कुछ हुआ नहीं।
16 फरवरी को नेता प्रतिपक्ष और 18 को मुख्य सचेतक ने दिया था इस्तीफा
असल में नेता प्रतिपक्ष रहे गुलाबचंद कटारिया ने राष्ट्रपति की ओर से असम का राज्यपाल नियुक्त किए जाने के बाद 16 फरवरी को इस्तीफा दे दिया था। तब ये यह पद खाली है। उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ विपक्ष की ओर से फिलहाल उनकी भूमिका का कामकाज भर देख रहे हैं। 22 दिन से आज तक भाजपा विधायक दल का कोई नेता तय नहीं हो पाया है। इसी तरह 18 फरवरी को मुख्य सचेतक की भूमिका निभा रहे डॉ. महेश जोशी का इस्तीफा भी मंजूर कर लिया गया था। उसके बाद से यह पद खाली है। फिलहाल उनका कामकाज उपमुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी देख रहे हैं। कांग्रेस भी मुख्य सचेतक तय नहीं कर पाई है।
मुख्य सचेतक : मुख्य सचेतक सदन और स्पीकर के बीच की ऐसी कड़ी है, जो हर समय सदन की कार्यवाही को आगे बढ़ाने में मददगार होता है। इसकी जिम्मेदारी सदन के पुराने सदस्यों को आमतौर पर दी जाती है।
नेता प्रतिपक्ष : नेता प्रतिपक्ष सदन में विपक्षी दलों की ओर से विभिन्न मुद्दों पर खुलकर मत रखता है। वह विपक्ष की आवाज होता है। यदि विपक्ष से कोई बात मनवानी होती है तो स्पीकर नेता प्रतिपक्ष की ओर ही मुखातिब होते हैं। सदन में नेता प्रतिपक्ष का फैसला, पूरे विपक्ष का फैसला होता है। इसलिए यह पद भी अनुभवी विधायक के जिम्मे रहता है।
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