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विधानसभा में गूंजा गरीबों के आवास और जमीन छोड़ने का मामला

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विधानसभा में गूंजा गरीबों के आवास और जमीन छोड़ने का मामला

पटौदी के एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता ने उठाया मुद्दा

अधिग्रहण की गई सरकारी प्रोजेक्ट से अलग जमीन की जाए मुक्त

60-70 वर्षो से जमीन पर बसे गांव को शिफ्ट करना संभव नहीं

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान पटौदी विधानसभा क्षेत्र, खासतौर से नए मानेसर नगर निगम इलाके में शामिल विभिन्न गांवों में गरीबों के पुश्तैनी आवास और जमीनों को मुक्त करने का मुद्दा गरम रहा । इस मामले में पटौदी के एमएलए और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मंत्री एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता के द्वारा विधानसभा अध्यक्ष और सदन में मौजूद सीएम खट्टर के सामने जबरदस्त तरीके से पैरवी की गई ।

उन्होंने कहा की सरकार को इस प्रकार की विभिन्न गांवों में जमीनों को मुक्त कर देना चाहिए, जिन्हें कभी अतीत में सरकारी परियोजनाओं और प्रोजेक्ट को देखते हुए अधिग्रहण किया गया था। लेकिन अब इस प्रकार की जमीन आवासीय क्षेत्र का इलाका सरकारी प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित की गई जमीन के दायरे से बाहर आ चुका है । क्योंकि जो आवास और गांव तथा पुश्तैनी मकान बने हुए हैं वह 60 से 70 वर्ष पुराने हैं । यहां यहां तक की 60 से 70 एकड़ में बसे हुए पूरे गांव को किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट करना भी संभव नहीं है । विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान पटौदी के एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता के द्वारा कोरोना कॉविड 19 महामारी के दौरान प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना अन्नपूर्णा को केंद्र में रखते हुए प्रदेश में एक करोड़ 22 लाख लोगों को निशुल्क अच्छी गुणवत्ता का राशन उपलब्ध करवाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की सराहना करते हुए आभार भी व्यक्त किया। गौरतलब है कि इस पूरे प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी हरियाणा में स्वयं पटौदी के एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता के पास ही है।

सदन में बोलते हुए उन्होंने कहा कि एचएसआईडीसी के द्वारा 2004 में मानेसर के पास जमीन का अधिग्रहण किया गया था। फाजिलवास गांव में फोरमीटर मेट्रो निकालने की परियोजना थी और इसके लिए 50 मीटर चौड़ाई की जमीन का अधिग्रहण किया गया था, जिसका दायरा सिमट कर अब महज 35 मीटर तक रह गया है । ऐसे में फाजिलवास गांव के बेहद गरीब करीब 70 परिवारों के आवास बने हुए हैं। ऐसे में जब जमीन की जरूरत नहीं रह गई है , तो गरीबों के हित को ध्यान में रखते हुए अधिग्रहण की गई जमीन को मुक्त कर देना चाहिए। इसी प्रकार से नखरोला गांव में भी बीते कई दशक से 12 कनाल जमीन पर करीब 40 गाड़िया लोहार परिवार रह रहे हैं , यहां भी अब किसी सरकारी प्रोजेक्ट के लिए संबंधित जमीन की जरूरत नहीं रह गई है। ऐसे में गाड़िया लोहार जहां रह रहे हैं उस जमीन को भी अधिग्रहण के दायरे से बाहर कर देना चाहिए।

विधानसभा में बोलते हुए एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता ने कहा कासन गांव में 33 सौ एकड़ जमीन अधिग्रहण कर ली गई ,इस जमीन का अधिग्रहण औद्योगिक विकास के लिए किया गया था । लेकिन अब यह जमीन का दायरा सिमट कर अट्ठारह सौ एकड़ तक रह गया है । कासन और आसपास के ग्रामीण औद्योगिक विकास के लिए पूरी तरह से सरकार के साथ हैं , लेकिन वहां पर भी लगभग 70 एकड़ जमीन पर भी कई दशकों से पुश्तैनी मकान आवास बने हुए हैं । इस प्रकार देखा जाए तो जिस भी गांव में संबंधित मकान आवास इत्यादि बने हुए हैं उस गांव को किसी भी अन्य स्थान पर शिफ्ट करना संभव ही नहीं है । ऐसे नहीं गरीब परिवारों के हित और उनकी माली हालत को ध्यान में रखते हुए सरकार के लिए यही बेहतर रहेगा कि संबंधित जमीन को अधिग्रहण के दायरे से अलग कर दिया जाए।
इसी प्रकार से मानेसर इलाके में भी 912 एकड़ जमीन में से 60 से 70 एकड़ जमीन पर 60 वर्षों से भी अधिक समय से गरीबों के मकान झोपड़े आवास इत्यादि बने हुए हैं । इसी कड़ी में कासन और खोह गांव में 162 एकड़ में से 50 एकड़ जमीन पर भी गरीब मजदूर दैनिक कामकाजी लोगों के मकान आवास झोपड़े इत्यादि बने हुए हैं। विभिन्न सरकारी प्रोजेक्ट और परियोजनाओं का विश्लेषण किया जाने पर यह बात भी सामने आ रही है कि ऊपर जिस जिस गांव और जहां जहां जमीनों का जिक्र किया गया है वह जमीन सरकारी प्रोजेक्ट और परियोजनाओं के दायरे से बाहर हो चुकी है । ऐसे में उन्होंने हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर का आह्वान सहित संबंधित तमाम गांव के ग्रामीणों की तरफ से अनुरोध किया है कि बढ़ती महंगाई और गरीब परिवारों की माली हालत को ध्यान में रखते हुए जल्द से जल्द संबंधित तमाम जमीनों को सरकारी प्रोजेक्ट के अधिकरण के दायरे से मुक्त करने की आधिकारिक घोषणा कर लेनी चाहिए। जिससे कि इन तमाम गरीब दैनिक कामकाजी लोगों के जीवन में बना हुआ तनाव भी समाप्त हो सके।

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