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सुप्रीम कोर्ट ने जारी की शब्दावली : कोर्ट में अब महिलाओं के लिए प्रॉस्टिट्यूट जैसे शब्द नहीं होंगे इस्तेमाल –

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सुप्रीम कोर्ट ने जारी की शब्दावली : कोर्ट में अब महिलाओं के लिए प्रॉस्टिट्यूट जैसे शब्द नहीं होंगे इस्तेमाल –

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को लेकर जिरह के दौरान होने वाले आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के उद्देश्य से जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च की है। बता दें, महिला दिवस के अवसर पर सीजेआई ने एक कार्यक्रम के दौरान यह जानकारी दी थी कि जल्द कानूनी मामलों में महिलाओं के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल रुकेगा और इसके लिए एक शब्दावली भी आएगी।

जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक जारी

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को हैंडबुक जारी करते हुए कहा कि इससे जजों और वकीलों को ये समझने में आसानी होगी कि कौन से शब्द रूढ़िवादी हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने बताया कि इस हैंडबुक में आपत्तिजनक शब्दों की लिस्ट है और उसकी जगह इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द और वाक्य भी बताए गए हैं। इन्हें कोर्ट में दलीलें देने, आदेश देने और उसकी कॉपी तैयार करने में यूज किया जा सकता है। यह हैंडबुक वकीलों के साथ-साथ जजों के लिए भी है। इस हैंडबुक में वे शब्द हैं, जिन्हें पहले की अदालतों में इस्तेमाल किया जाता रहा है। शब्द गलत क्यों हैं और वे कानून को और कैसे बिगाड़ सकते हैं, इसके बारे में भी इसमें बताया गया है।

कलकत्ता हाईकोर्ट की टीम ने तैयार की शब्दावली

कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली समिति ने इस शब्दावली को तैयार किया है। इस समिति में रिटायर्ड जस्टिस प्रभा श्रीदेवन, जस्टिस गीता मित्तल और प्रोफेसर झूमा सेन शामिल थीं। वे फिलहाल कोलकाता में वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज में फैकल्टी मेम्बर हैं।

हैंडबुक जागरूक करने को बनाई, आलोचना करने के लिए नहीं : CJI

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस हैंडबुक को तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना करना या संदेह करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता की परंपरा चली आ रही है। कोर्ट का उद्देश्य यह बताना है कि रूढ़िवादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है, ताकि कोर्ट महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से बच सके। इसे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया जाएगा।

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