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जिस घर आंगन में बेटी, वही घर स्वर्ग के समान: ओपी धनखड़

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जिस घर आंगन में बेटी, वही घर स्वर्ग के समान: ओपी धनखड़

घर की चौखट से बेटी की विदाई अभिभावक के लिए बड़ा सौभाग्य

एक बेटी ही दो परिवारों के बीच में कायम करती है अटूट संबंध

बेटी गरीब की हो या अमीर की, जन्म के साथ लाती अपना भाग्य  

एमएलए एडवोकेट जरावता की बेटी कोमल को दिया आशीर्वाद

फतह सिंह उजाला
पटौदी । 
जिस भी घर आंगन में बेटी होती है, वास्तव में वह घर स्वर्ग के ही समान होता है । बेटी सही मायने में किसी भी परिवार या अभिभावकों के लिए परमपिता परमेश्वर का अनमोल उपहार से कम नहीं होता है । हमारे अपने धर्म शास्त्रों और पुराणों में भी कहा गया है जिस चौखट से बेटी की विदाई होती है, वह घर और माता-पिता सबसे अधिक सौभाग्यशाली होते हैं । यह बात भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने पटौदी के एमएलए एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सचिव एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावत की पुत्री कोमल के विवाह के उपलक्ष पर आयोजित कार्यक्रम में अपना आशीर्वाद देते हुए कही।

एमएलए एडवोकेट जरावता की पुत्री कोमल का विवाह 4 नवंबर को गन्नौर सोनीपत निवासी प्रदीप पुत्र प्रकाश रानी एवं रामभक्त धनिया दंपति के साथ होना निर्धारित है। इसी विवाह की आरंभ हुई रस्मों के मौके पर एमएलए एडवोकेट जरावता की पुत्री कोमल को अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए सांसद सुनीता दुग्गल, सांसद डीपी वत्स, सांसद रमेश कौशिक, पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली , मंत्री ओम प्रकाश यादव, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला, एमएलए  सीताराम, प्रवीण डागर, धर्मवीर डोंगर, ईश्वर सिंह, जगदीश नायर , रामकुमार कश्यप, निर्मल चौधरी, सुभााष सुधा,  मोहनलाल बडोली , पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह सहित भारतीय जनता पार्टी और अन्य राजनीतिक दलों के अनेक गणमान्य व्यक्ति और नेता अपना आशीर्वाद प्रदान करने के लिए विशेष रूप से पहुंचे ।

आगामी 4 नवंबर को अपना दांपत्य जीवन आरंभ करने वाली एमएलए एडवोकेट जरावता की पुत्री कोमल को शुभ आशीष देते हुए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने कहा कि बेटी वास्तव में दो परिवारों के बीच संबंध बनाने में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बनती है। उन्होंने कहा बेटी तो बेटी ही होती है , फिर वह चाहे किसी गरीब परिवार की हो या फिर साधन संपन्न परिवार की बेटी हो। बेटियां अपना भाग्य लेकर ही जन्म लेती हैं । लेकिन मौजूदा हालात में प्रत्येक अभिभावक का यह दायित्व बनता है कि बेटियों को जितना अधिक संभव हो सके , उतना अधिक यथा सामर्थ शिक्षित करें या उच्चतर शिक्षा अवश्य दिलाएं । एक पढ़ी-लिखी और शिक्षित बेटी दो परिवारों के बीच सामंजस्य बनाने में जो भूमिका सहित अपना सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर सकती है , उसकी कल्पना करना भी बेमानी है ।
उन्होंने इसी मौके पर ध्यान आकर्षित करवाया की बेटी का विवाह करना हो या फिर बेटी को पुत्र वधू के रूप में अपने परिवार में लेकर आना हो। इस प्रकार के पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते और संबंधों को लंबे समय तक विश्वसनीय और अटूट बनाए रखने के लिए दहेज के रूप में लेन देन से जितना अधिक संभव हो सके दूर रहते हुए परहेज करना चाहिए । क्योंकि बेटी से बड़ा इस ब्रह्मांड में परमपिता परमेश्वर के द्वारा दिया गया अथवा प्रदान किया गया अन्य कोई भी धन नहीं है । सही मायने में और जिस परिवार में बेटी है , उससे अधिक धनवान अन्य कोई नहीं हो सकता । अक्सर यही देखा जाता है कि आज के दौर में शिक्षित और संस्कारवान बेटियों की अधिकांश परिवारों के द्वारा तलाश हर उन्हे पुत्रवधु के रूप में मांगा जाने लगा है और कन्यादान वैसे भी सर्वश्रेष्ठ दान कहा गया है।

संस्कारवान और शिक्षित बेटी अपनी ससुराल में पहुंचकर बहुत जल्द ससुराल में वहां के माहौल में अपने आप को डालकर सास ससुर को अपने माता पिता के रूप में स्वीकार कर आजीवन सेवा भी करती है । उन्होंने कहा जरूरत इस बात की है कि बेटियों को उच्चतर शिक्षा दिलाने के साथ और पारिवारिक संस्कार देने सहित हमें अपने बेटों अथवा पुत्रों को भी ऐसे संस्कार देनी चाहिए, जिससे कि विवाह के बाद नव दंपति सहित नव संबंध बने परिवारों में ऐसा सामंजस्य बने, जिसे की अन्य लोग भी अपनाने के लिए विवश हो जाएं । इस मौके पर विशेष रुप से श्रीमती सरला देवी जरावता उनकी पुत्री कोमल , भाई रोहित जरावता के अलावा शीतल दास जरावता, सेवादास जरावता, प्रशांत जरावता, हिमांशु जरावता, जतिन जरावता के द्वारा सभी आगंतुक मेहमानों का स्वागत और अभिनंदन भी किया गया। 

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