युग परिवर्तन की संध्या में पाप का प्रचंड रूप !!
युग परिवर्तन की संध्या में पाप का प्रचंड रूप !!
दीपक बुझने को होता है तो एक बार वह बड़े जोर से जलता है, प्राणी जब मरता हे तो एक बार बड़े जोर से हिचकी लेता है । चींटी को मरते समय पंख उगते हैं, पाप भी अपने अन्तिम समय में बड़ा विकराल रूप धारण कर लेता है। यह युग परिवर्तन की संध्या है। जिसमें पाप का इतना प्रचंड,उग्र और भयंकर रूप दिखाई देगा जैसा कि सदियों से देखा क्या सुना भी न गया होगा। दुष्टता हद दर्जे को पहुँच जायगी, एक बार ऐसा प्रतीत होगा कि अधर्म की अखंड विजयदुन्द भी बज गई और धर्म बेचारा दुम दबा कर भाग गया, किन्तु ऐसे समय भयभीत होने की आवश्यकता नहीं, यह अधर्म की भयंकरता अस्थायी होगी, उसकी मृत्यु की पूर्व सूचना मात्र होगी । अवतार प्रेरित धर्म भावना पूरे वेग के साथ उठेगी और अनीति को नष्ट करने के लिए विकट संग्राम करेगी । रावण के सिर कट जाने पर भी फिर नये उग आते थे फिर भी अन्ततः रावण मर ही गया । इन दिनों भी अधर्म नष्ट हो हो कर फिर जीवित होता हुआ प्रतीत होगा। उसकी मृत्यु में बहुत देर लगेगी,पर अन्त में वह मर ही जायेगा।
किसी की भावनाओ के साथ प्रयोग मत कीजिये उसका जीवन आपकी प्रयोगशाला नहीं है !! सारी उम्र बस एक ही “सबक” याद रखियेगा…..
“संबध,रिश्ते और दोस्ती” में नियत साफ़ रखियेगा……
🌹 ईश्वर को चापलूसी नही, श्रेष्ठ कार्य ही पसंद है।
Comments are closed.