सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश गवर्नर बिलों को अनिश्चितकाल तक नहीं रोक सकते
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश गवर्नर बिलों को अनिश्चितकाल तक नहीं रोक सकते
नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि गवर्नर किसी भी विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। यह फैसला पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश की सरकारों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया।
इन राज्यों ने गवर्नरों को विधेयक रोकने का अधिकार देने वाली विवेकाधिकार शक्ति का विरोध किया और कहा कि कानून बनाना केवल विधानसभा का काम है, राज्यपाल केवल औपचारिक प्रमुख हैं।
गवर्नर को सीमित विवेकाधिकार
चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि गवर्नर को पास बिल पर या तो हस्ताक्षर करना होगा या उसे राष्ट्रपति को भेजना होगा। गवर्नर द्वारा अनिश्चितकाल तक बिल रोकना संविधान की भावना के खिलाफ है।
राज्य सरकारों का तर्क
पश्चिम बंगाल: वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि गवर्नर मनमर्जी से बिल अटकाकर जनता की इच्छा को नकार नहीं सकते।
हिमाचल प्रदेश: वकील आनंद शर्मा ने कहा कि गवर्नर का कार्यालय लोकतंत्र में जनता की इच्छा को रोकने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
कर्नाटक: वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि राज्य में ‘डायार्की’ नहीं हो सकती; गवर्नर केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करेंगे और संविधान उन्हें केवल दो स्थितियों में विवेकाधिकार देता है।
केंद्र की ओर से तर्क
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसले न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आते और राज्य सरकारें सीधे अदालत नहीं जा सकतीं।
सुप्रीम कोर्ट की राय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर गवर्नर अनिश्चितकाल तक बिल रोकेंगे तो ‘जल्दी’ शब्द का महत्व समाप्त हो जाएगा। अदालत ने यह भी माना कि राज्यों की विधानसभाओं में पारित बिलों पर गवर्नर का हस्तक्षेप केवल सीमित परिस्थितियों में ही होना चाहिए।
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