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.मात्र 1 साल के बच्चे की जान की कीमत 16 करोड़ रुपये

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.मात्र 1 साल के बच्चे की जान की कीमत 16 करोड़ रुपये
-भयानक बीमारी से पीडि़त है बालक अयांश मदान
-कैनविन फाउंडेशन बच्चे के लिए फंड एकत्रित करने को आगे आया 
प्रधान संपादक योगेश

गुरुग्राम। यह बात आपको सुनकर हैरानी भरी लगे, लेकिन यह सौ फीसदी सच है कि मात्र एक साल के बच्चे की जान की कीमत 16 करोड़ रुपये है। मतलब इन रुपयों में अमेरिका से एक इंजेक्शन जॉलगेनसमा मंगवाया जाएगा, जो कि पीडि़त बच्चे को लगेगा। गुरुवार को इस बच्चे का जीवन बचाने को आगे आया कैनविन फाउंडेशन।
यहां सेक्टर-15 स्थित चाइल्ड न्यूरोलॉजी क्लीनिक पर पत्रकारों से बातचीत में कैनविन फाउंडेशन के संस्थापक डा. डीपी गोयल ने मात्र 1 साल के अयांश के साथ उनके माता-पिता प्रवीण मदान एवं वंदना मदान को मीडिया से रूबरू कराया। डा. डीपी गोयल ने कहा कि गुरुग्राम ही नहीं पूरे भारत देश में बहुत बड़े दानी हैं। मां शीतला की कृपा से हम सबको इस बच्चे का जीवन बचाना है। उन्होंने हर आम और खास से यह अनुरोध किया कि अपनी नेक कमाई में से थोड़ा-थोड़ा सा हिस्सा भी दान करें तो इस बच्चे के उपचार में काम आएगा। उन्होंने कहा कि अपने स्तर पर वे गुरुग्राम व बाहर रहने वाले फिल्म व खेल जगत से सेलिब्रिटी से भी बात कर रहे हैं। हर किसी का इसमें सहयोग लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उनके जीवन में पहली बार यह ऐसी बीमारी सामने आई है, जिसका उपचार इतना महंगा है। वह भी भारत में नहीं, बल्कि अमेरिका से लिया जाएगा। जॉलगेनसमा नामक एक इंजेक्शन बच्चे को लगेगा, जिसकी कीमत 16 करोड़ रुपये है। इसे अमेरिका से मंगवाने के खर्च अलग से होंगे। इसलिए हर कोई इसमें अपना सहयोग देकर बच्चे का जीवन बचाने में अपनी भूमिका निभाए। 
माता-पिता के जीन से संबंधित है यह बीमारी: डा. राकेश
इस बीमारी को लेकर चाइल्ड न्यूरोलॉजिस्ट डा. राकेश जैन ने कहा कि यह बीमारी बहुत बड़ी है, लेकिन हमें हिम्मत नहीं हारनी। अब तक देश में करीब 150 बच्चों में यह बीमारी आ चुकी है और वे उपचार के बाद स्वस्थ भी हुए हैं। उन्होंने कहा कि यह एक तरह से जेनेटिक बीमारी है। यानी माता-पिता के जीन में गड़बड़ी होने के कारण यह बीमारी बच्चों में पनपती है। इस बीमारी को एसएमए (स्पाइनल मसक्यूलर एट्रॉफी) के नाम से जाना जाता है। यह नसों की बीमारी होती है। इसकी तीन श्रेणी टाइप-1, 2 व 3 होती हैं। टाइप 1 बीमारी सबसे घातक और जानलेवा होती। एक साल से कम उम्र के बच्चों में यह बीमारी होती है। टाइप-2 बीमारी होने पर बच्चे जिवित तो रहते हैं, लेकिन काम आदि नहीं कर पाते, वहीं टाइप-3 की बीमारी में बच्चों में थोड़ी शारीरिक कमजोरी होती है, लेकिन वे अच्छा जीवन व्यतीत करते हैं। डा. जैन ने यह भी कहा कि अगर 16 करोड़ में टीका यहां आ जाता है तो बच्चे के आगे का खर्च वे फोर्टिस अस्पताल प्रबंधन से अनुरोध करके फ्री करवाने का प्रयास करेंगे। अयांश के माता-पिता ने भी देश के लोगों से अपील की है कि हर बच्चे को जीने का अधिकार है। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि वे अपने बच्चे को 16 करोड़ रुपये का इंजेक्शन लगवा सकें। इसलिए उन्होंने देश के हर नागरिक से अपील की है कि बच्चे की खातिर आर्थिक सहायता दें, ताकि बच्चे का जीवन बचाया जा सके।

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