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मौजूदा शिक्षा पद्धति, देश के लिए अभिशाप सिद्ध हो रही: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

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मौजूदा शिक्षा पद्धति, देश के लिए अभिशाप सिद्ध हो रही: शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द

ऐसी शिक्षा से आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण की कल्पना संभव ही नहीं

मन का मताधिकार, पूर्वाग्रह, कट्टरता से मुक्ति और साहस आवश्यक

राधाकृष्णन ने धर्मों के आध्यात्मिकख् नैतिक शिक्षण का प्रयास किया

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। 
मन का मताधिकार, पूर्वाग्रह, कट्टरता से मुक्ति और साहस आवश्यक है। आज हमें जिस चीज की जरूरत है, वह है सम्पूर्ण मनुष्य की शिक्षा, जिससे मनुष्य का शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास हो। राधाकृष्णन ने भी धर्मों के आध्यात्मिक और नैतिक पहलुओं के शिक्षण के लिए भरपूर प्रयास किया था। जैसा कि विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट है, जिसके वे अध्यक्ष थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक नैतिकता को बड़े अर्थ में नहीं लिया जाता है, कोई भी शिक्षा पर्याप्त नहीं है। यदि हम अपनी संस्थाओं में आध्यात्मिक प्रशिक्षण को छोड़ दें, तो हमें अपने सम्पूर्ण ऐतिहासिक विकास के प्रति झूठा होना पड़ेगा। यह बात
शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय-वाराणसी में अध्यापक परिषद् द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर यति सम्राट् अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपने संबोधन में कही। कार्यक्रम का शुभारम्भ चारों वेदों के विद्वानों द्वारा मंगलाचरण एवम् पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य  महाराज के कर कमलों से दीप प्रज्ज्वलन से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता अध्यापक परिषद् के अध्यक्ष प्रो० राम पूजन पाण्डेय ने किया। यह जानकारी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द के निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती के द्वारा मीडिया से सांझा की गई है।
 इससे पहले शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने देश के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के चित्र पर पुष्प् अर्पित करते, दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का विधिवत आरंभ किया। उन्होंने मां सरस्वती का स्मरण करते सभी के बुद्धी  कौशल विकास की कामना करते अपना आशिर्वाद प्रदान किया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब धार्मिक रूप से अनपढ़ होना नहीं है। यह गहरा आध्यात्मिक होना है, ना कि संकीर्ण रूप से धार्मिक होना। शंकराचार्य महाराज ने कहा कि आज जो शिक्षा पद्धति है, वह देश के लिए अभिशाप सिद्ध इसीलिए हो रही है, क्योंकि ऐसी शिक्षा से आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। देश में शिक्षक दिवस प्रख्यात शिक्षाविद् एवम् देश के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के जयन्ती के दिन मनाया जाता है।

शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि सरकार नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा पद्धति अविलम्ब देश में लागू करे। गुरुकुलों को सहयोग एवम् बढ़ावा दे, तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय को तत्काल केन्द्रीय विश्वविद्यालय घोषित करें। इस अवसर पर स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती  महाराज, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हरे राम त्रिपाठी, आयुर्वेद विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो नीलम गुप्ता, प्रो अमित कुमार शुक्ल, प्रो राघवेंद्र दूबे, प्रो राम किशोर त्रिपाठी, प्रो विशाखा शुक्ल, रजिस्ट्रार श्री केश लाल  सहित अन्य प्रोफेसर विद्यार्थी एवम् विद्वानों की गरिमामयी उपस्थिति रही।

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