Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.
Rajni

2002 के गुजरात दंगा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड को जमानत दी

9

2002 के गुजरात दंगा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड को जमानत दी
नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में कथित तौर पर सबूत गढ़ने के एक मामले में कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड को नियमित जमानत दे दी है. हालांकि गुजरात सरकार ने जमानत याचिका का पुरजोर विरोध किया. इस संबंध में न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 2002 गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामले में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर फर्जी सबूत गढ़ने के एक मामले में तीस्ता सीतलवाड़ को नियमित जमानत दी. पीठ ने नियमित जमानत के लिए तीस्ता सीतलवाड़ की याचिका खारिज करने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ के विरुद्ध मामले में आरोप पत्र दायर किया जा चुका है. इसके अलावा उनसे हिरासत में लेकर पूछताछ किया जाना जरूरी नहीं है. साथ ही पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता का पासपोर्ट पहले ही जमा किया जा चुका है, जो सेशन कोर्ट की हिरासत में रहेगा. वहीं अपीलकर्ता गवाहों को प्रभावित करने का कोई प्रयास नहीं करेंगी और उनसे दूरी बनाकर रहेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस को छूट देते हुए कहा कि यदि मामले में गवाहों को प्रभावित किए जाने का प्रयास किया जाता है तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट आ सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट पर सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि, हाईकोर्ट का फैसला गलत है. उसने कहा कि हाईकोर्ट ने जिस तरह का निर्णय दिया है उससे आरोपियों को जमानत मिलना कठिन है. वहीं हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष गलत है कि तीस्ता ने एफआईर को रद्द करने की अर्जी नहीं दी.

सुनवाई के दौरान तीस्ता सीतलवाड़ की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि फर्जी तौर पर सबूत गढ़ कर एफआईआर दर्ज की गई. उन्होंने कहा कि गुजरात हाई कोर्ट द्वारा नियमित जमानत देने से इनकार किए जाने के तुरंत बाद कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन उन्हें अंतरिम सुरक्षा देने के मुद्दे पर जजों में मतभेद दिखे. यह मामला 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामले में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने से संबंधित है.सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब तीस्ता के देश छोड़कर भागने या गवाहों को प्रभावित करने का जोखिम नहीं है. तब तीस्ता को क्यों गिरफ्तार किया गया? तीस्ता को अलग क्यों रखा गया है? उनके अनुसार हलफनामा मनगढ़ंत है. यह मामला 2002 में हुआ था. तब से तीस्ता ने किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है और अंतरिम जमानत पर हैं. तीस्‍ता को जमानत मिले दस महीने हो गए, किसी को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की, फिर किस आधार पर जमानत खारिज कर दी गई?
सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा, समस्या रईस खान के रूप में पैदा हुई. ये एक प्रमुख गवाह है, जो सीतलवाड़ साथ काम कर रहा था. उन्होंने उसकी सेवाएं समाप्त कर दीं. तब से वह वह उनके खिलाफ शिकायत पर शिकायत दर्ज करा रहा है. इन सबका आधार उनकी शिकायत है. उसकी शिकायत इन सबका आधार बनती है. खान सीतलवड के पूर्व करीबी सहयोगी थे जो बाद में 2008 में उनसे अलग हो गए थे.
वहीं गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि हमें अब इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए. पीठ ने जवाब दिया कि आप फैसले के एक हिस्से को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं और जमानत के लिए दूसरे हिस्से पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि किसी को यह देखना होगा कि क्या प्रथम दृष्टया मामला बनता है, और क्या भागने का खतरा है और क्या व्यक्ति सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है, और आगे पूछा, कैसे क्या उच्च न्यायालय उन मुद्दों पर विचार कर सकता था? इस पर एएसजी राजू ने कहा कि निर्णय एसआईटी द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित था और उच्च गणमान्य व्यक्तियों के खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे और कांग्रेस पार्टी से पैसा लिया गया था, जिसकी पुष्टि नरेंद्र भ्रमभट्ट ने की थी, जबकि इस बात पर जोर दिया गया था कि सीतलवाड ने एक गंभीर अपराध किया है. आरोपपत्र में कहा गया है कि सीतलवाड को एक कांग्रेस नेता से 30 लाख रुपये मिले थे. सुनवाई के दौरान पीठ ने राजू से पूछा, आपने पिछले साल जून से लेकर अब तक क्या जांच की है, जब एफआईआर दर्ज की गई थी कि उसे गिरफ्तार करने की जरूरत थी और आप 2008-2011 तक क्या कर रहे थे. कृपया हमें बताएं कि आप किस उद्देश्य से आपको उसकी कस्टडी चाहिए.
न्यायमूर्ति दत्ता ने राजू से पूछा, क्या आप चाहते हैं कि ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनवाई पूरी होने तक कोई व्यक्ति विचाराधीन कैदी बना रहे? राजू ने जवाब दिया कि यह एक ऐसा मामला है जहां सजा जीवन भर है. बता दें कि 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने सीतलवाड को दी गई अंतरिम जमानत को 19 जुलाई को अगली सुनवाई तक बढ़ा दी थी. इससे पहले, 1 जुलाई को शीर्ष अदालत ने उन्हें गिरफ्तारी से सुरक्षा दी थी और हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. बता दें कि 5 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने सीतलवाड को दी गई अंतरिम जमानत को 19 जुलाई को अगली सुनवाई तक बढ़ा दी थी. इससे पहले, 1 जुलाई को शीर्ष अदालत ने उन्हें गिरफ्तारी से सुरक्षा दी थी और हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट, गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सीतलवाड की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने उन्हें 2002 के गोधरा दंगों के बाद के मामलों में निर्दोषों को फंसाने के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के मामले में आत्मसमर्पण करने के लिए कहा था. उच्च न्यायालय ने नियमित जमानत की उनकी याचिका खारिज कर दी.

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading