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मन की एकाग्रता जरूरी, चंचलता से भटकाव

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मन की एकाग्रता जरूरी, चंचलता से भटकाव

जिसने भी अपने मन को साध लिया उसके लिए हर लक्ष्य आसान हो जाता है। मन की एकाग्रता हमें हमारी आत्मा से साक्षात्कार कराकर हमारी सफलता के नए द्वार खोलती है। इसलिए आज से ही मन को साधने में जुट जाइए मनुष्य के मन का स्वाभाविक गुण है चंचल होना यानी एकाग्र न होना। इसका चंचल गुण बार-बार हमें हमारे लक्ष्यों से विमुख करता रहता है। मनुष्य का मन उसको भावनाओं और कामनाओं के जाल में बांधकर भांति-भांति के कार्य करवाता है। हमारा मन हमारे शरीर रूपी रथ का सारथी होता है। इसका जिस ओर मन करता है वह उधर ही इसको ले जाता है। इसमें प्रायः गलत राह भी पकड़ ली जाती है। मन का अधिक झुकाव विषयों एवं विकारों की तरफ रहता है। वहां पर हमें इसको बांधने और रोकने की जरूरत महसूस होती है। इसके लिए गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं, ‘हे अर्जुन यदि तुम धीर मति वाले और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हो तो मन की चंचलता पर काबू पाया जा सकता है। मन का मुंहजोर घोड़ा आरंभ में सवार को अपनी पीठ पर आसीन नहीं होने देता है, लेकिन अगर बार-बार कोशिश की जाए तो वह उसे सवार भी होने देगा, उसकी बात मानेगा और उसकी इच्छा के अनुसार चलेगा भी, पर सबसे कठिन होता है मन को किसी एक लक्ष्य पर टिका कर रखना। मन के दृढ़ निश्चयी होने पर ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इसी को कहते हैं अभ्यास की तलवार चलाना।

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